व्यंग्य
पड़ोसी की टॉग
टूटने के सत्रह बरस
वीरेन्द्र जैन
अपनी आदत के विपरीत
मुंगेरीलाल काफी हाऊस में बहुत संयत और गंभीर होकर बैठा था। उसके पहने हुए कपड़े
धुले जैसे लग रहे थे वे जहॉ जहॉ भी फटे हों, वहॉ वहॉ फटे दिखाई नही दे रहे थे चाहे
तो उन्हैं सिल लिया गया था या इस तरह से पहना गया था कि फटे हुए हिस्से सीधे सामने
न दिखें।
''
मुंगेरीलाल, क्या बात हैं आज बहुत गरिष्ठ नजर आ रहे हो?'' रामभरोसे ने पूछा। दूसरे के फटे में टांग डालने की उसे आदत
हैं।
मुंगेरीलाल ने यथावत
गंम्भीरता ओढ़े हुए रामभरोसे को हिकारत की निगाह से देखते हुए कहा, '' तुम लोगों को अपने इतिहास, परंम्परा और संस्कृति का ज्ञान तो है नहीं। बात- बात पे ठिल्ल-ठिल्ल करके अपना
समय काट देते हो। जानते हो आज क्या दिन है ?
''
शनिवार । '' रामभरोसे ने छूटते ही उत्तर दिया।
''
अबे, दिन से मेरा मतलब दिन के महत्व से था वो क्या कहते हैं कि........” ज़ोश में मुंगरीलाल भूल गये
थे कि क्या कहना है।
''
ज्ञानी जी, आप ही बताइए कि क्या दिन है आज। '' रामभरोसे किसी नई बेवकूफी की बात सुनने और फिर उस बात का
कीमा बनाने के लिए पूरी तरह तैयार हो चुका था।
''
अबे आज से ठीक सत्रह
वर्ष पहले मेरे पड़ोसी टांग टूटी थी। आज उसकी सत्रहवी वर्षगॉठ है। ''
''
अब यूँ तो हर रोज कोई
न कोई घटना होती ही रहती हैं और टांग तुम्हारे पड़ोसी की टूटी थी, तुम्हारी नहीं। अब इसमें इस तरह गंभीरता ओढ़कर गधे बन जाने
का क्या मतलब?”
''
अब तुम्हैं कुछ पता तो
रहता नहीं, जानते हो यह वही पड़ोसी है जिसने मेरी छह इंच जमीन
दाब ली थी। बस, तभी से मेरा इससे झगड़ा हैं, यह न्याय का प्रश्न है। मैं उसका कुछ नही बिगाड़ सका, वह शक्तिशाली हैं,
पैसे वाला हैं, विधायक उसके घर पड़ा रहता है, न्यायपालिका,
कार्यपालिका, विधायिका सभी ने उसका साथ दिया। फिर आज से ठीक सत्रह वर्ष
पहले वह बाथरूम में फिसल पड़ा। उसकी टांग टूट गई। मैं प्रभु को बीच में ले आया कि
आखिर वही सुनता हैं उसके यहॉ रिश्वत नही चलती,
उसके यहॉ देर हैं पर
अंधेर नही, अत: इस दिन को मैं प्रभु के न्याय दिवस के रूप में
मानता हूँ। मेरा विश्वास हैं कि मेरी जमीन दबाने के कारण और मुझे इस व्यवस्था से
न्याय न मिलने के कारण ही प्रभु ने उसे बाथरूम में भेजा, वहॉ फिसलवाया ओर उसकी टांग तोड़ दी। अब जैसे आप रावण को मारे
जाने वाले दिन के रूप में दशहरा मनाते हैं उसी तरह में पड़ोसी की टांग टूट जाने की खुशी
में आज के पवित्र दिन को न्याय दिवस के रूप में मनाता हूँ।
''
पड़ोसी की टांग टूटने
के सत्रह बरस '' इस विषय पर समारोह आयोजित
होना चाहिए व भोज होना चाहिए '' रामभरोसे ने भरसक गंभीर बनकर
कहा। उसे आज के मनोरंजन का विषय मिल चुका था।
रामभरोसे ने कार्यक्रम की रूप
रेखा बनाने की तैयारी में कागज और पेन मंगा लिए व मुंगेरीलाल की तरफ से काफी का
आर्डर दे दिया। लेखों भाषणों और गोष्ठियों के कुछ विषय यूँ तैयार हुए :
1- टांग टूटने के सत्रह बरस।
2- प्राकृतिक न्याय की व्यवस्था और हमारा समाज।
3- टूटी टॉग की दशा और दिशा।
4- स्वत: टॉग टूटना - एक अहिंसात्मक न्याय।
5- न्याय का स्वप्न और टांग का टूटना।
श्- सत्रह वर्षो में टांग टूटने के क्षेत्र में प्रगति।
7- टांगे टूटने का इतिहास ।
8- आर्थोपोड्स का विकास।
इतने में जुगाडूपाँडे आ गया। उसकी
संस्कृति मंत्री के पास पहुँच है। आयोजन का मौका देखकर वह खिल उठा- उसने कहा, '' मुझे जरा जल्दी से विषय दो, मैं इसे लेकर मंत्रालय तक जाता हूँ। शाम को संस्कृति भवन में पचास-साठ
रिटायर्ड बुद्विजीवियों को बटोर लाना। मैं संस्कृति मंत्री से समय एंव इस
महत्वपूर्ण आयोजन के लिए अनुदान का चेक
लेकर आता हूँ। ये फालतू बुद्विजीवी जब भी बैठ जायेंगे तो विषय को अपनी अपनी जगह से
खीच-तान कर ऐसा फैला ही लेगे वह हिन्दूस्तान का नक्शा बनकर रह जाए। ''
रामभरोसे ने तुंरत जुगाडूपाँडे
के कान में कुछ कहा जिसका मजलब बिना सुने ही सबकी समझ में आ गया कि वह अनुदान की राशि को इतना स्वीकृति कराने
के लिए कह रहा होगा जिससे कार्यक्रम के बाद उसकी सफलता की खुशी में शाम की दारू
पार्टी के लिए भी पैसा बच जाए। जुगाडूपाँडे
ने उसे आश्वस्त किया कि प्रमुख कार्यक्रम तो वही हैं, शेष तो उसकी भूमिकाएं हैं।
रात्रि में मुंगेरीलाल ने नशे
में धुत होकर लौटते समय अपने पड़ोसी को भरपूर गालियॉ दीं। पड़ोसी ने उसके नशे में
होने के कारण अहिंसा का परिचय दिया। फिर शेष विश्व की भॉति दोनो चैन की नींद सो
गए।
इस तरह टॉग टूटने के सत्रह
बरस का भव्य आयोजन संपन्न हुआ।
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वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629
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