शुक्रवार, जुलाई 14, 2023

व्यंग्य अथ मूत्र कथा

 

व्यंग्य

अथ मूत्र कथा

वीरेन्द्र जैन

म.प्र. के एक शुक्ला विधायक के शुक्ला प्रतिनिधि ने एक आदिवासी के मूड़ पर क्या मूता कि पूरे देश में यत्र तत्र सर्वत्र मूत्र ही मूत्र फैल गया। किसी व्यक्ति के मूतते हुए इतने वीडियो इससे पहले कभी वायरल नहीं हुये होंगे, जितने भारतीय संस्कृति की दुहाई देने वाले, सत्ता के अहंकार में मनुष्यता पर मूतते हुए इस विधायक प्रतिनिधि के हुये। जो चैनल खोलो उसमें नल चलता हुआ दिखाई दे रहा था। इस दौरान  इससे बड़ी दुर्घटना भी नहीं हुयी जो इसकी जगह ले सकती।

समाज में जब रामभरोसे की दूसरी कोई बड़ी पहचान नहीं बन सकी तो वे खुद को विचारक कहने लगे थे। इसमें कोई परीक्षा नहीं देना पड़ती है। विचार करना हर स्वस्थ या अस्वस्थ व्यक्ति का अधिकार या कर्तव्य या किंकर्तव्यविमूढता होता है। न

नाज है उनको बहुत सब्र मुहब्बत में किया

पूछिए सब्र न करते तो और क्या करते

 इस दौरान भी रामभरोसे ने जनप्रतिनिधि शुक्ला के प्रतिनिधि शुक्ला की मूत्रधारा की तरह विचार की धारा बहा दी। आपके तवज्जो की दरकार है।

मूत्र, प्राणियों द्वारा विसर्जित किया जाने वाला एक द्रव्य पदार्थ होता है जो सदियों से देह से इसी प्रवाह प्रक्रिया में है। मनुष्य को यह सुविधा है कि स्थान और लक्ष्य तय कर के इस कार्य को पूर्ण कर सकता है। मनुष्य द्वारा पाले गये कुत्ते को छोड़ कर बाकी सारे प्राणी शरीर में द्रव्य का भंडार होते ही उसे प्रवाहित करने लगते हैं। आवारा कुत्ते तो इससे अपनी टैरीटरी [सीमा] बना लेते हैं। “जहाँ जाते हैं वे, अपनी निशानी छोड़ आते हैं “। राम भरोसे ने तो कई बार कुछ आवारा कुत्तों का दिन भर यह जानने के लिए पीछा किया कि इनके इतनी पेशाब बनती कैसे है।

       उन्होंने पाया कि वे किसी पड़ी हुयी वस्तु या भूमि पर नही मूतते वे हमेशा खड़ी हुयी वस्तु, दीवार या कोने को लक्ष्य बनाते हैं, जैसे मील का पत्थर, पार्क किये गये स्कूटर का टायर या नम्बर प्लेट जहाँ नम्बर के अलावा प्रैस या ऐसा ही कुछ और लिखा होता है, कार का पहिया आदि। खाली पड़े मन्दिरों में वे देवताओं का महत्व और शक्ति भी नहीं समझते। दतिया के एक कवि चन्द्रशेखर मिश्र ने तो इस स्थिति को स्वीकार करते हुए लिखा भी था कि-

रोज पुजते हैं, रोज मुतते हैं, चन्द्रशेखर खराब होते क्या

युधिष्टर ने जब स्वर्ग में अपने साथ अपने कुत्ते को भी ले जाना चाहा तो इन्द्र ने शायद इसी डर से आनाकानी की हो कि महाराज इनकी दिनचर्या नियंत्रण वाली नहीं है, रम्भा, मेनका जैसी अप्सराएं क्या सोचेंगीं। पर युधिष्टर अपने सारे भाइयों और द्रोपदी की जगह कुत्ते को ले गये। उसकी बाद की कथा नहीं मिलती क्योंकि किसी ने स्टोरी के लिए स्वर्ग जाने का साहस नहीं जुटाया।  

हमारे बहुत सारे पुराण पुरुषों ने इस बारे में बहुत सारे अनुभव नहीं छोड़े हैं सिवाय अगस्त ऋषि के जिन्होंने पूरा समुद्र पी लिया था और देवताओं के हाहाकार पर उसे प्राकृतिक रास्ते से बाहर निकाला तो वह उसी स्वाद में अर्थात खारा होकर निकला। तब से वह ऐसा ही है। हमारे पास हर सवाल के लिए कोई तर्क भले ही ना हो किंतु कहानी जरूर है। हमारे पुराण पुरुषों के पास कितने भी हाथ हों, सिर हों, किंतु विसर्जन अंगों की बहुलता नहीं बतायी गयी है। यही कारण् है कि इस विषय पर बहुत सारी पुराण कथाएं नहीं  हैं। मुसलमानों ने जरूर इस के आसपास कुछ व्यवहारिक आचरण जोड़े हैं।

वैद्यो की दुनिया में जरूर एक प्रेरणाप्रद कथा प्रचलित है। एक राजा ने स्नेहवश एक वैद्य के बेटे को अपने हाथी के हौदे पर बैठा लिया और जब महल के दरवाजे पर पहुंच ही थे कि उसने हाथी को रुकवाया और उतर कर उसने वही काम किया जो छोटी उंगली उठाने का संकेत देने के बाद किया जाता है। बाद में राजवैद्य से राजा ने शिकायत की आपके पुत्र में जरा भी धैर्य नहीं है। हम लोग महल में पहुंचने ही वाले थे कि उससे पहले उसने पेशाब करने के लिए हाथी रुकवा दिया। वैद्य ने कहा कि महाराज वह सचमुच नालायक है, यह तो ऐसी क्रिया है कि उसे तो रोकना ही नहीं चाहिए, उसे तो हौदे पर बैठे बैठे ही कर देना चाहिए था। इस दिशा में मैं महामना मोरारजी भाई देसाई द्वारा अपनाये गयी चिकित्सा पद्धति की तो चर्चा ही नहीं कर रहा, किंतु कटी उंगली पर न मूतने के मुहावरे ने इसके जनसामन्य के उपचार में उपयोग के सन्देश तो दिये ही हैं।

हमारे देश में गौ और ब्राम्हण को इतना महत्व दिया गया है कि अवतारों के अवतरण का उद्देश्य ही गौ और ब्राम्हण की रक्षा करना बतलाया गया है। जब दोनों ही समान महत्व के हैं तो केवल गौ मूत्र का गुणगान और ब्राम्हण देवता के मूत्र के प्रति नफरती बातें करना तो बहुत नाइंसाफी है।

कहा जा रहा है कि जिस व्यक्ति का वीडियो वायरल हुआ है उसने बाद में मुख्यमंत्री से  पैर धुलवाने और पाँच लाख लेने के बाद कहा है कि वह व्यक्ति मैं नहीं था जिसकी मूड़ पर मूता गया है। मान लो कि इस फैसले को पलटना पड़ा तो उसकी प्रक्रिया क्या होगी? क्या दिये हुये पैसे वापिस ले लिये जायेंगे? क्या उसके धुले हुये पैर दोबारा गन्दे कर दिये जायेंगे? उसकी नई कमीज उतरवाकर पुरानी कमीज व पैंट फिर से पहिनने को कहा जायेगा?  रामभरोसे की विचार प्रक्रिया जारी है।

वीरेन्द्र जैन

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