शुक्रवार, मार्च 11, 2011

व्यंग्य- ...........और अब भोजपाल


व्यंग्य
और अब भोजपाली
वीरेन्द्र जैन
जब बम्बई, मुम्बई हो गयी, कलकत्ता कोलकता हो गया, त्रिवेन्द्रम तिरंतपुरम हो गया तो हमारा कर्तव्य बनता है कि हम भी अपनी तरह से अपने नगर का नाम बिगाड़ें। क्यों नहीं बिगाड़ेंगे आखिर हम किसी से पतला तो नहीं थूकते हैं?
किस ने किस कारण से अपने नगर का स्वाभाविक नाम बिगाड़ा उसके कारणों के पीछे हम नहीं जाते, हमें तो करना, सो करना। जब न्यायाधीश किसी को फाँसी दे सकता है तो हम क्यों नहीं दे सकते। इतिहास तो हमारे स्कूलों की पाठ्यपुस्तक है और अपने राज्य की पाठ्य पुस्तकों में हम मनमाना फेरबदल करवा सकते हैं। सारे वर्तमान को इतना पीछे ले जाना है कि बीच के मुगल और ईसाई अर्थात अंग्रेज का इतिहास ही मिट जाये। सोई हो गया जय हिन्दू राष्ट्र।
अब लोकतंत्र के त्योहार 15 अगस्त और 26 जनवरी मनाते मनाते भी हमारी राजनीति राजमाताओं और राज कुँवरों के यहाँ गिरवी रखी हुयी है सो हम फिर से माँ की कोख की ओर बढ रहे हैं। जो नहीं बढ रहे वे देशद्रोही हैं। कोई कुछ भी कहे हम अपने भोपाल का नाम भोजपाल रख रहे हैं,... मेरी मर्जी।
आप कहते रहें कि 14 राजा भोजों में से ये ही भोज रहे हों तो भी जो नाम समय के प्रवाह में बदला जा चुका है उसमें पीछे कैसे लौटा जा सकता है। अरे भाई लौटा जा सकता है क्योंकि हमने वोट जुटाये हैं, भले ही कैसे भी जुटाये हों। कहते रहो कि इनसे अच्छी तो मायावती है जिसने अगर शहरों के नाम बदले तो उन्हें अपने समय के समाज सुधारकों का नाम दिया,.... दिया होगा। जो अतीत में दुखी रहे वे तो बदलेंगे, पर हमें अतीत में पूजा जाता था इसलिए हम तो सुख की ओर लौटेंगे, अर्थात अतीत की ओर लौटेंगे।
अगर भोपाल का नाम राजा भोज के नाम पर भोजपाल हो गया तो ये बदलाव यहीं तक सीमित नहीं रहेगा। राजा भोज जब कब्र से उठ कर खड़े हो जायेंगे तो गंगा राम साहू को गंगू तेली बनना पड़ेगा। दोनों बराबरी पर कैसे बैठ सकते हैं, कहाँ राजा भोज और कहाँ गंगू तेली! अतीत में जायेंगे तो जूता कम्पनी में काम करने वाले मजदूर को चमार हो जाना पड़ेगा और दलित सफाईकर्मी को मेहतर होना पड़ेगा। फिर उन्हें होटलों के कपों में चाय नहीं मिलेगी। वेद का वाक्य सुन लेने वाले दलित के कानों में पिघला शीशा डलवा दिया जायेगा। और, और, और, हम बिल्कुल पीछे चले जायेंगे, जहाँ पंडित पन्डित की जगह और हरिजन हरिजन की जगह।
आप कह रहे हैं कि यदि 1400 साल पुराने राजा भोज को शहर के सीने पर ठोका जा सकता है तो उससे पीछे क्यों नहीं जाया जा सकता। साँची के पास होने के कारण बहुत सम्भव है कोई अशोक जैसे बौद्ध राजा के राज्य के उदाहरण भी मिल जायें। जब धार के राजा भोज यहाँ तक फैल सकते हैं तो विदिशा का राजा यहाँ तक क्यों नहीं आ सकता। आप कहते रहिए, हम नहीं मानते सो नहीं मानते। संघ पारिवार की गाड़ी बैक होती है तो एक निश्चित सीमा तक बैक होती है, बीच में मुगल राज को छोड़ दिया, अंग्रेजों को छोड़ दिया, और जब हिन्दुओं की “वे आफ लाइफ” पर सुई टिक गयी तो गाड़ी रोक दी। हमारी गाड़ी हमारे हिसाब से पीछे जाती है।
अब यहाँ कोई भोपाली नहीं रहेगा और ताज महल को शिव मन्दिर बताने वाले भोपाल के इतिहास पुरुषों के नाम कुछ ऐसे लिए जायेंगे-
शकीला बानो भोजपाली
ताज भोजपाली
असद भोजपाली
कैफ भोजपाली
मंजर भोजपाली
वो तो अच्छा है कि भाजपा कार्यालय में झाड़ू लगाने को तैयार बैठे शायरे आजम भोपाली नहीं हुये बरना अन्यथा उन्हें तो भोजपाली होकर बड़ी खुशी होती।

वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 9425674629

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