शनिवार, जून 16, 2012

व्यंग्य- नये नामकरण करने वाले


व्यंग्य
नये नामकरण करने वाले
वीरेन्द्र जैन
       घर में पंडाल सजा हुआ था तथा अपने सबसे अच्छे समझे जाने वाले कपड़े पहिने लोग इधर से उधर हो रहे थे [फिर भी कहीं नहीं पहुँच पा रहे थे, गोया लोग न होकर मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए के सरकार हो]। बात यह थी कि घर में एक आयोजन था जिसे नामकरण संस्कार के नाम से जाना जाता है। अगर शेक्सपियर भी हिन्दुस्तानी होता तो वो भी ये नहीं कहता कि ‘नाम में क्या रखा है’। अरे भाई नाम में और कुछ रखा हो या न रखा हो कम से कम नामकरण संस्कार तो रखा ही है जिसमें सुन्दर स्वादिष्ट भोजन मिष्ठान्न के अलावा पण्डित को भरपूर दक्षिणा का सुख तो रखा ही है।
       मध्य प्रदेश में तो आजकल इसका महत्व बहुत ही बढ गया है। दर असल मध्य प्रदेश में अच्छे पंडित नहीं पाये जाते थे इसलिए प्रदेश की सरकार ने एक बिहारी पंडित का आयात कर लिया जो यहाँ के नासमझों को समझा रहा है कि नामकरण कैसे किया जाता है। उसने न केवल योजनाओं के ही नाम बदलवा दिये अपितु व्यक्तियों के नाम बदलवाने पर भी उतारू हो गया है। लाड़लीलक्ष्मी, कन्यादान, जलाभिषेक, बलराम योजना, से वही काम हो सकता है जो शिक्षा में सरस्वती शिशु मन्दिर के प्रवेश से हो सकता है, अर्थात शिक्षा का साम्प्रदायीकरण। उजाड़ मस्ज़िद को मन्दिर बनाने के पीछे धार्मिक कारण थोड़े ही होते हैं वो तो इसलिए किये जाते हैं ताकि अलग अलग समुदाय के लोग आपस में लड़ने लगें। रही मन्दिर की सो हजारों मन्दिर उजाड़ पड़े हैं जिनमें कोई दिया भी नहीं जलाता। इस बिहारी पंडित ने नामकरण के सिलसिले में नया शगूफा यह छोड़ा है कि उसने प्रदेश की राजधानी भोपाल नगर की प्रथम नागरिक अर्थात मेयर श्रीमती कृष्णा गौर से शुरुआत की है और उनका नाम कृष्णा गौर से कृष्णा यादव गौर कर दिया है। मजे की बात यह है यह काम उस राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक रहे व्यक्ति ने किया है जिसका दावा है कि वे जातिवाद का विरोध करने के लिए व्यक्तियों को उसके जातिसूचक उपनाम से पुकारे जाने की जगह उसके प्रथम नाम से पुकारते हैं जैसे के अटल बिहारी वाजपेयी को वाजपेयी जी न कह कर अटलजी कहते हैं। पर जबसे संघ मोदी के चरणों में शरणागत हुआ है तब से उसके अनुशासन का कचूमर बन गया है। इसलिए यह उम्मीद करना कि नामकरण पुराने तरीके से होगा, एक कोरी कल्पना से अधिक कुछ नहीं है।
       मैं सोचता हूं कि यह परम्परा और आगे बढेगी और इसका जो स्वरूप बनेगा वो कुछ कुछ निम्न प्रकार ही होगा- 
·         सुन्दरलाल पटवा का नाम सुन्दरलाल जैन पटवा हो जायेगा
·         शिवराज सिंह चौहान का नाम शिवराज सिंह कुर्मी चौहान हो जायेगा
·         ईश्वरदास रोहाणी का नाम ईश्वरदास सिन्धी रोहाणी हो जायेगा
·         बाबूलाल गौर का नाम बाबूलाल यादव गौर हो जायेगा
·         उमा शंकर गुप्ता का नाम उमाशंकर वैश्य गुप्ता हो जायेगा
·         कैलाश विजयवर्गीय का नाम कैलाश ब्राम्हण विजयवर्गीय हो जायेगा
·         सरताज सिंह का नाम सरताज सरदार सिंह हो सकता है
पर इस बिहारी पंडित को पिछड़ों व दलितों के नामकरण में बड़ी दिक्कतें आ सकती हैं। दलित उत्पीड़न का आरोप लगेगा तो जमानत तक नहीं होगी। जिन महिलाओं ने अंतर्जातीय विवाह के बाद अपना नाम नहीं बदला है उनके नाम में परेशानियां आयेंगीं। उमा भारती जैसी साध्वियाँ जो जब साध्वी के चोले में प्रगट होती हैं तो ‘जाति न पूछो साधु की’ वाला रूप रखती हैं किंतु जब चुनाव में खड़ी होती हैं तो लोधी हो जाती हैं, पता नहीं उनके साथ क्या होगा!
  रामलीला पार्टी को कुछ न कुछ स्वांग भरते रहना होता है, अगर इस में न उलझाये तो लोग पानी सड़क बिजली की बात करने लगते हैं।
वीरेन्द्र जैन
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