व्यंग्य
ईश्वर और आतंकवादी
वीरेन्द्र जैन
रामभरसोसे ईश्वर की तलाश् में है। सरकार आतंकवादी की तलाश् में है। दोनों परेशान हैं कि दोनों को दोनों नहीं मिल रहे।
दोनों ही छुपे रहते हैं। उनके कारनामों भर का पता चलता है जिससे उनकी उपस्तिथि का भ्रम बनता है। काम चाहे जिसने किया हो पर इनके नाम पर मढ दिया जाता है।
रामभरोसे के आठ बच्चे हैं, और वह इन सबके लिए कह देता है कि सब ईश्वर की देन हैं जबकि मुहल्ले भर को उसके एक एक बच्चे के बारे में पता है। शाखा के एक भाई साहब रात को चोरी चोरी उसके घर के बाहर एक स्टिकर चिपका गये थे 'हिन्दू घटा देशा बँटा'। तब से राम भरोसे जी ने अपने घर में ंहिंदुओं को घटने नहीं दिया। बच्चों के हिस्से की रोटी घट गयी। दूघ घट गया। पत्नी के तन पर का कपड़ा जहाँ जहाँ से फटता गया वहाँ वहाँ से घटता गया॥ पर रामभरोसे ने हिंदू नहीं घटने दिया। हर साल जब ताली ठाेंक कर बधाई देने वाले अपनी खरखरी आवाज में नाच गा कर बधाई दे रहे होते तो मुहल्ले के लोगों को पता चलता कि रामभरोसे ने एक हिंदू और बढा दिया है। रामभरोसे मुश्किल से पाँच रूप्या निकाल पाते जबकि वे पाँचसौ माँग रहे होते। अंतत: वे रूपये रामभरोसे के मुँह पर मार कर और थूक कर चले जाते। रामभरोसे देशाभक्ति से अपनी शर्म उसी तरह ढक लेते जिस तरह बहुत सारे लोग अपने पाप ढक लेते हैं, अपनी साम्प्रदायिकता ढॅक लेते हैं।
आतंकवादी भी दस घटनाएँ करता है और सौ घटनाएँ अपने नाम पर जुड़वा लेता है। शाम को दफ्तर का चपरासी जाते समय बाहर लगा बल्ब खींच ले जाता है और अगले दिन कह देता है कि आतंकवाद बहुत बढ गया है, देखो आतंकवादी रात में बल्ब खींच कर ले गये। अब छुपा आतंकवादी सफाई देने थोड़े ही आ सकता है। हत्या चोरी, डकैती अपहरण सारे अपराध आतंकवादियों के नाम लिख कर पुलिस दिन दहाड़े टांगें पसारकर सो जाती है। जब जागती है तो जाकर दो चार डकैतीं डाल लीं, राहजनी कर ली, दारू पी मुर्गा खाया, वीआई पी डयूटी की और सो गये। प्रैस वालों से कह दिया कि सारे अपराध आतंकवादी कर गये। ज्यादातर आतंकवादी विदेशी या विदेश प्रेरित माने जाते हैं इसलिए मामला विदेश मंत्रालय से सम्बंधित माना जाता है। बेचारे विदेशमंत्री ओबामा और हिलेरी के नखरे देखें या या तुम्हारी चोरी डकैती की चिंता करें। उनका भी काम यह कह कर चल जाता है कि विदेश प्रभावित आतंकवाद बहुत बढ गया है।
सरकार परमाणु बम फोड़ सकती है, सीमा पर फौज खड़ी कर सकती है, मिसाइल का परीक्षण कर सकती है पर आतंकवादी नहीं तलाश सकती। जैसे रामभरोसे को ईश्वर नहीं मिलता वैसे ही सरकार को आतंकवादी नहीं मिलता।
मिल भी जाये तो आतंकवादी को पकड़ने की परंपरा नहीं है, उसे मार दिया जाता है। अगर उसे पकड़ लिया गया तो वह बता सकता है कि कि मैंने पुलिस के रास्ते में बम जरूर बिछाये थे पर दफ्तर का बल्ब नहीं चुराया, डकैती नहीं डाली, राहजनी नहीं की, इसलिए उसे मार दिया जाना जरूरी है। ज्ञात तो ज्ञात अज्ञात आतंकवादी तक मार गिराये जाते हैं। देश ने शायद ऐसी गोलियाँ तैयार कर लीं हैं जो आंख मूँद कर चलाये जाने पर भी किसी आतंकवादी को ही लगती हैं और उसे मार गिराती हैं। सैनिक की गोली से मारा जाने वाला हर व्यक्ति आतंकवादी होता है। उसकी धर्मप्राण गोली किसी निर्दोष को लगती ही नहीं।
