व्यंग्य
अगर पैसे पेड़ पर लगते तो......................
अगर पैसे पेड़ पर लगते तो......................
वीरेन्द्र जैन
राम
भरोसे के हाथ में हमेशा अखबार रहता है और उसकी हथेलियों की गरमी से ठंडी ठंडी
खबरें भी गर्म हो जाती हैं। हमेशा की तरह मुझे आज भी उम्मीद थी कि वह अखबार फैला
कर कोई गरम-गरम या मसालेदार खबर पढवायेगा, पर उसने ऐसा नहीं किया। कुर्सी पर बैठ
कर सीधा सवाल दाग दिया “
ये बताओ कि ये वाक्य वनस्पति शास्त्र का है, अर्थ शास्त्र का है, राजनीति शास्त्र
का है, या पर्यावरण से सम्बन्धित है!”
‘पहले
सवाल तो बताओ?”
मैंने उसकी पहेली से उलझते हुए पूछा
“
अरे तुम कौन सी दुनिया में रहते हो तुम्हें आज के ताजा घटनाक्रम की भी खबर नहीं
रहती! मैं अपने मौन मोहन सिंह जी के ताजा बयान की बात कर रहा हूं जो सोनिया जी के
चाहने तक देश के प्रधानमंत्री हैं।“
वह ऐसे बोला जैसे बहुत रहस्य की बात बता रहा हो, बरना ये बत किसे नहीं पता।
“अच्छा,
अच्छा, वही पैसों के पेड़ पर लगने वाली बात, हाँ भाई कहा तो उन्होंने सही है, पेड़ों
पर पत्तियां लगती हैं, फूल लगते हैं, शाखाएं लगती हैं, कभी कभी फल लगते हैं,
घोंसले लगते हैं, अमर बेलें चढी रहती हैं, दीमक लगती है, मकड़ी के जाले लगते हैं,
कीलें ठोंक कर विज्ञापन लगते हैं, कट कर गिरी पतंगें अटक जाती हैं, और अटकी रहती हैं,
पर पैसे नहीं लगते।“
मैंने अपना ज्ञान बघारा।
“
पर पेड़ों पर वोट भी नहीं लगते, जिनके अचार से सरकार बनती है, उन्हें भी बड़े जतन से
कबाड़ने पड़ते हैं। पर मैंने तुम से पूछा था कि इस विषय का शास्त्र क्या है जो
सम्भवतः तुम नहीं जानते। अच्छा छोड़ो ये बताओ कि अगर पैसे पेड़ पर लगते होते तो क्या
होता। “ रामभरोसे ने
कहा तो प्रतिउत्तर में मैंने प्रस्तावित किया कि इस चिंतन को ज्वाइंट वेंचर में
किया जाये। मैं और राम भरोसे दोनों ही उसी तरह चिंतन की मुद्रा में बैठ गये जैसे
कभी जवाहरलाल नेहरू की फोटो छपा करती थी, जिसमें एक उंगली गाल पर और बाकी ठोड़ी के
नीचे रहती थीं। इस चिंतन से जो गहरे मोती निकाले वो इस तरह थे।
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अगर पैसे पेड़ों पर लगते तो देश में जंगल
ही जंगल होते, क्योंकि जंगल के पैसों पर सरकार का अधिकार होता
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अगर पैसे पेड़ों पर लगते तो ज्यादातर गैराअदिवासी
लोग. आदिवासी कहलाना चाहते और कहते कि गर्व से कहो हम जंगली हैं,
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अगर पैसे पेड़ों पर लगते तो नगरों गाँवों
के घरों में एक, दो पाँच, दस, पचास, सौ, पाँच सौ और हजार रुपयों के अलग अलग पेड़
लगे होते। सबको घरों में पेड़ लगाने के लिए सरकार से अनुमति लेनी पड़ती और वीआईपी लोग
पाँच सौ या हजार से नीचे का पेड़ ही नहीं लगाते। एक दो रुप्यों के पेड़ तो इमली,
बेरों की तरह रस्तों पर लगे रहते,
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कुछ लोग बिना अनुमति के चोरी से हजार पाँच
सौ रुपयों के पेड़ लगा लेते जिन्हें काले पेड़ कहा जाता और छापों में पकड़े जाने पर
पता लगता कि किसने कितने पेड़ लगाये हुए थे।
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बाबा रामदेव जैसे लोग कहते कि हजार पाँच
सौ के पेड़ों के बीज ही खत्म कर दो तब काले पेड़ों की समस्या से मुक्ति मिलेगी। वे
खुद दवाओं के नाम पर अपने आश्रम कम दवा उद्योग में ऐसे सैकड़ों पेड़ लगा कर
रखते।
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अगर पैसे पेड़ों पर लगते तो नीति वाक्य
सिखाने वाले कहते कि जैसा कर्म करेगा वैसा पेड़ देगा भगवान क्योंकि तब लोग फलों के
पेड़ ज्यादा नहीं लगाते और फल देने का मुहावरा नहीं बनता
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अगर पैसे पेड़ों पर लगते तो फिर अलग से
पर्यावरण मंत्रालय बनाने की जरूरत ही नहीं रहती क्योंकि कोई कालिदास भी कालिदास की
तरह व्यवहार नहीं करता
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वन विभाग और वित्त विभाग के बीच मुकदमा चल
रहा होता
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वगैरह
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अगर पैसे पेड़ों पर लगते होते तो सबसे बड़ी
बात यह होती कि श्री मनमोहन सिंह्जी प्रधानमंत्री नहीं होते
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा सिनेमा के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मोबाइल 9425674629
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