शनिवार, दिसंबर 05, 2009

व्यंग्य एकवचन को बहुवचन बनाने वाले

व्यंग्य
एक वचन को बहुवचन बनाने वाले
वीरेन्द्र जैन
मैं परेशान हूं । मेरी यह परेशानी व्याकरण पर आये संकट के कारण है। आजकल आचरण की तरह व्याकरण भी क्षरण होने की ओर अग्रसर है। आचरण की चिंता करना मैंने छोड़ दिया है क्या व्याकरण की चिंता भी छोड़ देना पड़ेगी?
हमारे देश में भी आजकल कुछ ऐसे ही व्याकरण बदलने वाले लोग सक्रिय हैं जो एक वचन को बहुवचन और बहुवचन को एक बचन बनाते रहते हैं। जब हमारे गड़बड़ियाजी को कोई बात पसंद नहीं आती तो वे कहते हैं कि देश के पिचासी करोड़ हिन्दू व्यथित हैं। जब उन्हें धमकाना होता है तो कहने लगते हैं कि देश के पिचासी करोड़ हिंदू इस अपमान को सहन नहीं करेंगे।
मैं राम भरोसे के घर जाकर उससे पूछता हूँं- राम भरोसे तुम हिंदू हो?
''क्यों तुम्हें क्या रिश्ता करना है?'' वह हमेशा की तरह उल्टा जबाब देता है।
''अरे नहीं भाई बताओ तो, और रिश्ते की बात होती तो पहले में जाति पूछता गोत्र पूछता उपगोत्र पूछता''
''पहले तुम बताओ कि तुम्हें मेरे हिन्दू होने पर संदेह क्यों है?''
'' चलो ठीक है मान लिया कि तुम नि:सन्देह हिंदू हो अब यह बताओ कि क्या तुम व्यथित हो?''
'' अगर तुम पागल हो तो मैं व्यथित हूँ'' वह जैसे को तैसे के अन्दाज में उत्तर देता है
'' तुम तो हमेशा मिर्चें खाये रहते हो। अरे भाई गड़बड़ियाजी ने कहा है कि पिचासी करोड़ हिंदू राम मन्दिर न बनाये जाने के कारण व्यथित और आक्रोशित हैं''
'' गड़बड़िया ने क्या हिंदुओं का ठेका ले रखा है और वह किससे पूछ कर आये हैं, मैं अगर व्यथित भी होऊंगा तो गड़बड़िया को फोन करके नहीं बताऊंगा।''
''अरे भाई वे विश्व भर के हिंदुओं के अर्न्तराष्ट्रीय महा सचिव हैं''
''उन्होंने किस हिंदू से वोट लेकर यह पद पाया है और अगर वोट लेकर भी पाते तो कौन उन्हें वोट देता और जो देता वो और चाहे कुछ होता पर सच्चा हिंदू तो नहीं होता?''
ये बीमारी केवल गड़बड़िया की ही नहीं है यह बीमारी मौलाना सुपारी की भी है। जब उनके पेट में दर्द होता है तो वे कहते हैं कि मुसलमानों के पेट में दर्द हो रहा है। मेरे कई मुसलमान दोस्त तरह तरह से अपना पेट दबा कर देखते हैं और अपने आप से पूछते हैं कि हमारे पेट में तो दर्द नहीं हो रहा ये मौलाना सुपारी हमारे पेट में कैसे घुस रहे हैं! असल में होता यह है कि अपनी लड़ाई को वे दूसरों के कंधों पर बन्दूक रख कर लड़ने के आदी हो चुके हैं। दूसरी तरफ अगर कोई मुसलमान परिवार में पैदा हुआ लड़का कोई आतंकवादी हरकत करता है तो गड़बड़िया एन्ड कम्पनी कहती है कि मुसलमान इस देश की समस्याओं की जड़ में हैं। यदि गोधरा में ट्रेन की आगजनी में किन्हीं मुसलमानों पर संदेह होता है तो वे निर्दोष मुसलमानों के हजारों घर जला देते हैं लाखों की सम्पत्ति लूट लेते हैं व तीन हजार मुसलमानों को मार देते हैं। इन्दिरागांधी को धोखे से मारने वाले एक सरदार की सजा दिल्ली के पाँच हजार निर्दोष सिखों को झेलना पड़ती है। उत्तरप्रदेश बिहार से आने वाले सारे लोग मराठी बोलने वाले किसी भी गोडसे से ज्यादा बुरे हो जाते हैं।
