व्यंग्य
राष्ट्रपति पद
प्रत्याशी की तलाश
वीरेन्द्र जैन
पुराने
जमाने की कई कहानियों में आता है कि जब किसी राज्य के राजा का निधन हो जाता और
उसका कोई उत्तराधिकारी नहीं होता था तो मंत्रिपरिषद यह तय करती थी कि प्रातः जो भी
व्यक्ति सबसे पहले नगर के मुख्य द्वार से प्रवेश करेगा उसे ही हम अपना राजा मान
लेंगे। राजा के चुनाव की इस विधि में कई मुंगेरीलालों की किस्मत खुल जाती थी और
पूरा राज्य कहानियों के उत्पादन का बड़ा केन्द्र बन जाता था। इन कहानियों को सुन
सुन कर हम सोचा करते थे कि हाय हम न हुए वो पहले आदमी जो उस नगर में प्रवेश कर
पाये। हमारे देश में भी पुरातन काल से अटूट प्रेम करने वाली एक राजनीतिक पार्टी है
जो इसी फार्मूले से राष्ट्राध्यक्ष का चुनाव करने में भरोसा करती है। उसके पास भले
ही राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनने वाला कोई नेता न हो पर वह किसी न किसी को
चुनाव जरूर लड़वाना चाहती है, और प्रत्याशी का चुनाव लगभग इसी तरह करना चाहती है।
इसी
तलाश में वे राम भरोसे के पास भी आये थे और उससे राष्ट्रपति पद प्रत्याशी बनने की
विनय करने लगे थे पर रामभरोसे ने साफ मना कर दिया।
मैंने पूछा कि भाई क्यों नहीं बने तो बोला “ मुझे खाना बनाना
नहीं आता”।
मैंने कहा कि भाई वहाँ खाना बनाने की कोई बात
नहीं राष्ट्रपति भवन में बहुत सारे रसोइए होते हैं, और फिर यह तो दूसरी पार्टी है
यहाँ खाना बनाना जरूरी नहीं यह बम बनाने वाले को भी राष्ट्रपति पद प्रत्याशी बना
सकती है।
“तो फिर बम बनाने
वाले ने क्यों मना कर दिया?”
उसने प्रति प्रश्न किया।
“ अरे भाई उन्होंने मना नहीं किया अपितु समझदारी से काम लिया कि जब जीतना ही नहीं है तो एनडीए के विस्तार की सम्भावनाओं के लिए क्यों अपनी इज्जत का कचरा करवाया जाये। इसके बाद ही वे दूसरे उम्मीदवार की तलाश में भटकने लगे और तुम्हारे पास इसलिए आये क्योंकि तुम्हें इज्जत का कोई खतरा नहीं है, वह पहले ही मिट्टी में मिल चुकी है, और तब से ही मिट्टी अपनी इज्जत की चिंता कर रही है” मैंने उसे समझाया।
“ अरे भाई उन्होंने मना नहीं किया अपितु समझदारी से काम लिया कि जब जीतना ही नहीं है तो एनडीए के विस्तार की सम्भावनाओं के लिए क्यों अपनी इज्जत का कचरा करवाया जाये। इसके बाद ही वे दूसरे उम्मीदवार की तलाश में भटकने लगे और तुम्हारे पास इसलिए आये क्योंकि तुम्हें इज्जत का कोई खतरा नहीं है, वह पहले ही मिट्टी में मिल चुकी है, और तब से ही मिट्टी अपनी इज्जत की चिंता कर रही है” मैंने उसे समझाया।
“
पर मेरे साथ समस्या दूसरी थी”
वह फुसफुसा कर बोला तो मुझे एक्सक्लूजिव स्टोरी सुनते पत्रकार की तरह सतर्क हो
जाना पड़ा।
“वह क्या समस्या थी?” मैंने भी फुसफुसा कर पूछा।
“वह क्या समस्या थी?” मैंने भी फुसफुसा कर पूछा।
“बात
