सोमवार, जनवरी 17, 2011

व्यंग्य पर उपदेश कुशल बहुतेरे


व्यंग्य
पर उपदेश कुशल बहुतेरे

वीरेन्द्र जैन
संत टी वी पर प्रवचन फटकार रहे थे। वे माया मोह भगाने के लिए प्रेरणा देने से पहले चैनल प्रबंधक से अपनी रायल्टी बढ़ाने के बारे में लम्बी चर्चा कर चुके थे। उनके पर्सनल सेक्रटरी और पीआरओ ने चैनल प्रबंधक को पहले ही आश्वस्त कर दिया था कि संत जी प्रवचनों के बीच में 'छोटे से ब्रेक' के दौरान पेन्टीज और ब्रेसरीज के विज्ञापनों में दिखाई जाने वाली अधनंगी माडलों के विषय में आपत्ति व्यक्त नहीं करेगे। उदार हृदय संत अपने वचनों पर दृड़ रहे और उन्होने इस विषय पर कोई चर्चा नहीं की।
पिछले दिनों उन्होने एक झूठे भक्त की दानशीलता के झांसे में आकर उसे दो सौ करोड़ की राशि विनियोजन के लिए सोंप दी थी जिसे लेकर वह ध्यान में बैठने की जगह अर्न्तध्यान हो चुका था। भक्तों के इस माया प्रेम में पड़ कर अनैतिक होते जाने से संत कुपित थे व इस हानि की जल्दी भरपाई में प्राणप्रण से जुट गये थे। वे चाहते थे कि भक्त महाठगिनी माया से मुक्त होकर मुक्त हस्त से दान दें ताकि आश्रम फलता फूलता रहे।
संत पहले विज्ञापनों पर नखरे दिखाते थे। वे कहते थे कि उनके प्रवचनों के बीच में दिखाये जाने वाले विज्ञापन पहले उन्हें दिखाये जाने चाहिऐ। एकाध बार ऐसा किया भी गया पर उन विज्ञापनों के देह र्दशनों ने उनके मन में पाप पनपा दिया था जिसका प्रायश्चित उन्होने आश्रम में एक कोठरी में बैठकर कर किया था। तब से उन्होने यह जिम्मेवारी आश्रम के मैनेजर को सोंप दी थी। अब वे सारी आसक्तियों से मुक्त हो गये थे। जो चाहे दिखाओ केवल मेरी रायल्टी बढ़ा दो।
संत भावपूर्ण मुद्रा में उपर उंगली उठा कर परम पिता परमात्मा पर भरोसा रखने और उसकी कृपा पाने की प्रेरणा देते होते वहीं विज्ञापन में पेन्टी पहने माडल मशीन पर एक्सरसाईज करती हुयी जांघों और पेट पर से चर्बी कम करने के लिए ऐशियन स्काई शाप की एक्सरसाईज मशीन मंगाने की प्रेरणा दे रही होती। दोनो ही ऊपर स्काई की ओर इशारा करते पर जांघों की चर्बी कम करने वाली माडल की स्काई-शाप संत की स्काई शाप से ज्यादा दमदार सिद्व होती है।
संत प्रवचन देते हैं कि मन का मैल साफ करो और वहीं ब्रेक में कोई प्यारी भाभीनुमा गृहणी किसी डिटर्जेन्ट सोप का विज्ञापन करती ढेरों कपड़े धोने के बाद भी खुशी खुशी मुस्कराती हुयी कपड़ों का मैल साफ करने की प्रेरणा दे रही होती या टायलेट सोप को चिकने घुले गोरे गोरे हाथ पैरों आदि पर फिराते हुऐ शरीर का मैल निकालने को प्रेरित कर रही होती । संत का प्रवचन फिर पिट जाता और लोग शरीर का मैल धोने की तैयारी करने लगते ।
संत प्रभु के रंग में रंग लेने को उकसाते वहीं डिस्टेम्पर आईल पेन्ट से घर रंगने के लिए प्रेरित करती फिर कोई हसीना ऑखों ही ऑखों में आमंत्रित करती नजर आती। संत शेम्पू से धुली अपनी दाढ़ी पर हाथ फेर कर उसके जुएं मुक्त होने का संदेश देते होते तो कोई सुन्दरी अपनी केश राशि को लहराती और किसी शेम्पू का कमाल बताती आंखों के तीर चला कर चली जाती। संत का संदेश नहीं चल पाता। संत कम से कम कपड़े पहने नजर आते तो माडलें और कम कपड़ों में नजर आती।

