सोमवार, मई 14, 2012

व्यंग्य- पत्नी सी पत्नी, मामा सा मामा


व्यंग्य
पत्नी सी पत्नी मामा सा मामा
वीरेन्द्र जैन
      औपचारिक पत्नियों को देखते देखते बहुत दिन हो गये थे, पर पिछले दिनों एक खरी पत्नी जैसी पत्नी देखने को मिली तब समझ में आया कि तुमने कैसे ये मान लिया, धरती वीरों से खाली है । ये नकली पत्नियाँ बाहर बाहर तो ताजमहल के सामने वाली बेंच पर फोटो खिंचवाने वाली मुद्रा बनाये रहतीं हैं और अन्दर अपनी वाली पर आती रहती हैं। सन्दर्भित ‘पत्नी’ ने इस द्वैत को तोड़ दिया है। कवि ने कहा है-
तन गोरा मन सांवला, बगुले जैसा भेक
तासे तो कागा भला बाहर भीतर एक  
हुआ ये कि लोकायुक्त पुलिस ने बहुत दिनों बाद अंगड़ाई ली और भोपाल में एक मोटी मछली के यहाँ छापा मार दिया। छापे में उनकी उम्मीद से भी ज्यादा नोट निकलते चले गये, सोना, चाँदी, मकान, जमीन, शेयर, और न जाने क्या क्या निकला जो सौ सवा सौ करोड़ की सीमा को भी पार करता चला गया। यही वह अवसर था जब उस अफसर की पत्नी ने स्वाभाविक पत्नी धर्म का निर्वाह करते हुए लोकायुक्त पुलिस की क्लास ले डाली और उनसे सवाल किया कि हमारे यहाँ तो छापा मारते हो पर उस मंत्री के यहाँ छापा क्यों नहीं मारते जो हर महीने एक करोड़ रुपये लेता है। दृष्य देखने वाला ही रहा होगा जब पतिदेव महोदय उनके मुँह पर हाथ रखते हुए उन्हें घसीटकर अन्दर ले गये पर परम्परागत  पत्नी का मुँह तो पानी की लाइन में हुए लीकेज की तरह होता है जिसमें से एक बार निकलना शुरू होने के बाद शब्द की धार लगातार बहती रहती है। उसने चीख चीख कर पतिदेव से कहा कि मैं कहती थी कि सन्युक्त संचालक ही बने रहो, पर आप नहीं माने संचालक बन गये तो खुद फँस गये, जबकि बाँटना सबको पड़ता था। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में जिस गहराई से मन्दोदरी विलाप का चित्रण किया है उसे पढ कर तो सन्देह होने लगता है कि वे कथा में किसके पक्ष में हैं। ठीक उसी तरह एक ठीक ठाक तरह की पत्नी अपने राक्षस पति के पराभव पर याद दिलाती है कि उसने समय रहते कैसी कैसी समझाइशें दी थीं।
      ग्रहणी लिखने में लोग सामान्यतयः वर्तनी की भूल कर जाते हैं, उसे ‘गृहणी’ लिखते हैं जबकि मेरे अनुसार यह शब्द ग्रहण करने से बना होगा। वो एक बार पैसा ग्रहण कर ले तो वो उसका अपना हो जाता है और लूट के पैसे को जाते देख कर भी ऐसा लगता है कि जैसे खुद ही लुट गये। अफसर की पत्नी में अगर ईर्षा न हो तो उसका जीवन बेकार है, उसे अपने सौ सवा सौ करोड़ से ज्यादा तकलीफ अपने विभाग के मंत्री को एक करोड़ रुपये प्रतिमाह पँहुचाने पर होती रही है। हमारे तो लुट गये पर उसके सही सलामत हैं, उसका बालबाँका भी नहीं हुआ। क्या दुनिया है कमाये हमारा पति और मंत्री मुफ्त में ही लेता जाये। लुटे हमारा पति और मंत्री चैन करे। नौकरी हमारे पति की जाये और मंत्री को एक मलाईदार विभाग और मिल जाये। तेरी जय जय कार जमाने।
      अफसर के साथ एक बाबूनुमा आडिटर के घर पर भी छापा पड़ा जो सच्चा रामभक्त निकला। वह पूरे छपे के दौरान हँसता मुस्कराता रहा जैसे नानक के शब्दों में कह रहा हो कि-
 राम की चिड़ियाँ राम के खेत     
चुग लो चिड़ियाँ भर भर पेट
यह रहस्य बाद में खुला कि वह मामा का भी मामा है। नहीं समझे! अरे भाई अपने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का सगा मामा अर्थात पिता का साला। पहले मामा को मुख्यमंत्री के बंगले पर ही सेवा करने का मौका मिला था जहाँ उसने जरूरत से ज्यादा ही सेवा कर दी थी तो उसे खुला खेत चरने को भेज दिया गया था। इस रामभक्त ने कहा कि मैंने तो अपने मोबाइल की रिंगटोन भी रामजी करेंगे बेड़ा पार डाल रखी है। हमारा कुछ नहीं होगा। उसका अत्मविश्वास देखने लायक था।
      मामा को कुछ व्याकरणाचार्य माँ से जोड़ कर कहते हैं कि इस शब्द में दो मा हैं इसलिए यह दो माँ के बराबर होता है, पर गणित के लोग इसे गलत ठहराते हैं। वे कहते हैं कि दो माइनस मिल कर के प्लस में बदल जाते हैं और परिणाम को उलट देते हैं। किसी शायर ने कहा है-
दो माइनस मिलकर के होता है एक प्लस
जालिम दो बार ही कह दे नहीं नहीं
जब एक ही मामा से पूरा प्रदेश परेशान हो तब फिर मामाओं के भी मामा निकलते जायेंगे तो क्या होगा। पता नहीं अभी कितने मामा और बाकी हैं और उन मामाओं के भी और और मामा बाकी हैं।
वीरेन्द्र जैन
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