शनिवार, जून 16, 2012

व्यंग्य- कारन कवन नाथ मोहि मारा


व्यंग्य
कारन कवन नाथ मोहि मारा
वीरेन्द्र जैन
       संजय जोशी निकाल बाहर किये गये। और यह मामला गुपचुप नहीं हुआ, अपितु भरी सभा में हुआ। भीष्म, गुरुद्रोण बगैरह बगैरह सब देखते रह गये और द्रोपदी का चीर हरण हो गया। द्रोपदी का चीर तो कृष्ण ने बढा दिया था पर इस महाभारत की लीला में तो कोई लीलाधर सामने नहीं आया। जिन्होंने संजय जोशी को अन्दर किया था वे ही उसे आया है सो जायेगा, राजा, रंक, फकीर की तरह बाहर जाते देखते रहे। गालिब चचा कह गये हैं कि-
निकलना खल्द से आदम का सुनते आये थे लेकिन
बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले
पर वहाँ एक कूचे के बाद दूसरी गलियाँ तो मिलती हैं, यहाँ तो जहाँ जहाँ गये वहाँ वहाँ से निकाले गये, मुम्बई से लखनऊ जाने के रास्ते को भी तय करने की कोशिश की गयी कि वो गुजरात से होकर न हो। हवा में गन्ध तक न पहुँचे। तानाशाह की शान में गुस्ताखी न पड़े। ऐसा हुआ भी पर जहाँ भेजा वहाँ भी नहीं रहने दिया गया। वहाँ से भी निकलना पड़ा। चल उड़ जा रे पंछी कि अब ये देश हुआ बेगाना। कश्मीरी पंडित तो राज्य के एक हिस्से को छोड़ कर दूसरे हिस्से में रह रहे हैं, उस पर इतनी हाय तोबा है कि सरकार को इन विस्थापित नागरिकों को गत दो दशक से  प्रतिमाह आर्थिक मदद दे रही है जो चार हजार रुपये प्रतिमाह, नौ किलो गेंहूँ, दो किलो चावल, और एक किलो चीनी तक सीमित है। धरती की जन्नत छोड़कर आने वालों को दस गुणा बारह का टीन की छत वाला एक आश्रय उपलब्ध कराया गया है। पर संजय जोशी को तो वह भी नहीं मिला। कश्मीरी पंडितों के लिए स्यापा करने वाले तो बहुत सारे रुदाले हैं पर संजय जोशी के लिए कोई आंसू नहीं बहा रहा कि कहीं मोदी न देख ले। अब वे घर के रहे न घाट के। जिन शिवराज सिंह चौहान का राजतिलक करवाया था वे भी मुँह में दही जमा कर बैठे रहे। जिन उमाभारती के साथ पार्टी में अन्दर किया गया था वे भी ध्यानमग्न हो गयीं।
       जो अपने साथी पर हुए अन्याय के खिलाफ आवाज नहीं उठा सके वे कहते हैं कि हम जनता के साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज उठाएंगे। गर्वीले गुजरात ने मराठा साम्राज्य ध्वस्त कर दिया। अध्यक्ष ने विशेष अधिकार से सम्मेलन गुजरात में नहीं होने दिया था और अपने महाराष्ट्र में आयोजित किया, पर फिर भी चली गुजरात की।
       वैसे भाजपा में ये तो चलता ही रहता है,  यह तो मौल्लिचन्द्र शर्मा के समय से चला आ रहा है, बलराज मधोक ने तो बड़ों बड़ों के खिलाफ किताबें लिख मारी थीं पर दुर्भाग्य कि वे ब्रेल लिपि में नहीं थी और जिनकी दृष्टि बाँध दी गयी हो उन्हें क्या दिखता है? कल्याण सिंह का तो पता है, पर आज मदनलाल खुराना कहाँ हैं, उमाभारती भाजपा में तो चुहिया बनकर वापिस घुस गयीं पर उनके गुरू गोबिन्दाचार्य तो भटक भटक कर रामदेव को भजने को विवश हो गये हैं। थिंक टैंक से सड़ाँध आने लगी है। उमा भारती का भी मध्यप्रदेश निकाला हो गया है, खबरदार जो मध्यप्रदेश की धरती पर झांका। दूर से ही गाती रहो, ‘ये मेरे प्यारे वतन, ये मेरे उजड़े चमन, तुझ पर दिल कुर्बान’। अपने बीमार भाई और देव दर्शन का बहाना बना कर आना पड़ता है तब भी सरकारी सीआईडी सक्रिय रहती है।
       रामचरित मानस में बाली राम से पूछता है – मैं बैरी, सुग्रीव पियारा, कारन कवन नाथ मोहि मारा। बेचारे संजय जोशी तो यह भी नहीं पूछ पा रहे हैं। जिस मध्यप्रदेश की पुलिस से सीडी के बारे में क्लीनचिट मिली थी कहीं फिर से दबाव में आकर वही पुलिस ये न कह दे कि सीडी तो सही थी। ऐसी सीडियाँ आत्मा की तरह होती हैं जो कभी नष्ट नहीं होती भले ही उसके पात्रों को क्लीनचिट मिल गयी हो। जब क्लीनचिट मिलने के बाद भी बनवास झेलना पड़ा था तो दुबारा सीडी खुलने के बाद तो न जाने क्या होगा।
      
भले ही झूठी सही पर सवाल तो यह है कि सीडी बनवाई किसने थी और जिस सीडी को पार्टी की ही एक सरकार फर्जी बता रही है उस फर्जी काम को करवाने का सन्देही सबके सिर पर बैठ गया है। संस्कृत के एक श्लोक में कहा गया है कि जिसके पास पैसा है वही मनुष्य़ कुलीन है, वही विद्वान है, वही पंडित है, वही श्रोता है, वही गुणी है, वही सुदर्शनीय है, सारे के सारे गुण सोने में बसते हैं. [सर्वे गुणः कांचनं आसवंते]। गुजरात में आने वाली परियोजनाओं में पैसा ही पैसा है जनवरी, 2011 में महात्मा (गांधी) मंदिर में गुजरात के मुख्य मंत्री नरेंद्र मोदी ने 100 देशों से आये 10,000 अंतर्राष्ट्रीय कारोबारियों के सम्मेलन की अध्यक्षता की थी। मीडिया की रिपोर्टों के अनुसार उन्होंने गुजरात में 45,000 करोड़ डॉलर निवेश करने का वादा किया है। इसलिए भाजपा गुजरात को कबीर के हीरा पायो गाँठ, गठियाओ की तरह छोड़ना नहीं चाहती चाहे कुछ भी हो जाये इसलिए सारे गुण आजकल मोदी में बसते हैं, जिनके लिए संजय जोशी तो क्या अडवाणी तक को हकाला जा सकता है। नेतृत्व की हालत यह हो गयी है कि सौ सौ जूते खाँय, तमाशा घुस के देखेंगे। अडवाणीजी, प्रधानमंत्री बनें न बनें पर ब्लाग लेखक तो बन ही जायेंगे, ब्लागर्स की ओर से स्वागत है अडवाणीजी।
वीरेन्द्र जैन
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