बुधवार, दिसंबर 12, 2012

व्यंग्य- टंकी का गिरना उर्फ चप्पलों कीचाह में अनुरक्त


व्यंग्य
टंकी का गिरना उर्फ चप्पलों की चाह में अनुरक्त
वीरेन्द्र जैन
       पिछले दिनों मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में आधी रात के दौरान एक टंकी गिर गयी थी जिससे सात लोगों की मौत हो गयी थी व 33 लोग घायल हो गये थे। टंकी पानी की थी और उस पानी की टंकी के नीचे लोगों ने घर बना लिए थे और सरकार ने स्कूल बना लिया था। लोग अतिक्रमणकारी थे पर सरकार तो सरकार है वह कुछ भी कर सकती है। पर गलती उन लोगों की थी जिन्होंने रहने के लिए घर न होने के कारण टंकी को ही छत मानकर उसके पास अपनी झोपड़ी डाल ली थी और आठ डिग्री तापमान वाली सर्दी की रात में अपने झोपड़े और बाल बच्चों समेत टंकी के नीचे दब गये। सरकार की कोई जिम्मेवारी नहीं है कि वे टंकी के नीचे वर्षों से कैसे रह रहे थे और उन्हें वे छोटे छोटे घर भी क्यों नहीं मिल सके जिसके विज्ञापन पर करोड़ों रुपया लुटा कर अपने आप को गरीबनवाज बताती रहती है। अगर उन्हें सही जगह रहने और उसके पास ही रोजगार के अवसर मिले होते तो वे टंकी के नीचे क्यों रहते। सरकार की कोई जिम्मेवारी नहीं बनती कि वह देखे कि टंकी के बनने में ठेकेदार ने कितना पैसा इंजीनियर के रास्ते मंत्रीजी तक पहुँचाया और उसके जर्जर हो जाने के बाद भी उसको उपयोग में क्यों लाया गया।

       पर क्षमा करें सरकार चूंकि एक हिन्दुत्व वाली पार्टी की है इसलिए उसका काम तो लोगों को तीर्थयात्रा कराना है ताकि वे अपना परलोक सुधारने के चक्कर में इन्हें वोट देकर इनका इसी लोक में उद्धार कर दें। विधानसभा में नगरीय प्रशासन मंत्री के बयान तो टंकी के पतन से भी ज्यादा पतित रहे। उन्होंने कहा कि न तो टंकी ही जर्जर थी और न ही कोई अफसर ही जिम्मेवार है। अफसरों के लिए तो उनका कहना था कि दूध देती गाय को टोंचा नहीं जाता। वैसे तो भाजपा के लोग शर्म प्रूफ होते हैं पर मंत्रीजी के इन उत्तरों से तो भोपाल क्षेत्र के दो भाजपा विधायकों तक को शर्म आ गयी, और उन्होंने आगामी चुनावों को देखते हुए अपनी ही पार्टी के मंत्री से सवाल कर डाले।
       वैसे भाजपा के मंत्रियों के ऐसे जबाब कोई खास आश्चर्य की बात नहीं हैं। अयोध्या में बाबरी मस्जिद ध्वंस के बारे में गत बीस साल से लिब्राहन आयोग करोड़ों रुपया खर्च कराके भी किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुँच सका था। मस्जिद ध्वंस की एक आरोपी उमा भारती हैं जिनका राजनीति में प्रवेश इस कारण से हुआ था क्योंकि उन्हें बचपन में ही रामायण याद हो गयी थी और वे एक बच्ची के रूप में जब रामायण पाठ करती थीं तो कौतुहलवश भीड़ जुट जाती थी और वे लोकप्रिय हो गयी थीं। भाजपा हर लोकप्रियता को वोटों के रूप में भुनाने की कला जानती है इसलिए उन्होंने उमाभारती को राजनेता बना दिया था। उन्होंने आयोग को उत्तर दिया था कि उन्हें कुछ याद नहीं कि छह दिसम्बर 92 को अयोध्या में क्या हुआ था। बाद में मस्जिद किसने तोड़ी के जबाब में उन्होंने कहा था कि मस्जिद तो भगवान ने तोड़ी। उल्लेखनीय है कि नगरीय प्रशासन मंत्री उनके ही उत्तराधिकारी के रूप में मुख्यमंत्री भी रहे हैं सो उनका उत्तर भी ऐसा ही था कि न तो अफसर जिम्मेवार हैं, न ठेकेदार जिम्मेवार हैं अर्थात टंकी तो भगवान ने तोड़ी। अब आप चाहें तो भगावान को मीमो दे सकते हैं या सस्पेन्ड कर सकते हैं। कुछ दिनों पहले एक फिल्म आयी थी ‘ओह माई गाड’ इस फिल्म में जब एक दुकानदार की भूकम्प से ध्वस्त दुकान का बीमा क्लेम इस कारण से निरस्त हो जाता है क्योंकि उसमें ‘एक्ट आफ गाड’ के कारण हुआ नुकसान कवर नहीं होता। तब वह भगवान की तलाश में निकलता है और इन दिनों जो लोग थोक के भाव में  भगवान बने घूम रहे हैं उन सब को कानूनी नोटिस भिजवा देता है। अदालत में चली इस बहस में वह इनके सारे पाखण्डों और कुतर्कों की धज्जियां उड़ा देता है। उल्लेखनीय है कि भाजपा को इस फिल्म के कारण अपनी भी धज्जियां उड़ने का खतरा पैदा हो गया था इसलिए लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने इस फिल्म को हिन्दुत्व विरोधी बता कर इसके खिलाफ बयान दिया था।
       वैसे ईश्वर की तलाश हिन्दी के एक हास्यकवि काका हाथरसी ने भी की थी और उन्होंने मन्दिर से चप्पलें  चुराने का कारण ईश्वर के किसी भौतिक स्वरूप तक पहुँचने के प्रयास से जोड़ा था। वे कहते हैं-

प्रेम से तुम नित्य ही हरि कीर्तन में जाइए
खूबसूरत चप्पलों को छाँट कर ले आइए
बात कहता हूं पते की कल्पना कोरी नहीं
सब प्रभू की वस्तु जग में, इसलिए चोरी नहीं
विश्व ढूंढा टार्च लेकर, पर प्रभू पाया नहीं
चिट्ठियां डालीं बहुत उत्तर कभी आया नहीं
हर मुहल्ला छान मारा, पर न उसका घर मिला
किसी टेलीफोन ग़ाइड में नहीं नम्बर मिला
प्रभू को फिर छोड़ कर मैं भक्त के आया शरण
भक्त से भी अधिक समझे भक्त के प्यारे चरण
चरण से भी अधिक उनकी पादुका का भक्त हूं
इसलिए मैं चप्पलों की चाह में अनुरक्त हूं  
       लगता है कि मध्यप्रदेश के मंत्री भी इसी तरह चप्पलों की चाह में अनुरक्त होकर प्रभु तक पहुँचने की कोशिश में हैं। देखना होगा कि उनकी यह इच्छा कैसे पूरी होती है।
वीरेन्द्र जैन
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