व्यंग्य
देशभक्त समर सिंह की अमर कहानी
वीरेन्द्र जैन
यह सन 2050 की कहानी है।
अभी तक आपने भूत की कहानियाँ सुनी पड़ी होंगीं- भूत से मेरा मतलब भूतकाल से है और वैसे भी हमारे यहाँ चिट्ठियों में 'थोड़ा लिखा बहुत समझना' लिखने की परंपरा है। यूँ भी कहानी में कल्पनाएं होती हैं संभावनाएं होती हेैं, सपने होते हैं आशकाएं होती हैं और ये ही तो उसे इतिहास या समाचार होने से बचाते हैं। यही कारण है कि मैं भविष्य की कहानी लिखने का दुस्साहस कर रहा हँं।
प्यारे बच्चो यह कहानी सन 2050 की है जब तुम लोग बूढे होने की प्रारंभिक अवस्था में पहँच चुके होगे और मैें दूसरी दुनिया में पहुच चुका होऊॅंगा जिसका नाम अगर होगा तो नर्क होगा। हो सकता है कि उस समय तक अंधविशवास और बढ चुका हो तथा छींक आने पर रूक जाने वाले डाक्टर, अपने मकान पर काली हँडिया लटकाने वाले इंजीनियर, कम्यूटर के आगे नारियल फोड़ने वाले अफसर व शौचालयों का भूमिपूजन करने वाले नेता इस शस्य शयामला भूमि पर बन्दे मातरम गाने और मंत्र चिकित्सा कराने के बाद सूर्य नमस्कार करते हुये जगह जगह पाये जाते हों।
इस समय तक कोई भी चौराहा ऐसा नहीं बचा होगा जहाँ पर कोई ना कोई मूर्ति ना लगी हो। चौराहे कम पड़ गये होंगे पर मूर्तियाँ कम नहीं पड़ी होंगी तथा वे हजारों की संख्या में किसी न किसी गोदाम में काई खाती हुयी किसी नये चौराहे के बनने की प्रतीक्षा कर रही होंगीं।
बच्चो, कुछ चौराहों पर एक गोलमटोल घुटियल आदमी की मूर्ति लगी होगी जिस के चेहरे पर एक सुनहरे फ्रेम का चश6मा होगा और जिसके होंठ बोलने के लिए फड़फड़ाते से दिख रहे होंगे। मूर्ति के नीचे जड़े काले पत्थर पर सुनहरे अक्षरों में लिखा होगा अमर शाहीद देशभक्त समर सिंह। जन्म 27 जनवरी 1956 अलीगढ (उत्तरप्रदेश)। अगर पीछे की ओर से देखोगे तो एक छोटी सी काया कुर्ता धोती पहिने हुये मूर्ति की छाया में दुबक कर चल रही होगी जिसके बारे में पूछने पर पता चलेगा कि वो कभी उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे नरमसिंह हैं जिनके विचार, सोच, सिद्धांत, संघर्ष, आदि सारी सम्पत्ति को समरसिंह ने कौड़ियों के मोल खरीद कर अपना दास बना लिया था। उसके बाद जहाँ जहाँ समरसिंह की मूर्ति लगायी जाती है उसके पीछे दुबकी हुयी पहलवान नरम सिंह की मूर्ति भी लगी होती हैं। जैसे महादेव के मन्दिर में नादिया होता है।
बच्चो,तुम ठीक समझे, उस दौर में ये आज के फरफराते नेता समरसिंह की ही मूर्ति होगी। स्कूल की छठवीं कक्षा में सातवां पाठ समरसिंह का ही होगा। जिसमें उनकी जीवन गाथा के बारे में विस्तार से लिखा होगा।
बच्चो, समरसिंह से पहले हम स्वतंत्रता का मतलब समझते थे कि किसी भी दूसरे देश की सत्ता से मुक्त अपनी स्वतंत्र संप्रभुता। देश भक्त समरसिंह ने हमारी यह भ्रान्ति तोड़ी और हमें बतलाया कि स्वतंत्रता का मतलब होता है गुलामी स्वीकारने की आजादी। उन्होंने ही बतलाया कि अभिव्यक्ति की आजादी का मतलब होता है बात को घुमाने की स्वतंत्रता, और बात के आशय से अलग अर्थ निकालने और जोर जोर से नक्कारखाने का शोर मचा कर सच्चाई की तूतियों की आवाजों को चुप कराना।
