सोमवार, जून 22, 2009

बच्चे और गड्ढे

व्यंग्य
बच्चे और गङ्ढे
वीरेन्द्र जैन
जैसे यह तय करना मुश्किल है कि मुर्गी पहले आयी या अण्डा उसी तरह यह तय करना भी कठिन है कि गड्ढ़ों में गिराने के लिए बच्चे पैदा किया जाते है या पैदा हो गये बच्चे को गिराने के लिए गङ्ढे खोदे जाते हैं । बहरहाल कुछ भी हो पर जो परिणाम मुर्गी और अण्डों का होता है वही आजकल बच्चों और गङ्ढों का होने लगा है। महीने में कोई सप्ताह ऐसा नही होता जिसमें कोई बच्चा किसी गङ्ढे में गिर गर राष्ट्रीय समाचार न बनता हों। राष्ट्रीय समाचार बनने को व्याकुल कई नेता और कवि तो गङ्ढों के आस पास ही घूमते पाये गये है। ताकि किसी तरह राष्ट्रीय समाचारों का हिस्सा बन सकें। पर यह गङ्ढों की संकीर्णता ही रही कि उन्होने इन मोटी अकल वालों को अपने अन्तर में नही समेटा। वे बेचारे हत्या में फंसे रिशवत में फंसे, सवाल पूछने में फंसे, सांसद निधि के दान में फंसे, कबूतरबाजी में फंसे, डकैती, चोरी, अपहरण, मारपीट, साम्प्रदायिक बलवों में फंसे, पर गड्ढ़ों में नही फंस पाये।
गङ्ढों में बच्चे ही फंसे।
लोग बच्चे दर बच्चे पैदा करते रहे और योजनाएं बनाते रहे, इसे डाक्टर बनायेंगे, इसे इंजीनियर बनाएंगे, इसे वकील बनाएंगे और इस चौथे वाले को गङ्ढे में फंसने के लिए छोड़ देंगे। अगर सचमुच फंस गया और कुछ चैनलों की टीअारपी बढ़वा दी तो हो सकता है यह डाक्टरों, इंजीनियरों व वकीलों से कई गुना कमाई बचपन में ही करके गङ्ढे से बाहर निकले। सरकार ने भले ही बालश्रम के खिलाफ कानून बना कर मुक्ति पा ली हो और होटलों, ढ़ावों, मोबाईल मैकेनिकों की दुकानों पर काम करने वालों को काम से छुड़ा कर भूखा मरने के लिए छोड़ दिया हो पर गङ्ढे तो खुले छोड़ रखे हैं। अगर कोई काम नही है तो गङ्ढों में ही गिर लो- चौबीस घंटे समाचार देने वाले चैनलों को कुछ काम ही मिलेगा। गङ्ढे में कैमरा डाल कर वे इस छोटे सद्दाम की डैथ का लाइव टेलीकास्ट दिखाते रहेंगे।
ईसा मसीह ने कहा था कि स्वर्ग के दरवाजे उनके लिए खुले है। जिनके ह्रदय बच्चों की तरह हैं पर यह मामला उन बड़े बूढों के लिए है जो अपनी लम्बी उम्र के बाद भी अपना ह्रदय बच्चों की तरह रख सकें। जो अभी बच्चे ही हैं उनके लिए स्वर्ग के दरवाजे खोलने के लिए हमें कुछ करना होता है सों हमने गडढे खोद रखे है। हमारे गॉव देहात, विलियर्ड की टेबिल जैसे हो गये हैं जिसके चारों कोनों पर गङ्ढे हैं जिनमें हम गोल गोल रंगीन गेंदों जैसे बच्चों को गिराने के लिए ठेलते रहते है।
जो बच्चे ऐसे गडढों में गिरने से बच जातें उनके लिए बड़ी बड़ी कोठियॉ बनवा ही जाती हैं जो निठारी गॉव जैसे बच्चों को बुला बुला कर गङ्ढों में दबाते रहते हैं लगता है नालों पर सरकार इसीलिए अतिक्रमण कराती रहती है और नालों की सफाई नहीं करवाती। कुछ राज्य सरकारें पाठयक्रम बदलवा रही हैं और हो सकता है कि अगले पाठयक्रम में गणित के परचों में कुछ ऐसे सवाले हों-
' यदि एक नाले की सफाई से बीच बच्चों के कंकाल निकल सकते हैं तो पूरे नोएडा के नालों की सफाई कराने पर कितने बच्चों के कंकाल निकलेंगे? नोएडा में कुल कितने नाले हैं यह वहॉ के निगम वालों को भी पता नही है।
नगर निगम अपनी आय में वृद्वि करने के लिए मेडिकल कालेजों को नरकंकाल सप्लाई करने के ठेके ले सकती है। बस उसे नालों की नियमित सफाई करानी पड़ेगी। पर ऐसा कराने पर चिकनगुनिया फैलाने वाले मच्छर और बहुराष्ट्रीय कंपनियाें की दवाएं बिकवाने वाले झोलाछाप डाक्टर नाराज हो सकते हैं।
वीरेन्द्र जैन
2/1शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629

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