व्यंग्य
जूता गाथा
वीरेन्द्र जैन
जूता फिर चल गया
वैसे तो जूते का काम ही चलना है और सच कहें तो सारी दुनिया को जूता ही चला रहा है। जूता एक मात्र ऐसा यात्री है जो इस दुनिया में अस्तित्व में आने के बाद लगातार चल रहा है। एमएफ हुसैन जैसे कुछ ही लोग हैं जो बिना जूते के चलते हेैं इसलिए मन्दिरों से जूते चुराने वालों ने उन पर जूता चलाने में कोई कोर कसर कभी नहीं छोड़ी।
जूते का चलना इतना सामान्य है कि वह वैसे खबर नहीं बनता जैसी कि नेताजी के चलने की बनती है। नेताजी की पद यात्रा अर्थात पैदल चलना ही खबर हो जाता है जबकि उनके चरण कमलों के नीचे सड़क और कंकड़ों से निबटता हुआ जूता चल रहा होता है। जूता तभी खबर बनता है जब वह किसी के पैर में न होने पर भी चलता है खास तौर पर हाथों से होता हुआ हवा में चलता है तो खबर बन जाता है।
पुराने जमाने में जब जूता बना ही नहीं था तब उसके चलने का सवाल ही नहीं उटता इसलिए तब लातें चलती थीं। उस समय भी अगर जूता होता तो अवशय ही चलता। भृगु को जूते के अभाव में लात से ही काम चलाना पड़ा था-
क्षमा बड़िन को चाहिये छोटन के उत्पात
का रहीम हरि को घटयो जो भृगु मारी लात
रावण के पास भी शायद जूता नहीं था इसलिए उसने विभीषण को लात मार कर निकाला था अगर जूते होते तो वो उसे जूता मार कर ही निकालता।
वैसे हाथों के माध्यम से जूता चलने की प्रथा अकबर के नवरत्नों में से एक अब्दुल रहीम खानखाना के समय में अस्तित्व में आ गयी थी इसीलिए उन्होंने लिखा है-
जिह्वा ऐसी बावरी कह गई सरग पताल
खुद तो कह भीतर भई जूती खाय कपाल
जूता के चलने की मंजिल तब से अब तक कपाल ही बनी हुयी है। जूता मारने का मतलब यह साबित करना होता है कि तुम्हारा सबसे ऊॅंचा स्थान हमारे सबसे नीचे स्थान के बराबर है। मनु महाराज के सिद्धांत के अनुसार चरण जो शूद्र होते हैं उन्हें सिर अर्थात ब्राम्हण के ऊपर करने का काम ही जूता मारने का काम होता है। मनु महाराज की व्याख्याओं को उलटने का काम हमारे संविधान ने करने का जो प्रयास किया है उसके कई आयाम संभव हैं।
एक इन्टरव्यू में पूछा गया था कि जूता अस्त्र है या शास्त्र?
जो उम्मीददवार बाद में सफल घोषित हुआ उसका उत्तर था- दोनों, यदि फेंक कर मारा जाये तो अस्त्र और हाथ में लिये हुये ही जम कर लगाये जायें तो शस्त्र।
बाद में तो कहावतें बताती है कि जूता मारने और पिटने की कितनी सुन्दर व्यवस्था हमारी परंपरा में है जिनमें कहा गया है - भिगो भिगो कर मारेंगे!
सौ लगायेंगे साठ गिनेंगे।
मार मार कर खोपड़ी गंजी कर देंगे। इत्यादि
क्षमा कर देने की हमारी पुरानी परंपरा की अभी भी रक्षा हो रही है। कहते हैें कि क्षमा वीरस्य भूषणम् पर क्षमा का हाल यह हो गया है जैसे कि किसी शायर ने कहा है-
नाज है उनको बहुत सब्र मुहब्बत में किया
पूछिये सब्र न करते तो और क्या करते!
वैसे पुराने समय के प्रभुओं को जूतों से बड़ा डर रहता होगा इसीलिए हमारे देश के सभी धर्मस्थलों में जूतों को बाहर उतार कर ही प्रवे6ा करने की परंपरा है। भक्तों को भगवान पर भरोसा हो सकता है पर जरूरी नहीं कि भगवान को भी भक्तों पर भरोसा हो। जब तक घर मकान नहीं हुये थे तब तक जूते बाहर उतार कर ही घर में प्रवेश करने की परंपरा थी पर घरों के मकान बनते ही सबसे बड़ी बात जो हुयी है वो यही कि अब सबके यहाँ जूते चलने लगे हेैं।
जूते जब खड़ाऊॅं माडल में आते थे तब बड़े पवित्र समझे जाते थे सिंहासन तक पर प्रतिष्ठित होते थे। तब बड़े से बड़े महाराजा के पास भी केवल एक ही जोड़ हुआ करते थे इसीलिए तो भरत ने राम के बनवास जाते समय वे ही खडाऊॅं उतरवा ली थीं जो वे पहिने हुये थे अगर दूसरी होतीं तो वे कह सकते थे कि सिंहासन पर पुरानी वाली रख कर काम चला लो। इससे लाभ ये हुआ है कि इस पवित्र भारत भूमि पर उनके चरण चिन्ह बन गये जिनको खोजने के काम में मध्यप्रदेश की सरकार करोड़ों रूपये अपने वालों को देकर लगाने वाली है तथा उन स्थानों पर जो मस्जिदें चर्च इत्यादि बन गये होंगे उन्हें तोड़ कर संसद विधानसभाओं में सीटें बढवाने की योजना अपने आप पूरी होगी। ज्यादा से ज्यादा कोई लिब्राहन आयोग बैठाना पड़ेगा जो हजरते दाग बन कर बैठ जायेगा और तब तक बैठा रह जायेगा जब तक कि दे6ा ही न बैठ जाये!
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629
aapki is post ko ratlam, Jhabua(M.P.), dahood(Gujarat) se Prakashit Danik Prasaran me prakashit karane ja rahan hoon.
जवाब देंहटाएंkripaya, aap apan postal addres is mail par bhi send karen, taki aapko ek prati pahoonchayi ja saken.
pan_vya@yahoo.co.in
virendra ji dhanyvaad, ऐसे ही अपनी लेखनी से हमें परिचित करते रहें
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
मयूर दुबे
अपनी अपनी डगर
यह शायद मानव की नारजगी प्रकट करने का साधन है। काश इस कोशिश से सभी कुछ ठिक-ठाक हो तो शायद आपके लिखने का सफल हो जाऐ। बहुत ही अच्छा लिखा। आपको बधाई ।
जवाब देंहटाएंहे प्रभु