महाराजा समरसिंह के मैदान में आने से पहले लोग समझते थे कि धर्मनिरपेक्षता का अर्थ शाासन का किसी भी पंथ विशेष से असंबद्ध रहते हुये सरकारी कामकाज का संचालन होता है किंतु उन्होंने इस भ्रम को तोड़ते हुये हमें बताया कि धर्मनिरपेक्षता का मतलब होता है कि बहुसंख्यकों के हिंसक संगठनों से आतंकित अल्पसंख्यकों के वोटों को गैर राजनीतिक आधार पर अपनी झोली में समेट लेने की कूटनीति और फिर उन्हें उन्हीं बहुसंख्यकों की पार्टी को बेच देना।
वे सार्वजनिक रूप से साम्प्रदायिकता और राजनीति में और धर्म के मेल के खिलाफ थे। उनका कहना था कि राजनीति में धर्म का क्या काम! राजनीति तो व्यापार है इसलिए वे उद्योगपतियों व्यापारियों के आसपास मंड़राया करते थे। उनका आयकर का रिर्टन भी व्यापारियों की तरह यथार्थवादी होता था और उन्हीं की तरह उनकी आय में उतार चढाव आते रहते थे।
वे इतने स्वतंत्रचेता थे कि अनेक लोगों को उनकी पार्टियों की गुलामी से मुक्त कराके उनका आर्थिक उत्थान कराने में उन्होंने अपना सारा जीवन लगा दिया। अनेक सांसद विधायक आदि पदों पर रहे लोग आज भी उनके योगदान को याद करते रहते हैं। लोकतांत्रिक ढंग से शासन चलवाने के लिए उन्होंने सदैव ही सरकार बनाने को उतावले लोगों को हाथ के मैल के सहारे बहुमत दिलवाने में योगदान दिया और अपने हाथों में बांटनहारे की तरह मेंहदी का रंग लगवाते रहे। यदि वे लोकतंत्र की ऐसी मदद नहीं करते तो देश की सेवा करने को कृतसंकल्प नेता तानाशााह होने की कोिशश करते तथा हमारे देशा का हाल पाकिस्तान जैसा हो जाता। उनके कारण हर तानाशााही लोकतंत्र की वर्दी पहिने रही।
देशाभक्त समरसिंह ने व्यापार में स्वस्थ प्रतियोगिता पैदा करने पर हमेशाा जोर दिया जिससे कि देश का विकास हो सके जिसके लिए वे चाहते रहे कि भाई भाई भी आपस में प्रतियोगिता करें। उनकी प्रतिभा इतनी अधिक थी कि जब उन्होंने एक बड़े व्यापारिक घराने के दो भाइयों में जूतमपैजार करा दी तो उनकी माँ समेत रामलखन भरत शत्रुघन के प्रेम की कथा वांचने वाले मुरारी बापू भी उन्हें नहीं समझा सके व उनके प्रवचन निरर्थक हो गये। परिणाम यह हुआ कि उनके भक्त आशाराम बापू के चेले होने लगे तथा कुछ बाबा रामदेव के आगे उल्टे सीधे होकर योग करने लगे।
उनकी सबसे अच्छी प्रतिभा तो एक बार राष्ट्रपति के चुनाव के समय में प्रकट हुयी थी जब उन्होंने एक प्रतिभाशाली फिल्मी नचैये व मॉडल सेल्समैन को राष्ट्रपति बनवाने के लिए बयान दिया था। उस रात मैं रातभर सपने देखता रहा कि हमारा राष्ट्रपति डाबर का च्यवनप्राश बेच रहा है, एवरेडी की बैट्री बेच रहा है, रीड एन्ड टेलर की सूटिंग बेच रहा है तो कैडबरी की चाकलेट बेचने के बाद हाजमोला के चटखारे ले रहा हैं। 26जनवरी की परेड की सलामी लेते लेते कोल्डड्रिन्क पीने लगता है जिससे सारी दुनिया में उस कोल्डड्रिन्क की बिक्री बढ सके। उसने राष्ट्र के नाम संदेश के बीच में एक ब्रैक डलवा दिया है और बीच में वह लाइव विज्ञापन करने लगता है।
