बुधवार, जून 08, 2011

व्यंग्य- एक सांस्कृतिक कार्यक्रम के पक्ष में


व्यंग्य
एक सांस्कृतिक कार्यक्रम के पक्ष में
वीरेन्द्र जैन
ये कांग्रेसी बहुत ही असांस्कृतिक लोग हैं और हों भी क्यों न आखिर शाखा से थोड़े ही निकले हैं। जो लोग संघ की शाखाओं से निकले हुए होते हैं वे सांस्कृतिक होते हैं क्योंकि संघ की नियमावली में लिखा हुआ है कि संघ एक सांस्कृतिक संगठन है और जो एक सांस्कृतिक संगठन है उससे निकले हुए लोग असांस्कृतिक कैसे हो सकते हैं।
अब जब भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद की वैकल्पिक प्रत्याशी, लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने राजघाट पर नृत्य दिखा दिया तो ये कांग्रेसी कह रहे हैं कि राजघाट अपवित्र हो गया। ये कैसी नासमझी की बातें हैं। नाचना गाना भले ही कैसा भी हो किंतु यदि उसे नृत्य संगीत और राष्ट्रगीत जैसे संस्कृतनिष्ठ शब्द दे दिये जायें तो उसमें एक गरिमा आ जाती है। सारा प्रताप शब्दों का ही तो है, अडवाणीजी डीसीएम टोयटा को रथ कह कर लोकसभा में अपनी दो सीटों की संख्या को छियासी और फिर दो सौ तक बढा लेते हैं। अब अगर वे डीसीएम टोयटा यात्रा पर निकालते तो रामभक्त टोयटा-यात्री को टाटा कर देते। इसलिए पूरा संघ परिवार शब्दों के प्रयोग में बहुत चतुराई से काम लेता है। अपने स्कूलों को मन्दिर कहता है जिससे दूसरे धर्मों के लोग अपने बच्चों को भेजने से वैसे ही कतरा जाते हैं। सरस्वती शिशु मन्दिरों में मुसलमान बच्चे प्रविष्ट नहीं हो पाते हो जायें तो भोजन मंत्र पढने के बाद ही खाना खा पायेंगे। क्षमा करें मैं संघ के सांस्कृतिक शब्द जाल में वैसे ही उलझ गया था जैसे मैथली शरण गुप्त की पंचवटी में सूर्पणखा का बाँया हाथ चिकुर जाल में उलझ गया था। हाँ तो मैं कह रहा था कि सुषमाजी ने नृत्य किया तो ठीक किया आखिर बाबा रामदेव को फाइव स्टार होटल में मंत्रमंडलीय स्वागत के बाद महिलाओं के बीच छुपकर और उधार मांगे हुए सलवार कुर्ते में दुपट्टे से मुँह छुपा कर भागने को मजबूर करने का अपराध जो केन्द्र सरकार ने किया था, उसका विरोध तो करना था। सबके विरोध का अपना अपना तरीका होता है, सुषमाजी का तरीका सांस्कृतिक है सो वे सोनिया गान्धी के प्रधानमंत्री बनने का विरोध सिर मुँढा, जमीन पर सो और चने खाकर करना चाहती थीं तथा बाबा पर हुए हमले का विरोध राजघाट पर नाच कर करना चाहती हैं।
मैं इस छिद्रांन्वेषण में नहीं जाना चाहता कि राजघाट एक समाधि स्थल है और शांति व सादगी ही उसकी सुन्दरता है उसे धरनास्थल बनाना ही गलत है व बना भी लिया तो नाचना और ठुमका लगाना गलत है। अरे भैया जिस पार्टी की वरिष्ठ उपाध्यक्ष हेमामालिनी जैसी एक सुप्रसिद्ध नृत्यांगना हो जो अच्छों को केंट वाटर प्योरीफायर का पानी पिला देती हैं, तो उसके बाकी के सदस्य नाच गाने से कैसे दूर