व्यंग्य
फायर ब्रांड
नेता और एफडीआई की आग
वीरेन्द्र जैन
राजनीति
में जिन्दा बने रहकर गले में मालाएं डलवाते रहना जरूरी होता है नहीं तो फोटुओं पर
माला डलने की नौबत आ जाती है। यही कारण है कि हाशिये पर धकेल दिये गये बूढे बूढे
नेता तक पप्पुओं बबलुओं की तरह अपना बर्थडे मनाते रहते हैं और चमचों, दलालों से उस
दिन शतायु होने के विज्ञापन छपवाते रहते हैं। मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमन्त्री उमा
भारती बहुत दिनों से अखबारों के मुखपृष्ठ पर आने के प्रयास में थीं पर समय का फेर
कि दसवें बारहवें पेज पर आने में भी मुश्किलें आ रही थीं। जब तक भाजपा से बाहर थीं
और उसके नेताओं को गरियाती हुयी उसे समूल नष्ट करने के बयान देती रहती थीं तब कम से कम अन्दर घुसने के प्रयासों के समाचार तो
छपते रहते थे, पर भाजपा में पुनर्प्रवेश करने के बाद जो प्रदेश निकाला हुआ है,
उसने तो स्तिथि बहुत ही खराब कर के रख दी। अब पिंजरे में कितनी भी उछलती कूदती
रहें पर कोई नोटिस ही नहीं लेता।
कभी
अंग्रेजी के अखबार उन्हें फायर ब्रांड नेता कहते थे। साध्वियों की वर्दी तो वैसे
ही फायर कलर की होती है सो फायर ब्रांड होने के लिए केवल मुँह से आग निकालना रह
जाता है और जिसमें वे कोई कमी नहीं छोड़ती हैं। फायर ब्रांड होने से फ्रंट पेज पर
जगह मिलने में सुविधा होती है। आखिर उनके इंतजार की घड़ियां खत्म हुयीं और एफडीआई
के लिए बन्दनवार सजा कर सरकार ने उन्हें मौका दे ही दिया ताकि वे यह जता सकें कि
प्रदेशों में मुख्य मंत्री के पद पर कोई स्थायी नियुक्ति नहीं होती। उन्होंने मुख
पृष्ठ पर जगह बनाने के लिए कह ही दिया कि वे एफडीआई के रिटेल स्टोरों में आग लगा
देंगीं। फायर ब्रांड नेता के मुख से ऐसे ही वचन शोभा देते हैं। अब फायर ब्रांड के मुख
से कोई फूल तो बरसने से रहे बरना ब्रांड पर संकट आ जायेगा।
जिस
तरह दक्षिण में शिवकाशी जिला फायर वर्क्स प्रोडक्ट के लिए विख्यात है उसी तरह धर्म
का चोगा ओढने वाले राजनेता अपने मुँह से पटाखे फुलझड़ी छोड़ने के लिए मशहूर हैं।
आतिशबाजी की चटाक पटाक आनन्द का सृजन करती है। नेता भी अब भाषण कम और मनोरंजन अधिक
करने लगे हैं। राज नारायण से लालू परसाद ही नहीं कभी अटल बिहारी के चुटकले सुनने के लिए बहुत
सारी भीड़ जुटती थी, भले ही वे चुनाव हार जाते थे। एक बार ग्वालियर में जब युवा
माधवराव से हार गये तो दो जगह से चुनाव लड़ने लगे थे।
उमाजी
का बयान पढने के बाद मैंने सपना देखा कि वे अपने बजरंग दल को लंका की तरह खुदरा
बाजार की विदेशी दुकानों में आग लगा देने के लिए उकसा रही हैं पर वह वानर सेना
महाभारत के अर्जुन की तरह हाथ बाँधे खड़ी है और आदेश पालन में एकमत से असमर्थता
व्यक्त कर रही है। यह रुकावट मीडिया के कैमरामेनों के इंतजार वाली रुकावट नहीं है।
उनकी शिकायत है कि जब गोबिन्दाचार्य को यही कहने पर बाहर का रास्ता दिखा दिया गया
था और उनका स्वदेशी आन्दोलन अध्य्यन अवकाश में बदल गया था तब अब ऐसा क्या हो गया
कि दीदी आग लगाने को उकसा रही हैं। जिस दिन अमेरिका से लताड़ आ जायेगी उसी दिन कई
अरुण जैटली अमेरिकन राजदूत को सफाई देने पहुँच जायेंगे जिसका खुलासा किसी अगली
विक्कीलीक्स से होगा। मनमोहन सिंह जब नई आर्थिक नीति लेकर आये थे तो भाजपा ने कहा
ही था कि इन्होंने हमारी नीतियों को हाईजैक कर लिया है जैसे कौआ बच्चे के हाथ से