सच्ची बात तो यह है कि जिस तरह प्राइवेट बसों में लिखा रहता है कि यात्री अपने सामान की रक्षा स्वयं करें उसी तरह हमारी सरकार की पुलिस और कानून व्यवस्था पर किसी का भरोसा नहीं रहा कि उसके सहारे उन्हें विधि सम्मत न्याय मिल जायेगा। वे अपनी रक्षा स्वयं करने के चक्कर में लोगों को एकत्रित करने के लिए झूठे सच्चे आधार पर गिरोह बनाते रहते हैं। कोई धर्म के आधार पर बनाता है तो कोई भाषा के आधार पर, कोई जाति के आधार पर बनाता है तो कोई क्षेत्र के आधार पर। कहीं गाँव आधार बन जाता है तो कहीं मुहल्ला, कहीं कालेज आधार बनता है तो कहीं हॉस्टल। तिलक हॉस्टल वाले कहते हैं कि टैगोर हास्टल वाले लड़के बहुत बदमाश हैं।
मेरे कस्बे में पुरानी दावतों के कई किस्से बहुत रोचक ढंग से और कुछ कुछ अतिरंजित करके सुने सुनाये जाते रहे हैं। इनमें से एक था कि पंगत में बैठे मुखर किस्म के लोगों को कोई व्यंजन चाहिये होता था तो वो परोसने वाले को जोर से आवाज लगाता हुआ अपने पड़ोस में बैठे व्यक्ति की पत्तल की ओर इशारा करके कहता था कि- भइया की पत्तल में रसगुल्ला तो परोसो इस लाइन में रसगुल्ले आये ही नहीं! उसके परोस देने के बाद वो धीरे से अपनी पत्तल की ओर इशारा करते हुये कहता था कि दो इधर भी डाल दो। उनका वह पड़ोसी केवल मुस्करा कर रह जाता था और अपनी पत्तल के रसगुल्ले भी उनकी पत्तल में सरका देता था।
अगर किसी मुसलमान दुकानदार का अपने पड़ोसी हिन्दू दुकानदार से झगड़ा हो जाता है तो वो कहता है कि मुसलमानों पर बड़ा दबाव है और हिंदू दुकानदार भी ऐसी स्थिति में सीधा बजरंग दली बनने लगता है ताकि हिंदू धर्म की रक्षा के पवित्र काम में उसकी दुकान के हित भी सुरक्षित रहें। अगर जरूरत से ज्यादा मुनाफा लेने वाला दुकानदार सिंधी निकलता है तो फिर गृहणी कहने लगती है कि तुम सिंधी की दुकान पर गये ही क्यों! सिंधी दुकानदार तो होते ही ऐसे हैं। पर जब रिलाएंस के शेयरों के भाव चढने से अग्रवाल साब को फायदा होता है तो वे जैनसाब से कहते हैं कि धन्घा करना तो सिंधी ही जानते हैं।
हमारे बड़े बड़े उपदेशक कहते कहते मर गये कि- हंसा आये अकेला हंसा जाये अकेला- पर धरती पर रह कर हंसा सिंधी हिंदू सिख या मुसलमान होता रहता है और अपने साथ दूसरे सैकड़ों लोगों को भी साथ में ले जाता है। जो लोग प्रभु की इस माया पर बहुत चकित चकित से रहते हैं कि किन्हीं दो आदमियों की शक्लें एक जैसी नहीं होतीं व अंगूठा इसलिए लगवाते हैं क्योंकि किन्हीं दो लोगों की अंगूठा निशानी एक जैसी नहीं होती वे ही सारे सरदारों के एक साथ बारह बजवाते रहते हैं और ऐसे में उन्हें भगतसिंह की याद भी नहीं आती जिसकी टक्कर का दूसरा कोई नहीं हुआ।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629

2 टिप्‍पणियां:

  1. वो एकवचन को बहुवचन बनाये बैठे है इधर अपन जैसे लोगो की बिमारी बहुवचन को एकवचन बनाने की है। क्या करे वो उनकी आदत से बाज नहीं आयेंगे हम अपनी आदत से बाज नहीं आयेंगें। वो भगतसिंह पाश करतारसिंह के बारह बजाते रहेंगे हम भगतसिंह पाश करतारसिंह के बारह बजाने वालों की बारह बजाते रहेंगे।

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