संत को भविष्य की चिन्ता सताती। अगर टीआरपी क़म हो गयी तो धंधा कैसे चलेगा। जो पैसा भक्त के माया मोह के चक्कर में चला गया वो कैसे निकलेगा, संत ने उद्योग स्थापित कर लिये। अब वे जड़ी बूटियॉ और मानव खोपड़िया आदि कुटवा पिसवा कर बिकवाने लगे। अगरबत्ती, साबुन, तेल, चन्दन, माला, प्रवचन की पुस्तकें, आडियो वीडियो की सीडियां उनकी एन्सिलरी इकाईयां बन गयीं। भक्तों की जो भी जरूरतें होती है। वे आश्रमवासियों के द्वारा पूरी की जा सकती है। बड़ी पापड़, सिंवई, आचार आदि बनवाने के लिए विधवा आश्रम खोल दिया गया। बढ़ती बेरोजगारी, मंहगाई और भुखमरी ने सेवादार, सेवादारिनी बनने का मार्ग प्रशस्त किया। वे लोग मजदूर नहीं सेवादार थे इसलिए उन्हें मजदूरी की जगह प्रभु प्रसाद मिलता था। चूकि प्रसाद की कोई दर नही होती इसलिए उनका परिश्रम भी अमूल्य था। सेवादारों को संतोष का पाठ नि:शुल्क पढ़ाया जाता और विधवाओं को किसी भी तरह के अभावों में नही रखा जाता था।
भक्त संत का प्रवचन विज्ञापन सुन्दरियों की झलक पानें के लिए सुनते। प्रवचन तो ब्रेक में झेलने जैसी चीजें थी। वे मन का मैल साफ करने की जगह घर का मैल साफ करते और मैल को सड़क पर फेंक देते। चूंकि संत मैल साफ करने का संदेश तो देते हैं पर मैल को कहॉ कैसे फेंकना है, उसके बारे में कुछ नही बताते इसलिए लोग कचरा एक दूसरे के घर के सामने फेंक कर पुण्य कमाते रहते है। कोई सन्त यह नही बताता कि गुटखा की पीक कहॉ थूकना है या नाली का पानी कहॉ पर निकालना है। आत्मा परम स्वतंत्र होती है। इसलिए उसे धारण करने वाली देह को अपनी सीमा से बाहर जाकर दूसरों और समाज के लिए नहीं सोचना चाहिए। सारे रिश्ते बेमानी हैं, भम्र हैं, धोखा हैं इसलिए धोखे से बचो अपना मैल निकाला और दूसरे पर पटक दो। दूसरा भी ऐसा ही करे। मातृवत पर दारेषु की तरह तुम हमारी पत्नी को मां मानों और मैं तुम्हारी पत्नी को मॉ मानूं। इस तरह सब एक दूसरे के बाप बन जाओ। ऐसा होने पर जगह जगह वह डायलाग सुनायी देगा कि ' रिशते में हम तुम्हारे बाप लगते है' ।
संत का अपना टेन्ट हाऊस चलता है। वे दूसरे के टेन्ट हाऊस वाले शमियाने में प्रवचन नहीं करते । टेन्ट का किराया कुल दस लाख रूपयें प्रतिदिन है। जिसने सन्यासी का मेकअप करके घर छोड़ दिया उसने अरबों का आश्रम कारोबार जमा लिया और अपनी गाड़ी में चलकर अपने टेन्ट में ही भाषण देता है। सारे ब्रम्हाण्ड में उसी एक परमपिता परमेश्वर का वास है। पर टेन्ट हाऊस हमारा अपना अलग है जिसमें हमारे अपने भक्तों के पान की पीक लगी है। आध्यात्म उसी में पनपता है। किराया एडवांस न देने पर नही पनपेगा। आपको पनपवाना हो तो जल्दी बुकिंग करवाओं वरना संत किसी और को डेट दे देंगे।
----- वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629

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