खुद समरसिंह को एक एड्हेसिव कम्पनी ने विज्ञापन के लिए बहुत अच्छे आफर दिये थे कि वे जनता को यह बतावें कि वे उस अभिनेता के साथ इतना कैसे चिपके रहते हैं कि रात में बैड के नीचे से भी उन्हें बाहर निकाल कर कहना पड़ता था कि समरसिंह रात हो गयी है अब तो घर जाओ और कम से कम बैड रूम में तो मुझे अपने साथ से मुक्त करो। पर समरसिंह ने विज्ञापन का वह ऑफर आफर ठुकरा दिया था।
महिलाओं के साथ समरसिंह के बेहद पवित्र सम्बंध थे। इसमें टेलीकम्युनिकेशन की बड़ी भूमिका थी क्योंकि वे उनसे फोन पर बातें कर के ही संबंधों को पवित्र बनाये रखते थे। जब किसी ने उनके फोन टेप करने जैसा महान अपराध कर डाला था तो वे बंदर की तरह नाचे थे और अदालत में गुहार लगा कर उन्होंने मीडिया को अशलील बातचीत छापने के अपराध से बचाने का महान काम किया था। आज भी सारा जमाना उनके इस उपकार को याद करता है।
उनके जितने भी गुण याद किये जायें वे कम हैं। उनमें एक सबसे बड़ा गुण यह था कि वे निराभिमानी थे। घमंड तो उन्हें छू भी नहीं गया था। कहीं भी दावत हो रही हो तो वो बिना वुलाये पहुँच जाते थे तथा वहाँ से निकाले जाने पर रहीम का वह दोहा पड़ते थे-
रहिमन वे नर मर गये जो कहीं मांगन जायँ
उनसें पहिले वे मुएं जिन मुख निकसत नाँय
पर दूसरों के लिए वे लड़ भी जाते थे। जब एक कलाकार ने उनके चिपकन कलाकार को पिछली सीट पर बैठा दिया तो वे हॉल से बाहर होने से पहले आपे से बाहर हो गये थें।
नेताजी नरम सिंह के साथ वे माउथपीस की तरह लगे रहते थे क्योंकि नेताजी को बोलना नहीं आता था और अजीब सी हाउ हाउ करते थे पर समरसिंह उनकी बात का अर्थ अपने करारे शब्दों में व्यक्त कर देते थे और नमक मिर्च का कोई पैसा चार्ज नहीं करते थें। ऐसा करते करते उन्होंने नरमसिंह को भी पीछे छोड़ दिया था और लोग उन्हें ही पूछने लगे थे। वे पार्टी में किसी विधायकसांसद का टिकिट काटना नहीं चाहते थे इसलिए कभी चुनाव में खड़े नहीं होते थे तथा सीधे राज्यसभा में जाने में भरोसा रखते थे।
वे समझदार भी बहुत थे। जिस परमाणु समझौते कों बहुत होशियार बनने वाले वामपंथी सालों में नहीं समझ पाये उसी को समरसिंह ने एक दिन में पूर्वराष्ट्रपति के पास बैठ कर समझ लिया था और एक दो दिन का टयूशान न्यूर्याक जाकर ले आये थे।
महापुरूषों के हाथों की लकीरों में जेलयात्रा भी लिखी होती है और प्रभू के लिखे को पूरा करने के लिए उन्होंने ऐसे काम भी किये जिससे तत्कालीन कानून जेल में डालता है।
प्यारे बच्चो समर की गाथा,-हरि अनंत हरि कथा अनंता- की तरह बहुत व्यापक है इसलिए फिर दुहराता हॅूं कि थोड़ा लिखा बहुत समझना।
वीरेन्द्र जैन
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