गुरुवार, मई 31, 2012

व्यंग्य- एक डायबिटिक द्वन्द


एक डायबिटिक द्वन्द
वीरेन्द्र जैन
कार्लमार्क्स का यह विश्लेषण पुराना पड़ गया है कि दुनिया दो ध्रुवों में बंटी हुयी है, एक मालिक ओर एक मजदूर, एक शोषक और एक शोषित। मुझे लगता है कि अब दुनिया जिन दो हिस्सों में बंट रही है उसे डायबिटिक और नानडायबिटिक का नाम देना पड़ेगा। एक वे जिन्हें डायबिटीज है और दूसरे वे जिन्हें डायबिटीज नहीं है। हॉं कल नहीं होगी ऐसा नहीं कहा जा सकता है।जिस दर से डायबिटीज के मरीज फल फूल रहे हें उसे देख कर तो लगता है कि थोड़े दिनों में बंटवारा बहुत साफ हो जायेगा।
      ऐसा नहीं है कि मुझे डायबिटीज हो गयी है इसलिए मैं चिंतित हूँ अपितु यह तो मेरा स्वभाव है कि शहर के अंदेशे में रहता ही रहा हूँ और इसी चिंता के कारण तो मुझे डायबिटीज हो गयी है। परसों मैंने यह खबर रामभरोसे को सुनायी तो उसकी आंखों में रहीम का दोहा नाली के पानी में मच्छरों के लारवा की तरह तैरने लगा।
      यों रहीम सुख होत है देख बढत निज गोत
      ज्यों बढरी अंखियॉं निरख अंखियन खों सुख होत
      वे खुश थे कि मैं उनकी जमात में शामिल हो गया था। प्रातःकाल की शीतल मंद बयार में जब निद्रादेवी की गोद और ज्यादा गुदगुदी लगती है तब मैं जूते पहिन कर सड़कें नाप रहा होंऊॅंगा। पड़ोस की लड़कियॉं कहेंगीं- अंकलजी आप भी घूमने जाने लगे! हमारे दादाजी भी जाते हैं। वे मुझे सीधे डेढ पीढी ऊपर चढा देंगीं और मैं कुढ कर रह जाऊंगा।
      जिन्हें डायबिटीज नहीं है वे शोषक हैं । वे फलों के राजा आम पर चाकू चला सकते हैं और उसे कली कली काट कर खा सकते हैं। दूध शक्कर में मथ कर मैंगोशेक बना सकते हैं या अपने दोनों होठों से दबा कर उसे प्यार से चूस सकते हैं तथा कई तरह के मधुर रसों में डूब सकते हैं। जिन्हें डायबिटीज है वे पहले कवि वियोगी की तरह तरस सकते हैं और आम के ठेले के पास से बेनियाज होकर कैफ भोपाली का वो शे’र गुनगुना सकते हैं-
      गुजरना उनकी गली से बेनियाजाना
      ये आशिकों की सियासत किसी को क्या मालूम
      पहले वे लीची के ठेले के पास खड़े होकर लीची का भाव पूछते थे व मंहगी होने के कारण बिना खरीदे रह जाते थे और तब गुस्सा मॅंहगाई पर आता था। अब तो उसका भाव ही नहीं पूछ सकते। अब वो ज्यादा याद आती है। हो सकता है कि सस्ती हो गयी हो पर क्या फायदा! चीकू के ठेले को आलू का ठेला मान लेते हैं।
