व्यंग्य
मेंहदी से नहीं खून से रंगे हाथ और काँच की चूड़ियाँ
वीरेन्द्र जैन
क्या आप को पता है कि चूड़ियाँ कहाँ बनती हैं?
मेरा
मतलब काँच की चूड़ियों से है जो आपको पता ही है कि फिरोजाबाद में बनती हैं।
फिरोजाबाद भोपाल इन्दौर से बहुत दूर नहीं है जो वहाँ से चूड़ियां नहीं आ सकें।
फिरोजाबाद से आयी हुयी चूड़ियों से वैसे तो भोपाल इन्दौर के बाजार भरे रहते हैं।
चौक बाजार जाओ तो लगता है कि जैसे आधी दुकानें चूड़ियों की ही हैं। फिर आखिर ऐसी क्या
कमी थी कि प्रदेश के उद्योग मंत्री को कहना पड़ा कि उन्होंने चूड़ियाँ नहीं पहिन रखी
हैं। वे चाहें तो चाहे जितनी चूड़ियां पहिन सकते हैं और फिर भी कोई कमी नहीं आने
वाली। चाहे तो वे चूड़ियां पहिन कर गा भी सकते हैं कि मेरे हाथों में नौ नौ चूड़ियां
हैं। वैसे भी वे गाना तो गाते ही हैं सो नौ नौ की जगह सौ सौ भी कह सकते हैं।
चूड़ियां
पहिनना न पहिनना अपनी अपनी पसन्द की बात है और हिन्दू या मुस्लिम देश बनने से पहले
इतनी स्वतंत्रता तो देश में है ही कि नागरिक बुर्के से लेकर जो चाहे सो पहिन सकता
है या नागा बाबा तक हो सकता है। अभी पिछले वर्षों में ही सरकारी कर्मचारियों के
लिए शाखा में जाने पर प्रतिबन्ध हटा लिए जाने के बाद लड़कियों के एक स्कूल का
मास्टर स्कूल में नेकर पहिन कर आ गया था जिसकी नासमझों ने शिकायत कर दी थी, पर
समझदार सरकार के अधिकारियों ने उसके मानव अधिकार के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की
थी। इसलिए अगर प्रदेश के उद्योगमंत्री ने चूड़ियां नहीं पहिन रखी हैं तो हमें कोई
शिकायत नहीं है। उनके ही कुछ साथियों ने तो अंडरवियर तक नहीं पहिन रखा है जिनका
पता भोपाल की एक आर टी आई कार्यकर्ता की हत्या के आरोपियों की वीडियो रिकार्डिंग
से मिलता रहता है। वो तो सीबीआई से जाँच हो रही है इसलिए पता भी चल रहा है वरना
पालतू पुलिस तो अब तक क्लीन चिट दे चुकी होती। ऐसी क्लीन चिटें देते रहने का
उन्हें अब अभ्यास हो चुका है।
वैसे
सरकार में जितने भी मंत्री हों सबके लिए ड्रैस कोड लागू हो जाये तो बहुत ही अच्छा
है, अब ये भी कोई बात है कि उद्योग मंत्री चूड़ियां नहीं पहिनने पर गर्व कर रहा हो
और मुख्यमंत्री हरे काँच की चूड़ियां पहिन ले। मंत्रिमण्डल को एक स्वर से पहले तय
करना चाहिए कि वो चूड़ियां पहिने है या नहीं पहिने है। यह तो ममता बनर्जी की तृणमूल
कांग्रेस जैसा हाल हो गया कि पार्टी अध्यक्ष कुछ और कह रहे हैं और मंत्री पद पर
सुशोभित कुछ और कह रहा है। आखिर मंत्रिमण्डल की सामूहिक जिम्मेवारी होती है।
......................... पर रुकिए, हो सकता है कि उद्योग मंत्री ही सही हों क्योंकि चूड़ियां पहिनने के लिए मेंहदी से रंगे हाथ होते हैं खून से रंगे हाथ नहीं। वे सचमुच काँच की चूड़ियाँ नहीं पहिनेंगे। वैसे लोहे की भी चूड़ियां होती हैं जिन्हें कुछ लोग हथकड़ी कहते हैं।
......................... पर रुकिए, हो सकता है कि उद्योग मंत्री ही सही हों क्योंकि चूड़ियां पहिनने के लिए मेंहदी से रंगे हाथ होते हैं खून से रंगे हाथ नहीं। वे सचमुच काँच की चूड़ियाँ नहीं पहिनेंगे। वैसे लोहे की भी चूड़ियां होती हैं जिन्हें कुछ लोग हथकड़ी कहते हैं।
वीरेन्द्र जैन
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