व्यंग्य
ज्ञानपीठ
देने वाले कर कमल
वीरेन्द्र जैन
“अगर मुझे ज्ञान पीठ पुरस्कार मिला
तो..............”
मेरी
बात पूरी होने से पहले ही मेरा साहित्यिक मित्र इस विश्वास से हँसने लगा जैसे कि
मैंने कोई बहुत बड़ा मजाक कर दिया हो। कुछ लोग अन्ध विश्वास की हद तक आश्वस्त हैं
कि मुझे ज्ञान पीठ नहीं मिल सकता, इसलिए वे मेरा वाक्य ही पूरा नहीं होने देते,
भले ही उसके पहले अगर लगा रहता हो।
‘ पर भाई मैं कह रहा हूं, अगर मिला तो ...’
‘ पर भाई मैं कह रहा हूं, अगर मिला तो ...’
‘तो क्या करोगे वापिस कर दोगे! याद है कि जब
दिनकर को पुरस्कार मिला था उसी समय ज्याँ पाल सात्र ने नोबुल पुरस्कार को आलू का
बोरा कह कर लेने से इंकार कर दिया था, तब पत्रकारों ने दिनकर जी से पूछा था कि
क्या आप इसे स्वीकार कर लेंगे! तब उन्होंने उत्तर दिया था कि पुरस्कार को ठुकराना
उसे दुबारा माँगना है’
‘अगर तुम अपना उथला ज्ञान झाड़ चुके हो तो बताऊँ
कि अगर मिला तो मैं किसके कर कमलों से लेना पसन्द करूंगा।‘
‘मिलेगा तब न, दूसरी बात यह है कि जैसा
अंग्रेजी में कहा है कि बैगर्स आर नेवर चूजर्स या हिन्दी में ही समझ लो कि दान की
बछिया के दाँत नहीं देखे जाते। लेने वाले तो कटोरा लिये बैठे रहते हैं कि कोई भी
दे दे। वो एक फिल्मी गाना है कि रुपया नहीं तो डालर चलेगा, कमीज नहीं तो कमीज का
कालर चलेगा पर दे दे इंटरनेशनल फकीर आये हैं। पर चलो बता ही दो कि अ..ग..र..
तुम्हें मिलेगा तो किसके कर कमलों से लेना पसन्द करोगे!’
‘मैं किसी राजनेता की जगह किसी साहित्यकार के
हाथों लेना पसन्द करूंगा, जैसा कि अज्ञेय जी ने किया था। मैंने गरदन को जिराफ की
तरह ऊंची करते हुए कहा। ऐसा करने से गरदन में लगी पिछली चोट दर्द करने लगी।
‘वैसे तो अभी बहुत लम्बी लाइन लगी हुयी है जो ज्ञानपीठ के लिए मुँह इत्यादि बाये हुए बैठे हैं, और ज्ञानपीठ मुँह में गंगाजल की तरह डालने की परम्परा है इसलिए अ..ग..र.. तुम्हारा नम्बर आया भी तो.... ऐसा कौन सा महान साहित्यकार होगा जो ऐसा दुर्दिन देखने के लिए बचा होगा?’ मित्र ने अपना मित्रता धर्म निभाते हुए सारा जहर उगल दिया।
‘वैसे तो अभी बहुत लम्बी लाइन लगी हुयी है जो ज्ञानपीठ के लिए मुँह इत्यादि बाये हुए बैठे हैं, और ज्ञानपीठ मुँह में गंगाजल की तरह डालने की परम्परा है इसलिए अ..ग..र.. तुम्हारा नम्बर आया भी तो.... ऐसा कौन सा महान साहित्यकार होगा जो ऐसा दुर्दिन देखने के लिए बचा होगा?’ मित्र ने अपना मित्रता धर्म निभाते हुए सारा जहर उगल दिया।
‘ तो क्या हुआ मैं किसी दिवंगत साहित्यकार के
सुपुत्र के हाथों ग्रहण कर लूंगा जैसे अभी अभी एक राष्ट्रीय स्तर के ‘शहरयार’ ने ग्रहण किया है।’ मैं सम्भावना
को खारिज नहीं होने देना चाहता था।
‘ तब ठीक है। जब एक रुपये में परमानन्दा कराने वाले, और यूनियन कार्बाइड की एवरेडी बैटरी बेच कर नरेन्द्र मोदी के ब्रांड एम्बेसडर के हाथों जनवादी लेखक संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पुरस्कार ले सकते हैं तो तुम्हारी क्या औकात! पर हाँ मैं तुम्हारे लिए एक नाम सुझा सकता हूं’ वह बोला।
‘ तब ठीक है। जब एक रुपये में परमानन्दा कराने वाले, और यूनियन कार्बाइड की एवरेडी बैटरी बेच कर नरेन्द्र मोदी के ब्रांड एम्बेसडर के हाथों जनवादी लेखक संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पुरस्कार ले सकते हैं तो तुम्हारी क्या औकात! पर हाँ मैं तुम्हारे लिए एक नाम सुझा सकता हूं’ वह बोला।
मैं
जानता था कि वह जब भी बोलेगा तब जला कटा ही बोलेगा पर फिर भी कहा कि सुझाओ!
‘तुम अभिषेक के हाथों से पुरस्कार ले सकते हो’ वह बोला।
मुझे
लगा कि अब बारी मेरी है इसलिए छूटते ही कहा कि ‘वह तो साहित्यकार का बेटा नहीं है अपितु मेरे अंगने
में तुम्हारे काम के बारे में पूछने वाले का बेटा है’
‘ तुम जब भी सोचोगे उल्टा ही सोचोगे अरे भइ मैं
उस अभिषेक की बात नहीं कर रहा हूं जिसकी गिनती बच्चन में आती है.....’
‘ तो किस अभिषेक की बात कर रहे हो?’ मैं चकराया
‘ मैं तो सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीकांत वर्मा
के बेटे अभिषेक की बात कर रहा हूं’
ऐसा कह कर वह कुटिलता से मुस्कराया। मैंने भी नजरें झुका कर कहा अरे मिलने तो दो।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा सिनेमा के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मोबाइल 9425674629
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें