व्यंग्य
नेता
सीना जेल और दर्द
वीरेन्द्र जैन
आजादी
के बाद हमारे देश के नेताओं के पास सीने का इकलौता उपयोग है कि जेल जाते समय उसमें
दर्द हो सके।
स्वतंत्रता
मिलने के पहले की बात और थी क्योंकि तब स्वतंत्रता संग्राम चल रहा था और इस
संग्राम को लड़ने वाले नेता सेनानी माने गये हैं। इन सेनानियों के नाम पर अब हजारों
लोग बिना कैंटीन सुविधा के पेंशन जुगाड़ रहे हैं जिनमें से कई तो सच्चे स्वतंत्रता
संग्राम सेनानी भी हैं। सच्चे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, जिनका सीना जेल जाते समय
फूल जाता था, तो इसलिए पेंशन ले रहे हैं ताकि स्वतंत्रता के दौरान बरबाद कर दी
अपनी जवानी के बाद उनके पास आय का दूसरा कोई साधन नहीं है, पर झूठे स्वतंत्रता
संग्राम सेनानी तो इसलिए पेंशन ले रहे हैं ताकि उससे स्वतंत्रता के मूल्यों को
नष्ट कर सकें। वे ही पाँचवें सवार की तरह मौका वक्त माला डलवाने में आगे आगे आगे
रहते हैं। इनमें से कई तो आजादी मिलने के समय गोद में ही सू सू करने की उम्र के
रहे होंगे।
स्वतंत्रता
संग्राम में सच्चे सेनानियों के सीने गोली इत्यादि खाने के काम भी आते थे इसलिए आन्दोलन
में भरती करते समय ठोक बजा कर देखा जाता था कि सीना है कि नहीं। बाद में जब आजादी मिलने
के कुछ दिनों बाद तक इस सीने का कोई उपयोग नहीं हुआ तो आशंका होने लगी थी कि मानव
की पूंछ की तरह कहीं यह भी विलीन ही न हो जाये। पर ऐसा नहीं हुआ, देर सबेर सीना
काम आने लगा। जेल जाने के परिणाम तक पहुँचाने का काम शुरू करने के साथ ही नेता
अपने क्षेत्र में अपने पाँव छूने वाला थानेदार और अपनी जाति का डाक्टर पोस्ट कराने
लगे। वैसे तो नेता की करतूत पकड़ी ही नहीं जाती पर जब बात हद से गुजर जाती है तो नेता
की गिरफ्तारी के साथ ही सीने में दर्द उठता है और डाक्टर डिग्री लेते समय ली गयी
शपथ को प्रणाम करके नेता के सीने में दर्द का सार्टिफिकेट पहले से तैयार करके पीछे
पीछे पहुँच जाता है। कहता है कि मैं तो इनका फेमिली डाक्टर हूं और मुझे तो पहले से
पता था कि जेल जाते समय भैय्याजी के सीने में दर्द उठेगा।
नेता
के सीने का दर्द सामान्य किस्म का दर्द नहीं होता है जो जेल के डाक्टर समझ सकें। इसके लिए विशिष्ट सुविधाओं वाले
अस्पताल और डाक्टर ही जरूरी होते हैं। खग जाने खग ही की भाषा की तरह उनका डाक्टर
ही समझता है कि जेल जाने वाले सीने के दर्द की तीव्रता कितनी है और यह कैसे ठीक
होगा। दूसरे डाक्टरों से तो वे दुष्यंत
कुमार के एक शे’र की तरह कहने
लगते हैं-
सिर से सीने में कभी, पेट से पैरों में कभी
सिर से सीने में कभी, पेट से पैरों में कभी
इक
जगह हो तो कहें दर्द इधर होता है
उनकी बातें सुन-सुन कर तो जेल के डाक्टर के सिर में
दर्द होने लगता है। नेताजी का अपना डाक्टर आकर उनके सारे रोग ठीक कर देता है। वो
ही इंजेक्शन दवाइयाँ लिखता है, वो ही मँगवाता है और वो ही उन्हें इंजेक्शन लगा कर
खुद ही दवाइयाँ खिलाता भी है। एक नेता के प्रताप से शरीर का तापक्रम मापक यंत्र से
लेकर रक्तचाप बताने वाले यंत्र तक इच्छानुसार परिणाम देने लगते हैं। इस देश के
डाक्टर लोगों का इलाज करने से ज्यादा दौलत तो मेडिकल सार्टिफिकेट बना कर पीट रहे
हैं। डिग्री से रजिस्ट्रेशन होता है जिसका उपयोग एक लैटरहैड छपवाने के लिए होता है
ताकि मरीज द्वारा बताये गये रोग, औषधि और समय के अनुसार उस पर मेडिकल सार्टिफिकेट
बना कर रबर स्टाम्प लगायी जा सके। बीस बीस लाख डोनेशन देकर क्या इलाज करने के लिए
डिग्रियां लेगा कोई!
