रविवार, अगस्त 15, 2010
सरकार का जुआ और कामन वैल्थ गेम्स
व्यंग्य
सरकार का जुआ और कामन वैल्थ गेम्स
वीरेन्द्र जैन
ममताजी उस प्रधानमंत्री की केबिनेट की सदस्य हैं जो माओवादियों को सबसे बड़ा खतरा बताते नहीं थकते। दूसरी ओर वे माओवादियों के साथ भी रैली करती हैं और उनके नेता की मौत को सरकारी हत्या बताते हुए निन्दा करती हैं।
पत्रकार ने ममताजी से पूछा कि आप यह सब कैसे कर लेती हैं तो वे बोलीं – “इसमें नया क्या है, हम तो तब से खतरों के खिलाड़ी हैं जब हम खेल मंत्री हुआ करते थे। तुम अभी नये हो और तुमको पता नहीं कि हम तो नरसिंह राव मंत्रिमण्डल में खेल मंत्री भी रहे है और हमने कलकत्ता के ब्रिग्रेड परेड ग्राउंड में अपनी सरकार के ही खिलाफ रैली करने की इजाजत मांगी थी क्योंकि हमारी सरकार खुल कर नहीं खेलने दे रही थी। बाद में नरसिंह राव ने मुझे मंत्रिमण्डल से बाहर निकाल दिया था। हम तो जो कुछ भी करते हैं अपने वालों के खिलाफ ही करते हैं।“ ममताजी गलत भी नहीं हैं। वे उस छोटे से बच्चे की तरह हैं जो अपनी ही माँ की गोद में लेटा हुआ उसके मुँह की तरफ लातें चलाता रहता है। न गोद से उतरता है और न ही लातें चलाना बन्द करता है। कांग्रेस में रहते हुये साफ कांग्रेस की माँग उठाते उठाते उन्होंने बंगाल से कांग्रेस को ही साफ कर दिया। एक बार कलकत्ता के अलीपुर में भाषण देते देते उन्होंने एक शाल अपने गले में लपेट लिया और उसकी गाँठ लगाने का खेल दिखा कर आत्महत्या-आत्महत्या खेलने लगीं। 1996 में जब उनकी पार्टी सरकार का हिस्सा थी, तब भी वे पेट्रोल कीमतों में वृद्धि के खिलाफ सदन के गर्भ गृह में उतर गयीं, और उस समय के समाजवादी पार्टी के हनुमान अमर सिंह की कालर पकड़ ली थी। खेल खेल में सब चलता है।
खेल खेलने में उन्होंने तत्कालीन रेल मंत्री राम विलास पासवान को भी नहीं छोड़ा और जिस दिन उन्होंने रेल बजट प्रस्तुत किया था तो उन्होंने अपना शाल उनके मुँह पर यह कहते हुए दे मारा था कि उन्होंने बजट में बंगाल की उपेक्षा की थी। इसके साथ ही उन्होंने खेल खेल में अपना स्तीफा भी दे दिया था। उस समय के रेफरी पी ए संगमा ने उनका स्तीफा स्वीकार नहीं किया था और संतोष मोहन देव ने मध्यस्थता करके खेल खेल में उनसे स्तीफा वापिस करवा दिया था। 1998 में एक बार फिर जब महिला आरक्षण बिल पर चर्चा हो रही थी और समाजवादी पार्टी गर्भ गृह में नारे लगा रही थी तब ममता बनर्जी ने समाजवादी पार्टी के सांसद दरोगा प्रसाद सरोज का कालर पकड़ कर घसीटते हुए उन्हें गर्भ गृह से बाहर खींच लिया था।
इसी खेल खेल में 1999 में वे अटल बिहारी वाजपेयी वाली एनडीए सरकार में सम्मलित हो गयीं और किसी बच्चे की तरह खिलोने की तरह रेल [मंत्रालय] लेने की जिद कर बैठीं जिसे अल्पमत सरकार को पूरा करना पड़ा। यहाँ भी उन्होंने खेल खेलना नहीं छोड़ा और 2001 में एनडीए सरकार पर आरोप लगाती हुयी केबिनिट के बैठक से बाहर निकल आयीं। बाहर आकर उन्होंने सोनिया गान्धी के नेतृत्व वाली कांग्रेस से समझौता कर लिया क्योंकि बंगाल में चुनाव आने वाले थे और वहाँ भाजपा का कोई समर्थन नहीं था। इस चुनाव में हार जाने के बाद 2004 में वे फिर से अटल बिहारी मंत्रिमण्डल में सम्मलित हो गयीं और कोयला और खनिज मंत्रालय को सुशोभित किया। इसी साल हुये शाइनिंग इंडिया की चमक के चुनाव में अपनी पार्टी से वे अकेली ही चुनाव जीत सकीं। वैसे तो वे सब कुछ खेल खेल में करती हैं पर चुनावों को खेल भावना से नहीं लेतीं और हार जाने के बाद हमेशा आरोप लगाती हैं कि चुनावों में रिगिंग ही नहीं वैज्ञानिक रिगिंग हुयी। बहरहाल जीत जाने के बाद चुनाव ठीक हुये होते हैं। फिर कभी वे नन्दीग्राम को खेल का मैदान बना देती हैं तो कभी सिंगूर को, तो कभी लालगढ को।
ममताजी पैसे का खेल नहीं खेलतीं। यह खेल उनके दूसरे साथी खेलते हैं और उनके खेल में मदद करते हैं। अब वे बारूद के खेल में शामिल हो रही हैं और गा रही हैं मेरी मर्जी.........। असल में ममताजी के तरह तरह के खेलों के होते हुए कामन वेल्थ गेम कराने की जरूरत नहीं थी पर अगर उन्हें नहीं कराते तो करोड़ों, अरबों रुपयों का खेल कैसे हो पाता ! खेल की भावना इतनी प्रबल है कि सरकार देश से जुआ खेल रही है।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 9425674629
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सच्चाई को उजागर करने वाला
जवाब देंहटाएंस्तरीय व्यंग्य परोस कर
आपने पाठकों पर बड़ा उपकार
किया है।
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
अच्छा व्यंग
जवाब देंहटाएंप्रशंसनीय लेख
आभार