बुधवार, जून 29, 2011

व्यंग्य- मांगे मिले न मौत


व्यंग्य

बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले न मौत

वीरेन्द्र जैन

मध्य प्रदेश में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष जानते थे कि जब भी वे केन्द्र सरकार से कुछ मांगेंगे तो वो मिलने वाला नहीं है इसलिए उन्हें मौत मांगते संकोच नहीं हुआ। दूसरी ओर जनता बिना मौत माँगे ही मरी जा रही है। वो चिल्ला चिल्ला कर कह रही है कि मुझे बचाओ, पर सरकार है कि उसके कान पर जूं ही नहीं रेंग रही है।

इससे एक बात तो तय होती है कि भाजपा हमेशा जनता के विपरीत सोचती है, जब जनता जिन्दगी के लिए गुहार लगा रही है तब वे मौत माँग रहे हैं। किसी समय जब पंजाब में आतंकवाद चल रहा था तब कहा जाता है कि उस आतंकवाद को रोकने में मनमोहन सिंह जी की बड़ी भूमिका थी। उन्होंने चुपचाप जाकर आतंकियों से कहा था कि क्यों लोगों को गोलियों से मारते हो कुछ दिनों बाद मैं ऐसी आर्थिक नीतियां लागू करूंगा कि साले अपने आप मर जायेंगे। उनकी बात पर भरोसा करके आतंकियों ने लोगों को मारना छोड़ दिया था। वे अभी भी मनमोहन सिंह पर भरोसा करते हैं। एक पुरानी बोधकथा के अनुसार जब एक लकड़हारा जीवन की कठिनाइयों से बहुत हार गया तो उसने लकड़ी का गट्ठर जमीन पर पटकते हुए कहा कि इससे तो अच्छा ही है कि मौत आ जाये। संयोग मौत कहीं आसपास ही घूम रही थी सो तुरंत ही ऐसे चली आयी जैसे कि 108 नम्बर की एम्बुलेंस हो, और बोली कि कहो मुझे काहे के लिए बुलाया है। लकड़हारे को भी इतनी फास्ट सर्विस का भरोसा नहीं था सो डर गया और बोला कि मैंने इसलिए बुलाया था ताकि ये गट्ठर उठवा कर मेरे सिर पर कोई रखवा दे।

अब वैसे तो सरकार से बिना पूछे दो लाख किसानों ने आत्महत्या कर ली तो सरकार ने कुछ नहीं बोला, पर इसमें अनुमति देने का नियम ही नहीं है। हाथ के चुनाव चिन्ह वाली पार्टी के कानून मंत्री ने हाथ खड़े कर दिये हैं क्योंकि उनके हाथ कानून से बँधे हैं। वैसे आत्महत्या का एक तरीका सचमुच के अनशन पर बैठ जाना भी होता है बशर्ते कोई मुरारी बापू या श्री श्री रविशंकर के आज्ञाकारी न हों। उमाभारती ने गुजरात के विधानसभा चुनावों में भाजश के अपने उम्मीदवार गुरूजी के बहाने से बैठा लिए थे। धर्म और गुरुओं की ओट लेने में भाजपा नेताओं को कमाल हासिल है। शतरंज के खिलाड़ियों को उनसे सीखना चाहिए। सुषमा स्वराज ने सोनिया गान्धी के प्रधानमंत्री बनने की स्तिथि में हिन्दू विधवाओं की तरह सिर घुटा लेने जमीन पर सोने और चने खाने की धमकी दी थी तो उमा भारती ने भी उनसे आगे बढ ऐसा ही करके उन्हें और सोनिया गान्धी दोनों को ही चुनौती दे दी थी।

राजनीति में हथकण्डों के स्तेमाल पर किसी को शोध करना हो तो दुनिया में भाजपा के इतिहास से बेहतर कोई सामग्री नहीं मिल सकती। चार सौ साल पुराने रामजन्म भूमि मन्दिर विवाद को नये राम मन्दिर निर्माण में बदलने, ईंटें जोड़ने को रामशिला पूजन में बदल देने या रामसेतु की चिंता करके देश की अर्थव्यवस्था को होने वाले लाभ को रोकने आदि के नाम वोटों की फसल पैदा करने के वे कुशल कलाकार हैं। पता नहीं कि गिन्नीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड वालों का ध्यान उन तक क्यों नहीं पहुँचा।

हो सकता है कि आमरण अनशन कहने में उन्हें गान्धी की बू आती हो क्योंकि संघ वालों को गान्धी हजम नहीं हो पाते और वैसे भी इन दिनों अन्ना हजारे और बाबा रामदेव ने अनशन का ऐसा कापीराइट ले रखा है कि बाबा रामदेव द्वारा बोतल से ग्लूकोज सेवन करने वाले अस्पताल में ही निगमानन्द अनशन करते करते मर गये पर उनके अनशन को अनशन नहीं ही माना गया। रबीन्द्र नाथ त्यागी ने लिखा है कि आत्महत्या बहुत खतरनाक चीज है, इसमें कभी कभी जान जाने का खतरा भी रहता है।

इन ड्रामों के इंटरवल में दुष्यंत कुमार का एक सलाहनुमा शेर याद आ रहा है, हो सकता है कि किसी के काम आ जाये, बशर्ते वह दिल की जगह राजनीति पढ ले-

इस दिल की बात कर तो सभी दर्द मत उड़ेल

अब लोग पूछते हैं कि गजल है कि मर्सिया

वीरेन्द्र जैन

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