रोटी छेन कर भाग जाता है। राजग के शासन में भी जब कोई नीति नहीं बदली गयी थी तब तो
दीदी थोड़े से अंतराल को छोड़कर मंत्रिमण्डल को ही सुशोभित कर रही थीं।
वैसे भी आग लगाने के बड़े खतरे होते हैं। होम करते हुए तक तो हाथ जल जाते हैं और लंका में आग लगाने के लिए हनुमानजी को अपनी ही पूंछ में आग लगानी पड़ी थी। कबीर तक ने साथ चलने वालों से सबसे पहले अपना घर जलाने का आवाहन किया था, पर दीदी को तो घर ऐसा सता रहा था कि छोड़े हुए घर में वापिसी के लिए उन्होंने अपना नया घर मटियामेट कर दिया। पुराने घर में जगह भी मिली तो नौकरों के कमरे में जहाँ पहले से ही बड़ी भीड़ है। अब आग लगाने के लिए पैट्रोल खरीदना पड़ेगा जो इतना मँहगा हो चुका है कि उसे खरीदने के लिए पहले कोई बैंक लूटना पड़ेगा। वैसे जो एफडीआई वाले रिटेल स्टोर में आग लगा सकते हैं वे बैंक भी लूट सकते हैं, पर उसके लिए बन्दूकों की जरूरत पड़ेगी जो पुरलिया की तरह कोई आसमान से नहीं टपकेंगीं। खैर किसी तरह उनका भी इंतजाम हो जायेगा पर फिर सारा मामला नक्सलवादियों जैसा हो जायेगा। और जब नक्सलवाद की तरह से परिवर्तन लाया जायेगा तो फिर इस भगवा रंग की वर्दी, अयोध्या में राम मन्दिर, और मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री की कुर्सी का क्या होगा। अभी तो केवल कुर्सी का ही खतरा रहता है फिर तो जान का खतरा बना रहेगा।
वैसे भी आग लगाने के बड़े खतरे होते हैं। होम करते हुए तक तो हाथ जल जाते हैं और लंका में आग लगाने के लिए हनुमानजी को अपनी ही पूंछ में आग लगानी पड़ी थी। कबीर तक ने साथ चलने वालों से सबसे पहले अपना घर जलाने का आवाहन किया था, पर दीदी को तो घर ऐसा सता रहा था कि छोड़े हुए घर में वापिसी के लिए उन्होंने अपना नया घर मटियामेट कर दिया। पुराने घर में जगह भी मिली तो नौकरों के कमरे में जहाँ पहले से ही बड़ी भीड़ है। अब आग लगाने के लिए पैट्रोल खरीदना पड़ेगा जो इतना मँहगा हो चुका है कि उसे खरीदने के लिए पहले कोई बैंक लूटना पड़ेगा। वैसे जो एफडीआई वाले रिटेल स्टोर में आग लगा सकते हैं वे बैंक भी लूट सकते हैं, पर उसके लिए बन्दूकों की जरूरत पड़ेगी जो पुरलिया की तरह कोई आसमान से नहीं टपकेंगीं। खैर किसी तरह उनका भी इंतजाम हो जायेगा पर फिर सारा मामला नक्सलवादियों जैसा हो जायेगा। और जब नक्सलवाद की तरह से परिवर्तन लाया जायेगा तो फिर इस भगवा रंग की वर्दी, अयोध्या में राम मन्दिर, और मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री की कुर्सी का क्या होगा। अभी तो केवल कुर्सी का ही खतरा रहता है फिर तो जान का खतरा बना रहेगा।
ऐसा
लगता है कि कहीं उन्होंने फायर ब्रांड का मतलब गलत तो नहीं समझ लिया इसमें केवल
शब्दों के गोले ही छोड़े जाते हैं। ओजस्वी वक्ता वह होता है जो अपने देश और धर्म के
लिए दूसरों को जान देने के लिए उकसाता रहे। इसलिए पहले से घोषणा और सूचना करके आग
लगाने के लिए जाइएगा ताकि आपको आग लगाने से रोकने के फोटो अच्छे आयें और सभी
अखबारों के मुख पृष्ठ की खबर बनें। मुख्य मंत्री की कुर्सी के लिए रास्ता
मुखपृष्ठों से हो कर ही जाता है।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा सिनेमा के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मोबाइल 9425674629
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