रह सकते हैं, चाहे अवसर दुख का हो या सुख का हो। मेरा सैंय्या छैल छबीला मैं तो नाचूंगी। भोपाल में जब पंचज कार्यक्रम वाली मुख्यमंत्री उमा भारती बनीं तब भाजपा कार्यालय के सामने महिलाओं के नाचते हुए फोटो समाचार पत्रों में छपे, जब उमाजी को निकलवाकर गोकुल ग्राम वाले गौर साब सीएम बने तब भी फोटो छपे और जब उमाभारती की लोकतंत्र की माँग को दरकिनार करते हुए स्वर्णिम मध्य प्रदेश वाले शिवराज सिंह चौहान सीएम बने तब भी वैसे ही फोटो छपे जिनमें महत्वपूर्ण यह रहा कि हर अवसर पर नाचने वाली महिलाएं वही की वही रहीं। कोउ सीएम होय हमें का हानी , हमें तो नाचना है। मुख्यमंत्री कोई हो, अवसर कोई हो, सांस्कृतिक पार्टी को तो संस्कृति से काम, सांवरे की बंशी को बजने से काम...............।
नाचने में नृत्य, गीत, संगीत सब सम्मलित रहते हैं। यह हमारी परम्परा का हिस्सा है, पुराणकथाओं के अनुसार शिव जी का तांडव और डमरू दोनों ही प्रसिद्ध हैं, तो रास रचाते श्री कृष्ण तो कुंजन कुंजन में रासलीला करते रहते थे। कर्नाटक में इसी सांस्कृतिक पार्टी की सरकार भ्रष्टाचार का नंगा नाच नाच रही है पर उसे आशीर्वाद देने का श्रेय कोई नेता नहीं लेना चाहता। रेड्डी बन्धु मुख्यमंत्री येदुरप्पा को उंगलियों पर नचा रहे हैं और मुख्यमंत्री पार्टी को नचा रहे हैं, जाओ नहीं देते स्तीफा। मुख्यमंत्री के परम शत्रु अनंत कुमार के बारे में एक नई प्रकाशित किताब में आर के आनन्द ने लिखा है कि उन्होंने उन्हें अपने पड़ोस में स्थित नीरा राडिया के फार्म हाउस में उसके साथ पश्चिमी धुनों पर थिरकते देखा है।
उधर भाजपा में किसी तरह पुनर्प्रवेश के लिए उमाभारती तकली जैसा नाच रही थीं, कभी नागपुर के संघ कार्यालय तो कभी गडकरी के दरबार में कभी यूपी तो कभी एमपी कभी उत्तराखण्ड। कभी बाबा रामदेव को प्रधानमंत्री बनवाने लगती थीं, तो कभी अन्ना हजारे के अनशन स्थल से खदेड़ी जाती थीं, पर कहीं गति नहीं मिल रही थी, किसी गुरू किसी देवता का आशीर्वाद काम नहीं आ रहा था। उनके लिए भाजपा का दरवाजा सुई का छेद हुआ जा रहा था, पर उन्होंने नाचना नहीं छोड़ा गाना नहीं छोड़ा और पूरे छह साल बाद भगवान ने उनकी नैय्या पार लगा दी, बस घाट बदल दिया।
भ्रष्टाचार के लालच से नेत्र मूंदे कांग्रेसियो जरा समझो यार सब ओर नाच चल रहा है, धरती नाच रही है, सूरज नाच रहा है चन्दा नाच रहा है, काला सफेद पैसा नाच रहा है, रिंगमास्टर के कोड़े पर सरकस का शेर तक नाच के दिखा रहा है, इसलिए नाचने दो भाई। जब ए राजा की बारात का बाजा बज गया है तो बाकी बकरों की अम्मा कब तक खैर मनायेगी। चलो तुम भी थोड़े सांस्कृतिक बन जाओ, चलो उठो, अच्छे अमूल बेबी जिद नहीं करते ।

वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 9425674629

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