कानून कहता है कि चाहे निन्नावे दोषी छूट जायें पर एक निर्दोष को सजा नहीं होना चाहिए, पर डाक्टरों की कृपा से सौ के सौ प्रतिशत छूट रहे हैं। जो अन्दर हैं वे अस्थायी तौर पर हैं जरा जनता की स्मृति का लोप हो जाये सब बाहर आकर अपने समर्थकों की भीड़ के आगे उंगलियों से वी का निशान बना रहे होंगे, जैसे कि कोई मैच जीत कर आये हों। स्थायी तौर पर तो अन्दर वे ही हैं जिन्हें वहाँ कम से कम रोटी तो मिल रही है बरना बाहर आकर वे अपनी आजादी को कितने दिन चाट चाट कर काम चलाते।
जेल में जब वीआईपी कैदी आता है तो उत्सव का सा माहौल होता है। जेलर से लेकर स्वीपर तक सब खुश नजर आते हैं। वीआईपी आया है तो जेलर के लिए सौगातें भी आयेंगीं, कैदियों के लिए बीड़ी के बन्डल भी आयेंगे। वीआईपी के लिए घर से आये खाने से दर्जन भर कैदी अपनी रसना को तर कर सकते हैं। वीआईपी के आने से बैरकों में सफाई होती है और खाने के मीनू झाड़ा पौंछा जाने लगता है। कई जगह तो उस फिनायल की महक भी आने लगती है जिसका अभी तक केवल बिल आता था।
कानून कहता है कि चाहे निन्नावे दोषी छूट जायें पर एक निर्दोष को सजा नहीं होना चाहिए, पर डाक्टरों की कृपा से सौ के सौ प्रतिशत छूट रहे हैं। जो अन्दर हैं वे अस्थायी तौर पर हैं जरा जनता की स्मृति का लोप हो जाये सब बाहर आकर अपने समर्थकों की भीड़ के आगे उंगलियों से वी का निशान बना रहे होंगे, जैसे कि कोई मैच जीत कर आये हों। स्थायी तौर पर तो अन्दर वे ही हैं जिन्हें वहाँ कम से कम रोटी तो मिल रही है बरना बाहर आकर वे अपनी आजादी को कितने दिन चाट चाट कर काम चलाते।
जेल में जब वीआईपी कैदी आता है तो उत्सव का सा माहौल होता है। जेलर से लेकर स्वीपर तक सब खुश नजर आते हैं। वीआईपी आया है तो जेलर के लिए सौगातें भी आयेंगीं, कैदियों के लिए बीड़ी के बन्डल भी आयेंगे। वीआईपी के लिए घर से आये खाने से दर्जन भर कैदी अपनी रसना को तर कर सकते हैं। वीआईपी के आने से बैरकों में सफाई होती है और खाने के मीनू झाड़ा पौंछा जाने लगता है। कई जगह तो उस फिनायल की महक भी आने लगती है जिसका अभी तक केवल बिल आता था।
सीने के दर्द वाले नेता को डाक्टर, दबाओं और
जाँच रिपोर्टों की जगह अपने वकीलों और जमानत के फैसले की प्रतीक्षा करते देखा जा
सकता है। उनके आते ही उनके सीने में उम्मीदों का ज्वारभाटा हिलोरें मारने लगता है।
अगर उसी समय डाक्टर आ जाये तो वे उसे बाहर बैठने के लिये कह सकते हैं।
जेल
जाते हुए वीआईपी नेता के सीने में दर्द का वही वैसा ही रिश्ता होता है जैसा पहली
बार ससुराल जाती हुयी लड़की का आँसुओं से होता है। वैसे लड़कियों के आंसू तो कई बार
असली भी होते हैं।
वीरेन्द्र जैन
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अप्सरा सिनेमा के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मोबाइल 9425674629
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