व्यंग्य
आधुनिक श्रवण कुमार और बुजर्गों की दृष्टि
वीरेन्द्र जैन
हमारे
पुराण इतने सम्पन्न हैं कि आप अच्छा बुरा कुछ भी करें उसमें से प्रतीक तलाश सकते
हैं। मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री जहाँ बच्चियों के मामा बनने की कोशिश करते हैं
वहीं उनके विरोधी उनके कंस या शकुनि मामा होने का प्रतीक तलाश लाते हैं। विडम्बना यह है कि बढते कुपोषण, बेरोजगारी, लैंगिक भेदभाव, गैंग रेप की बढती
घटनाओं में ये प्रतीक गलत भी नहीं लगता
इन दिनों उन्हें श्रवण कुमार बनने की धुन सवार
हुयी है। जब भी कहीं फिल्में ज्यादा बनने लगती हैं तो लोग नई नई भूमिकाएं तलाशने
ही लगते हैं। पिछले दिनों मध्य प्रदेश में फिल्म गली गली में चोर है की शूटिंग
हुयी थी, पता नहीं उन्हें इस फिल्म के लिए भी हमारे प्रदेश की गलियाँ ही क्यों
उपयुक्त लगीं। भाजपा में आजकल जिसे देखो वही अडवाणी जी से आगे निकलने की कोशिश करने
लगता है। अडवाणीजी ने डीसीएम टोयटा से यात्रा करके उसे रथ यात्रा कहा था तो शिवराज
सिंह रेल से बुजर्गों को यात्रा कराने की योजना बना के उसमें एक ‘ती’ जोड़ के उसे
तीरथ यात्रा योजना बना दिया। पर रथ यात्रा हो या तीरथ यात्रा असफलता दोनों के ही
साथ लगी हुयी है। न अडवाणी राम बन पाये और न ही शिवराज श्रवण कुमार बन पायेंगे।
वैसे भी कई दशरथ शिकार पर निकल पड़े हैं।
श्रवण
कुमार बनने में एक बात आड़े आती है। श्रवण कुमार के माता पिता अन्धे थे और वे अपने
आप तीरथ करने नहीं जा सकते थे पर प्रदेश के बहुसंख्यक बुजर्ग चश्मा लगा कर साफ साफ
देखते हैं, और उन्हें सारे ध्रुव तारे दिखाई देते हैं। लोकप्रिय कवि नीरज की
पंक्तियाँ हैं-
मथुरा से काशी तक भटकी
मथुरा से काशी तक भटकी
बल्कल से मलमल तक धायी
पर बिल्कुल बेदाग कहीं भी
चादर कोई नजर न आयी
देखे संत महंत हजारों
परखे कलाकार कवि लाखों
लेकिन सबकी गोराई के
पीछे छुपी मिली कजराई
इसलिए यह उम्मीद करना कि तीरथ करने से दृष्टिवान लोग भी श्रवण कुमार के माँ
बाप बन जायेंगे एक गलतफहमी है।
इस तीरथ यात्रा योजना में धर्म के
हिसाब से तीर्थ भी बाँट दिये गये हैं। धार्मिक ध्रुवीकरण की ये बारीक हरकत भी
हमारे बुजर्गों को श्रवण कुमार के माँ बाप समझने के कारण की जा रही है। अजमेर शरीफ
का चयन मुस्लिम तीर्थ की तरह किया गया है जबकि वहाँ जितने मुस्लिम तीर्थयात्री
होते हैं उतने ही हिन्दू तीर्थ यात्री भी होते हैं। और यही बात तो संघ परिवार को
पसन्द नहीं। अपने वश भर वहाँ बम विस्फोट भी करा दिये पर जाने वालों की संख्या में
कमी नहीं आयी उल्टे विस्फोट कराने वाले पकड़ में आ गये और सारी कलई खुल गयी। जब
उससे बात नहीं बनी सो मुफ्त तीर्थयात्रा का दाना डाल दिया गया। लोग अगर बँटेंगे
नहीं तो भाजपा का क्या होगा!
पहले बाबाओं को बुलाते थे और उनके
सामने औंधे सीधे होकर भीड़ासन करते थे पर अब बाबाओं की भी कलई खुलती जा रही है,
चाहे रामदेव हों या आशाराम सभी को दवाइयाँ बेचना है और जनता के पास कुछ भी खरीदने
को कुछ नहीं बचा। यही कारण है कि सबकी फिल्में पिटने लगी हैं। ये एक अंतिम प्रयास
है पर इतना तय है कि मुफ्त तीर्थ पर जाने वालों से न जा पाने वाले कहीं ज्यादा
होंगे और दुआओं से बददुआएं अधिक मिलेंगीं।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा सिनेमा के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मोबाइल 9425674629
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