शुक्रवार, अगस्त 14, 2009

व्यंग्य दूसरा पहलू

व्यंग्य
दूसरा पहलू
वीरेन्द्र जैन
जब जब आदमी बहस में सामने वाले को परास्त नहीं कर पाता तब वह अंतिम अस्त्र स्तेमाल करता है और कहता है कि भाई- हर बात के दो पहलू होते हैं।
मैंने भी रामभरोसे से यही कहा पर उसने बहस खत्म नहीं करना चाही क्योंकि अभी तक चाय नहीं आयी थी और वह जब तक चाय न पी ले तब तक बहस खत्म करके चाय की संभावनाओं को खत्म नहीं करना चाहता, इसलिए उसने कहा - '' और तुम हमेशा गलत पहलू की ओर होते हो''
मुझे गुस्सा आ गया और मैंने कहा - ऐसा कैसे! सच तो यह है कि गलत पहलू की ओर हमेशा तुम रहते हो।
रामभरोसे खुश हुआ क्योंकि उसका काम बन गया था। बहस फिर से शुरू हो गयी थी। उसने विषयगत से वस्तुगत होते हुये कहा कि आज जन्माष्टमी है जिसे लोग भगवान श्री कृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाते हैं। यह अन्याय और अत्याचार के खिलाफ शारीरिक शक्ति, प्रेम और करूणा से भरे ह्रदय तथा बुद्धिकौशल से भरे जीवन के दुनिया में आने का प्रतीक है। क्या तुम्हारे पास इसका भी कोई दूसरा पहलू है?
''हाँ भाई है क्यों नहीं'' मैंने कहा
''क्या?'' उसके स्वर में आश्चर्य था
'' देखो भाई यह दिन इस बात का भी प्रतीक है कि लड़कों को जीवित रखने के लिए लड़कियों को मार देने में कोई बुराई नहीं है। यह दिन जेल के चौकीदारों के चरित्र को भी बताता है जिनका नाइट डयूटी के समय सो जाना तब भी प्रचलन में था पर उनकी यूनियन इतनी मजबूत रही होगी कि अपनी बहिन के बच्चों को मार देने वाला कंस भी उन्हें सजा नहीं दे सका। यह दिन बच्चे बदलने वालों को शिशु परिवर्तन दिवस के रूप में मनाना चाहिये जिसे वे मेरे जैसे योग्य सलाहकारों के न होने के कारण नहीं मना पाते। अगर मेरी सलाह लें तो उन्हें अभी भी यह दिवस मनाना प्रारंभ कर देना चाहिये जिससे वे प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री आदि से मुफ्त में शुभकामनाएं मंगा सकते हैं और इस अवसर पर 16 पेज की स्मारिका निकाल कर जन सम्पर्क विभाग से विज्ञापन के नाम बीस पच्चीस हजार फटकार सकते हैं।''
रामभरोसे को गुस्सा आ गया और वह बिना चाय पिये चला गया। अच्छी बहस का यह दूसरा पहलू था।

1 टिप्पणी:

  1. श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ। जय श्री कृष्ण!!
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