यह है कि मुझे सर्दियों से बहुत डर लगता है और राष्ट्रपति को 26 जनवरी जैसी
कड़कड़ाती सर्दी में परेड की सलामी लेनी पड़ती है। इतनी ठंड में सलामी लेना मेरे बस
की बात नहीं है, सो मैंने कह दिया कि मुसद्दी लाल को बना दो मुझे नहीं बनना।“ उसने राज जाहिर
किया।
“पर मुसद्दी लाल को क्यों?” मैंने पूछा
“ मैं उससे बदला लेना चाहता हूं” उसने वैसे ही फुसफुसा कर कहा। “ और उसके बाद वे चले गये”
“पर मुसद्दी लाल को क्यों?” मैंने पूछा
“ मैं उससे बदला लेना चाहता हूं” उसने वैसे ही फुसफुसा कर कहा। “ और उसके बाद वे चले गये”
इसके बाद वे कई और जगह भी गये होंगे पर कहीं
बात नहीं बनी। एक विवादीलाल से तो उन्होंने कहा कि हम आपको एनडीए की ओर से
प्रत्याशी बनाना चाहते हैं तो उसने पूछ लिया कि एनडीए में कौन कौन है। जब उन्होंने
अपनी पार्टी के साथ जनता दल [यू], शिव सेना, अकाली दल, आदि का नाम लिया तो उसने एक
बुन्देली कहानी ही सुना दी। कहानी कुछ इस प्रकार थी-
एक बार एक कवि ने जब सब कुछ बेच खाया पर उसकी कविताएं नहीं बिकीं तो घर का आखिरी आइटम बेचने निकला जो कि चारपाई का एक पाया था। अतिरंजना के अभ्यस्त उस कवि ने गलियों में यह कहते हुए आवाज लगायी-
एक बार एक कवि ने जब सब कुछ बेच खाया पर उसकी कविताएं नहीं बिकीं तो घर का आखिरी आइटम बेचने निकला जो कि चारपाई का एक पाया था। अतिरंजना के अभ्यस्त उस कवि ने गलियों में यह कहते हुए आवाज लगायी-
खाट लो खाट,
सियरा नईंयां, पाटी
नईंयां,
बीच का झकझोल
नईंयां,
चार में से तीन नईंयां
खाट लो खाट, खाट लो
खाट
जाहिर है कि उसके
बाद वे मुसद्दी लाल के यहाँ से भी चले आये क्योंकि उनके साथ भी कुछ कुछ ऐसी ही
हालत थी।
राष्ट्रपति
के लिए सहमति बनाने निकले थे, वह तो नहीं बनी, प्रधानमंत्री का सवाल अलग से गले
में हड्डी की तरह पड़ गया। नमाज छुड़ाने चले थे रोजे गले पड़ गये।
फिर
संयोग से उन्हें एक बना बनाया प्रत्याशी मिल गया जो प्रस्तावक, समर्थक तलाशे बिना
पहले से ही अपने गले में माला डाले फिर रहा था। उसके घर के वोट ने साथ नहीं दिया
था, उसकी पार्टी ने साथ नहीं दिया था पर वह प्रत्याशी बना घूम रहा था, सो उन्होंने
सोचा कि चलो इसको ही समर्थन दे दो। ईसाई है तो क्या हुआ, नहीं करेंगे कुछ दिनों तक
चर्चों पर हमले, नहीं जलायेंगे कुछ पादरियों को उनके मासूम बच्चों सहित जीप में,
नहीं करेंगे धर्मांतरण के नाम पर ननों की हत्या कुछ दिन तक , पर लोग ये तो नहीं कह
पायेंगे कि 2014 में सरकार बनाने के ख्वाब देख रहे थे एक ठो राष्ट्रपति पद का
प्रत्याशी भी नहीं तलाश पाये।
वह
तो टिका दिया पर अभी उपराष्ट्रपति का चुनाव बाकी है।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा सिनेमा के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मोबाइल 9425674629
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