अजहरूद्दीन के नाम खुला खत
वीरेन्द्र जैन
मेरे प्यारे अजहरूद्दीन,
अनंत शुभकामनाएं
यह जान कर मुझे परम प्रसन्नता हुयी कि आप को काँग्रेस इलेविन के टिकिट पर रामपुर लोकसभा सीट से चुनाव में उतार दिया गया है। मुझे परम प्रसन्नता क्यों है यह मैं थोड़ी देर बाद बताऊॅंगा पर अभी यह बता दूँ कि आप इस क्षेत्र में कदम रखने वाले पहले व्यक्ति नहीं हैं। एक समय था कि जब भाजपा काँग्रेस का अनुसरण करती थी पर एक समय यह आ गया है कि दोनों ही एक दूसरे का अनुसरण करती नजर आ रही हैं। इस क्षेत्र में किसी भी फार्मूले पर किसी का कोई कॉपी राइट नहीं होता। जिस देवता के आशीर्वाद से किसी को बच्चा पैदा होने का भ्रम हो जाये फिर तो उसके मंदिर पर बांझों का मेला लगने लगता है। भाजपा तो टोटकों वाली ही पार्टी है। चेतन चौहान, सिद्धू ही नहीं उसने तो दारा सिंह शत्रुघ्न सिंहा से लेकर 'कुत्ते कमीने तेरा खून पी जाऊॅंगा' वाले धर्मेंन्द्र और उनकी (शायद) पत्नी हेमा मालिनी से लेकर दर्जनों फिल्म व टीवी कलाकारों द्वारा अपनी नैया पार लगवायी है। काँग्रेस को थोड़ा बाद में अकल आयी।
प्यारे भाई, तुम्हें जब उन कारणों से कैप्टन के पद से हटा दिया गया था जिसका क्रिकेट से कोई सम्बंध नहीं तब तुमने अपने मुसलमान होने का आधार बनाने की कोशिश की थी जबकि ऐसा था नहीं। सटटेबाजी पर किसएक धर्म को मानने वालों का हक कैसे हो सकता है? जो काम सामाजिक कार्यकर्ता नहीं कर सकते वह आर्थिक भ्रष्टाचार समाज को धर्मनिरपेक्ष बनाता है। जब सभी से रिशवत लेना हो तो हिन्दू मुस्लिम ब्राम्हण शूद्र में काहे का भेद! इसलिए तुम काँग्रेस के लिए उपयुक्त उम्मीदवार थे।
यार, अब जब तुम राजनीति में आ ही गये हो तो फिर शर्माना कैसा! राजनीति ही तो ऐसा खेल है जहाँ पर खुल के खेलने में ही भलाई है। तुम चाहो तो अमरसिंह को अपना आर्दश बना सकते हो। कुछ झूठवूठ बोलना भी सीख लो इस मामले में आडवाणीजी की आत्मकथा से बहुत मदद मिलेगी। यदि अभी पढने का टाइम नहीं मिले तो चुनाव के बाद पढ लेना। इतना याद रखना कि कॉग्रेस की गृहस्थी में छक्कों से काम नहीं चलेगा वहाँ चौका भी लगाना पड़ेगा बरना अर्जुनसिंह की तरह वफा बेवफा करते रह जाओगे।
हाँ अब मैं अपनी बात पर आता हूँ। मेरी परम प्रसन्नता का कारण यह हेै कि जब तुम आ ही गये हो तो फिर अब तुम्हें फूहड़ चुटकलों पर हँसना भी सीखना पड़ेगा क्योंकि इसके बाद कई लाफ्टर चैलेन्ज शो तुम्हार इंतजार करते मिलेंगे। वैसे तुम जो रोती हुयी शक्ल बना कर बैठे रहते हो उसमें बदलाव लाना पड़ेगा जिसके लिए मेरे पास तरकीब है। मैं कभी लतीफा लिखा करता था और तब के लिखे मेरे पास अठारह हजार लतीफे संकलित हैं। किसी जमाने में धर्मयुग इन लतीफों का पाँच रूपये लतीफे के हिसाब से पेमेंट करता था जिसके अब पाँच हजार मिलते हैं। मैं इनमें से तुम्हें जितने चाहो उतने दे सकता हूँ अब तुम अपने आदमी हो सो बदले में जो चाहो सो दे देना। बुरा मत मानना क्रिकेट से राजनीति में आया हुआ आदमी इससे अधिक कुछ कर भी नहीं सकता है तथा काँग्रेस को भी तुम्हारी लोकप्रियता के बदले एक अदद वोट जुटाने से ज्यादा उम्मीद भी नहीं है। यदि कोई क्रिकेट वाला कुछ कर सकता होता तो सिद्धू क्यों नहीं करता। हाँ लेकिन सिद्धू की तरह हर लतीफा सुनाने वाले से 'अब बस कर मेरे बाप' नहीं कहना बरना माँ बाप नाराज हो सकते हैं।
जब तुम राजनीति में आ ही गये हो तो खुश रहो और अब हँसो और इतना हँसो कि जनता की रूलाई सुनाई न दे जो चुनावों के बाद बुक्का फाड़ के रोने वाली है।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
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हमारी भी शुभकामनाये जी अभूतपूर्व कैपटन को . पक्कई बेशर्मी से उतरे इस मैदान मे हार जाये तो कहे कि अल्पसंख्यक हू . जीत कर कही भ्रष्टाचार बेईमानी चोरॊ डकैती या ब्लातकार के आरोपी बन जाये तो अल्पसंख्यक राग आपके पास है ही बाकी भैया ने आपको बिना पैसे लिये पूरा ज्ञान बाट दिया है . चुटकुले सारे लेलो पैसे के मामले मे अल्पसंख्यको से ये भाई भी पैसा नही लेते :)
जवाब देंहटाएंsir caption sahab ko sahi jankare drnay kay leya dhanayabad capt.ape ka kula patar padagay bang may bachcha honay ka bhram very good
जवाब देंहटाएंpradeep kushwaha