सोमवार, दिसंबर 28, 2009

व्यंग्य जिसने की बेशरमाई उसने खाई दूध मलाई

व्यंग्य
जिसने की बेशरमाई उसने खाई दूध मलाई
वीरेन्द्र जैन
जैसा मेरा अनुमान था कि राज नाथ अनाथराज हो गये हैं और उन्हें लगभग वैसे ही अन्दाज़ में बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है जैसा कि रावण ने विभीषण को दिखाया था, वह गलत साबित हुआ। कल जब वे दो उंगलियाँ उठा कर अंग्रेजी की वी बना विक्टरी का संकेत देते हुये दिखाई दिये तब लगा कि उनके लिये अभी भी कुछ काम बाकी बचा हुआ था-
दिल अभी पूरी तरह टूटा नहीं
दोस्तों की मेहरबानी चाहिये
राजनाथ की ये दो उंगलियाँ जो पिछले कुछ दिनों से अपने दुश्मनों की जीत का शोर सुनने से बचने के लिये दोनों कानों में डालने के काम आ रही थीं हवा में हैं। यह अवसर उनको झारखण्ड चुनाव परिणाम आने के बाद गुरूजी अर्थात शिबू शोरेन की कृपा से मिल सका है जिन्होंने कह दिया था कि हमें मुख्यमंत्री बनाने के सारे रास्ते खुले हैं जिसे भी बनाना हो चला आये। सो नेह निमंत्रण पा कर भाजपा दौड़ी दौड़ी चली आयी और झारखण्ड के जंगलों में गूंजने लगा- मैं तुझसे मिलने आयी, मन्दिर जाने के बहाने।
इन्हीं राजनाथ ने झारखण्ड के चुनाव हो जाने के बाद कहा था कि हम अटल बिहारी वाजपेयी के जन्म दिन पर उपहार के रूप में कि झारखण्ड में सरकार देंगे। फर्क केवल इतना रह गया कि बीमार वाजपेयी को भाजपा नहीं अपितु भाजपा के समर्थन वाली सरकार दी है और उन शिबू सोरेन की सरकार दी है जिनको केन्द्र में मंत्री बनाने पर उसने हंगामा खड़ा कर दिया था और दागियों को मंत्री बनाये जाने के खिलाफ सदन नहीं चलने दिया था। पहले अगर उनके दल को कोई आरोपी समर्थन देता था तो वे कहते थे कि गंगा में मिलकर गन्दे नाले भी पवित्र हो जाते हैं, पर हे अनाथ अब ये तथा कथित गंगा कहाँ मिल रही है?
संघ द्वारा स्थापित कठपुतली अध्यक्ष के प्रेस कांफ्रेंस की स्याही भी नहीं सूख पायी थी जिसमें उन्होंने शेखी बघारी थी कि सता की राजनीति तो होती रहेगी पर हम राजनीति को समाज से जोड़ने की बात करते हैं, उन्हींने अपने पहले काम के रूप में भाजपा को शिबू सोरेन से जोड़ दिया और उनके विधायक दल के नेता कहने लगे कि भले ही उन्होंने शिबू सोरेन को दागी बताते हुये चुनाव लड़ा था पर [चुनाव परिणाम आने के बाद]अब हमारी सोच यह है कि सोरेन कोर्ट से बरी हो चुके हैं इसलिए दागी नहीं हैं। ये बात अलग है उनकी यह बात आम जनता को तो छोड़िये उनके ही एक सांसद को हज़म नहीं हुयी और झारखण्ड के गोड्डा क्षेत्र के सांसद निशिकांत दुबे ने अपना स्तीफा श्रीमती सुषमा स्वराज और संगठन महामंत्री रामलाल को भेज दिया है तथा मीर कुमार को भी भेजे जाने की अफवाह फैलवा दी है।
अब ये कौन बतायेगा कि ये सत्ता की राजनीति है या समाज की राजनीति है! हो सकता है कि अगले कुछ वर्षों में तो वे नीतीश भक्ति की तरह इतनी गुरुभक्ति दिखा दें कि संघ के असली गुरूजी को ही भूल जायें। यदि भाजपा नेता किसी शर्मप्रूफ क्रीम के विज्ञापन हेतु माडल के रूप में काम करने लगें उनकी सफलता की बहुत सम्भावनायें हैं। स्लोगन कुछ ऐसा हो सकता है- जिसने की शरम, उसके फूटे करम, जिसने की बेशरमाई, उसने खाई दूध मलाई। कहो गडकरी भाई- हाँ राजनाथ भाई।
राम भरोसे हमेशा की तरह मुझसे असहमत है, वह कह रहा था कि भाजपा के नये अध्यक्ष सत्ता की राजनीति में भरोसा नहीं करते। वे अपने महाराष्ट्र में पार्टी को हरा कर आये हैं तो पार्टी के अध्यक्ष बन गये। सुषमा स्वराज के राज्य हरियाना में पार्टी साफ हो गयी तो वे विपक्षी दल की नेता बन गयीं। आडवाणी ने पूरे देश में पार्टी को हरवा दिया सो वे दोनों सदनों के सद्स्यों के नेता बन गये। यही तो उदाहरण है कि पार्टी को सत्ता से दूर करो पद से जुड़ो। हो सकता है कि नये अध्यक्ष का नया फार्मूला हो आखिर उन्होंने अपनी पहली प्रेस कांफ्रेंस पहला महत्वपूर्ण वाक्य यही तो बोला कि आइ एम कमिटिड फोर कंस्ट्रक्शन।
वीरेन्द्र जैन
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