रामभरोसे ईश्वर की आराधना करते हैं, पूजा करते हैं, आरती करते हैं, व्रत -उपवास करते हैं माथा रंगीन करते हैं, चोटी रखते हैं, हाथ में कलावा बाँधते हैं, जहाँ कहीं सिंदूर लगा पत्थर दिख जाए तो माथा झुकाते हैं, पर ईश्वर नहीं मिलता।
सरकार के सैनिक भी इधर से उधर गाड़ियाँ दौड़ाते हैं, मुखबिर पालते हैं, संदेशों की रिकार्डिंग करते हैं डिकोडिंग करते हैं, रात रात भर जागते हेैं, कोम्बिंग आपरेशान करते हैं, रिश्तेदारों को टार्चर करते हैं, पर आतंकवादी नहीं मिलते।
दोनों की ही ग्रहदशा एक जैसी है। दोनों के ही आराध्य अंर्तध्यान हैं। रामभरोसे ने मंदिर में उसकी संभावित मूर्ति बैठा रखी है। सुरक्षा सैनिकों ने उनके संभावित चित्र बनवा रखे हैं। दोनों ही सोचते हेैं कि एक बार मिल भर जाये तब देखते हैं कि फिर कैसे छूटते हेैं हमारी पकड़ से। शायद उसी खतरे को सूंघ कर ही न इश्वर खुले में आता है और ना ही आतंकवादी।
ईश्वर सर्वत्र है। आतंकवादी भी सर्वत्र हैं- सरकारी नेताओं की भाषा में कहें तो वर्ल्डवाइड फिनोमिना। वे पंजाब में रहे हैं, वे कश्मीर की जन्नत में रह रहे हैं, वे असम में हैं वे त्रिपुरा में हैं, नागालैण्ड में हैं, वे तामिलनाडु में हेैं, वे तेलंगाना में हैं, वे बस्तर में हैं, बिहार उड़ीसा झारखण्ड में हेैं। वे केरल में उभर आते हें व पश्चिम बंगाल में वारदातें कर के भाग जाते हेैं। वे कभी अयोध्या में दिखते हैं तो बनारस और मथुरा में भी दिख सकते हैं, वे मालेगाँव में होते हें तो बेलगाँव में भी होते हेैं। वे कहाँ नहीं हैं। वे लंका में हैं, वे अफगानिस्तान में हैं, नेपाल में हैं और यहाँ तक कि अमेरिका की चाँद पर भी बाजे बजाते रहते हेैं।
वे चित्र प्रदशर्िनियों में चित्र फाड़ते हैं, फिल्में नहीं बनने देते, बन जाती हेैं तो चलने नहीं देते, वे क्रिकेट के मैदान में पिचें खोद देते हैं, वे लाखों संगीतप्रेमियों को प्रभावित करने वाले गजल गायकों के कार्यक्रम नहीं होने देते, वे दिलीप कुमार के घर के बाहर दिगंम्बर प्रर्दशान करते हैें। वे मंदिर तोड़ते हैं, गिरजा तोड़ते हैं मस्जिद तोड़ते हैं। वेलंटाइन डे पर प्रेमियों का दिल तोड़ते हैं।
अगर सरकार की ऑंख भेंगी ना हो और वो विकलांग न हो तो बहुत सा आतंक साफ साफ देखा जा सकता है। और उसी तरह अगर रामभरोसे का मन साफ हो तो तो उसे भी ईश्वर दिख सकता है जैसे गाँधीजी को दरिद्र में दिख गया था और उन्होंने उसे दरिद्र नारायण का नाम दिया था। पर अभी ना तो सरकार को आतंकवादी दिख रहा है और ना ही रामभरोसे को ईश्वर।
वीरेन्द्र जैन
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