रविवार, नवंबर 29, 2009

व्यंग्य वास्तु के कोण्



व्यंग्य
वास्तु शास्त्र के कोण
वीरेन्द्र जैन
जब से वास्तु विचार का अचार तेजी से डाला जाने लगा है तब से मैं एक एक कदम ऐसे सम्भाल कर उठाने लगा हूॅ जैसे कि कोई दुल्हिन वरमाला लेकर अपने सुनिश्चित हो चुके पति के गले में डालने जाते समय उठाती है। आज यह लेख लिखते समय मैं सोच रहा हूँ कि मेज के किस कोने पर बैठ कर लिखूं ताकि पूरब और पशचिम, उत्तर और दक्षिण की ओर मुंह किये बैठे सम्पादकों की नजरों में चढ जाऊँ या उतर जाऊँ पर गिरूं नहीं।
ऐसा नहीं है कि वास्तु विचार कोई नया विषय है, इसका प्रशिक्षण मुझे बचपन में ही मिल गया था स्कूल में पहली पहली बार जाने पर आगे बैठने का शौक चर्राया था तथा अध्यापक द्वारा पूछे गये प्रश्नों के उत्तर न दे पाने का फल भी चखता रहता था। कुछ दिनों बाद कक्षा का वास्तु शास्त्र समझ में आया कि पीछे बैठने के क्या क्या मजे होते हैं। सवाल जबाबों के मामले में तो अध्यापक लोग आगे बैठने वालों से ही निपटते रहते हैं पीछे बैठने पर बाग से चुराकर लायी गई इमलियॉ, अमरूद, और केरियों खायी जा सकती हैं तथा अध्यापक द्वारा ब्लैक बोर्ड पर लिखते समय पीछे के दरवाजे से बाहर खिसका जा सकता है। यदि यह वास्तु शास्त्र पहले समझ में आ गया होता है तो मेरे कान इतने लम्बे नही होते ।
कक्षाओं के बदलने के साथ साथ वास्तु शास्त्र के कोण भी बदलते गये। खिड़की के पास वाली सीट से बाहर का नजारा और लड़कियों को देखा जा सकता था दरवाजे के पास वाली सीट से अध्यापक के आने की आहट पाकर भोला भाला बन कर बैठा जा सकता था। देर से आने पर चुपचाप घुस आने तथा अनुपस्थित की हाजिरी बोलने का काम भी पीछे बैठ कर किया जा सकता था। ये सारे लाभ वास्तु शस्त्र की सही समझ पर ही आधारित थे।
आज भी देखता हूँ कि कालेज की सहपाठिनों के साथ रेस्त्रां में काफी पीने आने वालों की पहली तलाश वास्तु विधा पर ही आधारित होती है। उन्हें ज्ञात है कि किस सीट पर बैठकर दूसरों की नजरों से बचा सकता है तथा दरवाजे की ओर पीठ करके बैठने के क्या क्या फायदें है। बाईक पर लड़की को किस कोण से बिठाने पर आउटिंग के लिए कितने लीटर पेट्रोल जलाया जाना चाहिए यह वास्तु विचार का ही विषय है।
सरकारी दफ्तर में काम के लिए आने वाला ' ग्राहक' कहॉ से पूछताछ शुरू करता है और उसे किस बिन्दु पर फांसा जा सकता है यह दफ्तर के अच्छे वास्तुविद को पता होता है। वह अपनी सीट ऐसे स्थान पर लगवाता है जहॉ से ग्राहक की पहली नजर उसी पर पड़े और तथा अफसर की सीधी निगाह से बचा रह सके।
बस का वास्तु शास्त्री जानता है कि किस सीट पर बैठकर किस समय किस दिशा में यात्रा करने पर हवा लगेगी या धूप लगेगी। मौसम के अनुसार वास्तु विचार करके ही वह अपनी सीट तय करता है। बस में प्रवेश करते ही सीट पर फटाक से बैठ जाने की जगह जो एक क्षण विचार करता हुआ नजर आता है उसे मैं वास्तुशास्त्री समझता हूँ
बालकनी के किस कोने में किस दिशा में मुंह करके बैठने पर बुढ़िया दिखायी देगी ओर किस ओर मुंह करके बैठने पर बाल सुलझाती युवतियॉ नजर आयेंगी यह वास्तुशास्त्र का विषय है।

सार्वजनिक कार्यक्रम में किस वीआईपी क़े आसपास रहने और बैठने से अखबारों व टीवी में फोटों आयेगी ये बात वास्तु शास्त्री ही जानते हैं और वहीं बैठने की कोशिश करते हैं। समाचारों में फोटो के नीचे जो एक लाईन लिखी रहती है कि कार्यक्रम में भाग लेते हुऐ मंत्री जी और अन्य - इस अन्य में अच्छे वास्तु ज्ञाता हमेशा मुस्करातें नजर आते हैं। भीख और शनि का दान मांगने वाले तक जानते हैं कि अस्पतालों और अदालतों की ओर जाने वाले किस बिन्दु पर बैठे भिखारियों और शनि-वाहकों के लिए जेब से सिक्के निकालकर डालते रहते हैं।
वास्तु शास्त्री हमेशा ही धन धान्य की दृष्टि से ही विचार करते हैं जबकि कचरे से पन्नी बीनने व दारू की खाली बोतलें उठाने वाला हर कचरे के डिब्बे को खंगालता है और वास्तु विचार नहीं करता। झुग्गी डाल लेने वाले एक मजदूर से जब मैने पूछा कि उसने झुग्गी डालने से पहले वास्तु विचार किया था या नही किया था तो वह हंसने लगा। साधु के चोलें में रहने वाले एक नेता का कहना था कि ये मजदूरों के आन्दोलन इसलिए सफल नहीं हो रहें हैं कि ना तो ये महूर्त दिखवाते है और ना ही सभा करते समय वास्तु विचार करते है बस मुंह उठाकर बोलना शुरू करते है तो बोलते ही जाते है। तंदूर में पत्नी को जलाते समय, या शिवानी भटनागर और मधुमिताशुक्ला की हत्या के समय यदि वास्तु विचार किया होता तो गिरफ्तारी की नौबत ही नही आती है।
यह लेख पढ़ते समय अगर आप सही दिशा में बैठे होंगे तो आपको यह लेख अच्छा लगा होगा। न लगा हो तो दिशा बदल कर पुन: पढ़ें।

वीरेन्द्र जैन
2@1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629

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