      मिठाई की दुकान के बारे में पहले माना जाता था कि ऊॅंची दुकान शायद डायबिटीज वालों के लिए ही बनी हैं इसीलिए उसके पकवान फीके होते हैं पर बुरा हो इन डाक्टरों का जो ऊॅंची नीची किसी भी दुकान पर देख लें तो गांव की पाठशाला के गुरूजी की तरह कान उमेठने लगें। मिठाई का बाजार वेश्या की गली हो गया है। किसी नगर में मेहमानी करते हुये यह नहीं पूछ सकते कि आपके नगर की कौनसी चीज प्रसिद्ध है?  सारी चीजें तो शक्कर वाली ही होती हैं- मथुरा के पेड़े हों, आगरा का पेठा हो, हाथरस की खुरचन हो या गंगानगर की मिल्ककेक, सब तो शक्कर के विभिन्न अवतार हैं। इलाहाबाद के अमरूद मलीहाबाद का दशहरी, बालोद का चीकू, सब के सब शर्करा की वृद्धि कर मधुमेहवाणी करते रहते हैं कि यमराज भैंसे या पैसिंजर से नहीं बोईंग-707 से आ रहा है।
      पता नहीं अर्थशास्त्रियों का ध्यान इस पर गया है या नहीं कि भविष्य की अर्थव्यवस्था पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा। मुझे तो भविष्य साफ दिख रहा है कि शक्कर के कारखाने बन्द होकर उनमें पैथोलाजी की प्रयोगषालाएं चल रही हैं या इन्सुलिन बनाने के कारखाने चल रहे हैं। हर फुटपाथ पर डायबिटोलोजिस्ट से लेकर डायटीशियन तक फट्टा बिछाये बैठे हैं। चाय काफी में शक्कर लेने के लिए अलग से आर्डर देना पड़ता है। गन्ने के खेत खत्म हो जाने से प्रेमी प्रमिका को पुराने मंदिर में मिलना पड़ता है जहॉं पहले ही हाउसफुल होने की नौबत है तथा सुविधा देने के लिए पुजारियों ने रेट बढा दिये हैं। महाराष्ट्र सरकार ने सहकारिता विभाग बन्द कर दिया है तथा राशन के दुकानदार शक्कर लिए बिना मिट्टी का तेल भी नहीं दे रहे हैं या अलग से पैसे चाह रहे हैं। शराब बनाने के लिए मोलएसस का अकाल पड़ गया है। अमरोहा सहित कई नगरों में मक्खियॉं कम हो गयी हैं तथा पर्यावरण को यथावत रखने के प्रति चिंतित रहने वाले एनजीओ एक और प्रजाति के कम हो जाने की चिंता को लेकर एक नया प्रोजेक्ट स्वीकृत करा रहे है जिसमें कई रिटायर्ड आइएएसों को काम मिल रहा है।
      बच्चे खुश हैं कि उनकी टाफी अब अंकल नहीं खा सकते। बड़े लोग अब आइसक्रीम दिलाने के लिए ज्यादा ना नुकर नहीं करते क्योंकि वे ही आह भर कर कहते हें कि अभी खा लो बाद में तो बन्द हो ही जाना है। बहुएं सोचती हें कि बूढा घूमने गया तो एक घन्टे के लिए तो शांति मिली नही तो चिचियाता रहता कि हमारे लिए बिना शक्कर की, हमारे लिए बिना शक्कर की। बिना डायबिटीज वाले लड़ाई के लिए ललकारते रहेंगे पर डायबिटीज वाले क्या खाकर लड़ेंगे! और लड़ेंगे भी तो उनके घाव भरने में हफ्तों लगेंगे जबकि बिना डायबिटीज वाले जख्म पर पपड़ी पाड़े दूसरे ही दिन खम्भ ठोकते नजर आयेंगे।
      हमारे विचारक जाने क्यों नहीं सोच रहे हैं वरना डायबिटीज से तो आर्थिक सामाजिक राजनीतिक धार्मिक वैज्ञानिक अवैज्ञानिक हर तरह से प्रभाव पड़ने वाला है। मैं अपने से ही जानता हूँ कि जब से डाक्टर ने मुझे डायबिटीज बतलायी है तब से मेरी तो दुनिया ही बदल गयी है।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास  भोपाल म.प्र.
फोन 9425674629  


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