सोमवार, जुलाई 12, 2010

व्यंग्य- असली साहित्य सेवी


व्यंग्य
असली साहित्य सेवी
वीरेन्द्र जैन

हे हिन्दी के साहित्यकारो, तुम कहाँ हो! कौन सी दुनिया में मस्त हो! तुम्हे पता भी है कि तुम्हारी दुनिया में क्या चल रहा है। अरे इतना मस्त तो इन्द्र भी नहीं रहता था जिसके पास जगत की श्रेष्ठ नृत्यांगनाएं थीं । उसने भी तकनीक का सहारा लेकर ऐसा सिस्टम बना रखा था कि जब भी कोई तपस्या आदि में जी जान से ऐसा जुट जाता था जैसे कि मध्य प्रदेश के मंत्री पैसा लूटने में जुटे हुये हैं, तो उसका आसन डोलने लगता था और वह उनकी तपस्या भंग करने के लिए दस पाँच ठौ मेनका रम्भाएं मृत्युलोक में टपका देता था जिससे कि ऋषि मुनि सारी तपस्या भूल जाते थे। पर तुम्हारा खोयापन तो ऐसा लगता है जैसा कि किसी शायर ने कहा है-
खोये हुये से बैठे तिरी बज्म में हमें
ये भी नहीं है याद कि क्या भूल गये हैं
क्या तुम किसी सेमिनार में भाड़ झौंक रहे हो या किसी पुरस्कार की जुगाड़ में लगे हुये हो या अपने किताबें कोर्स में ठुसवाने के प्रयास में हो और इधर तुम्हारी दुनिया पर दूसरे कब्जा करते जा रहे हैं। एक दिन ऐसा भी आ जायेगा जब तुम्हारे हाथ में प्रदेश के दलितों की तरह केवल पट्टा रह जायेगा और कब्जा फिसल जायेगा।
अगर अब भी नहीं समझे तो समझ जाओ कि देश की इकलौती सांस्कृतिक संस्था राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अब साहित्य पर उतर आयी है और उसने भाजपा में अध्यक्ष के सर्वोच्च पद पर ऐसा साहित्य प्रेमी थोपा है जो हिन्दी की बिन्दी लगा कर भाषा और साहित्य की अनूठी सेवा कर रहा है। उसकी वाइफ तक भाषा की विदुषी है [ बड़े लोगों की पत्नी नहीं होती वाइफ होती है] और जब हिन्दी भाषी प्रदेश के विद्वान सेवकों ने इन्दौर में उसके फाइव स्टार टेंट के बाहर नितिन गडकरी की जगह नितीन लिखवा दिया था तो उसकी वाइफ़ ने बोला था कि ओह गाड! इन्हें शुद्ध भाषा भी नहीं आती।
पिछले दिनों इन्हीं अध्यक्ष महोदय ने लालू प्रसाद और मुलायम सिंह को सोनिया के तलुवे चाटने वाला कुत्ता बतलाया था। जब उनसे पूछा गया तो उनका उत्तर था कि उन्होंने तो मुहावरे में कुत्ता कहा था। यह बतलाता है कि उन्हें व्याकरण का कितना अच्छा ज्ञान है और ये हिन्दी भाषी प्रदेश के लोग मुहावरे भी नहीं जानते। इसके बाद लालू प्रसाद यादव के राम कृपाल ने गडकरी को छछूंदर कह दिया तो उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी क्योंकि वे विद्वान जानते थे कि छछूंदर के सिर में चमेली का तेल भी एक मुहावरा है।
जब इन्हीं भाषा विज्ञानी गडकरी ने अफजल को कांग्रेस का दामाद बताया और मूर्खों को दामाद शब्द का अर्थ स्पष्ट करते हुये कहा कि दामाद उसे कहते हैं जिसे अपनी बेटी दी जाती है सो कांग्रेस से सवाल किया कि क्या उन्होंने अफजल को अपनी बेटी दी हुयी है? जब इस पर नासमझ कांग्रेसियों ने अपने पिंजरे में बँधे बँधे फूँ फाँ की तो राजीव प्रताप रूडी ने कालिदास काल के पंडितों की तरह विद्योतमाओं को अर्थ बताते हुये कहा कि यह कांग्रेस की रचनात्मक आलोचना है इसलिए माफी माँगने का कोई सवाल ही नहीं। अब हिन्दी के साहित्यकारों को सीखना चाहिए कि रचना क्या होती है, आलोचना क्या होती है और रचनात्मक आलोचना किसे कहते हैं।
इधर मध्य प्रदेश में कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव भाजापा के प्रदेश अध्यक्ष को समझा रहे हैं कि औकात का अर्थ हिन्दी में क्षमता और अंग्रेजी में कैपिसिटी होता है। हालांकि उन्होंने शब्दार्थ तो बता ही दिया साथ ही उदाहरण देकर उनकी औकात भी बता दी कि इसी प्रदेश में एक पत्रकार के रूप में अर्जुन सिंह से अपने निजी काम कराने के लिए किस तरह गिड़गिड़ाते थे।
राजनीति में जहाँ देखो वहाँ भाषा व्याकरण और साहित्य चल रहा है किंतु हिन्दी के साहित्य सेवी शायद आगामी चौदह सितम्बर तक के लिये सोये हुये हैं जब वे हिन्दी सेवा के लिए इस या उस सरकारी संस्था से धैर्य धन्य नत मस्तक हो शाल ओढ कर शालीन होंगे, और अगले साल तक बने रहेंगे।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 9425674629

1 टिप्पणी: