व्यंग्य
रिटायर्ड और रफूगर
वीरेन्द्र जैन
रफू करने वाला रिटायर लोगों को पहचानाता है।
वे उसके नियमित ग्राहक होते हैं। कभी पैंट ठीक कराने आते हैं तो कभी स्वेटर।
पुराने पुराने जमानों के पैंट देखने हों तो रिटायर्ड आदमियों को उनके घर पर मिलने चले जाइये। एकदम संकरी मोहरी की रंग उड़ी पैंट पहिने मिल जायेंगे। इसी पेंट में ये 'सूखे बेर' कभी खूब फबते थे। ये पेंट पहिन कर ही इन्होनें सक्सेना मैडम पर अपने प्रेम का इजहार किया था जिसकी शिकायत उसने दफ्तर के बड़े साहब से कर दी थी। सक्सेना मैडम के इस साहस से बड़ा साहब डर गया था क्योंकि वह खुद अगले ही दिन अपने प्रेम का इजहार करने वाला था।
फिनायल की गोलियों को वर्षो झेलने के बाद और सर्दियों में वार्षिक रूप से धूप देखने के बाद अब अपनी अंतिम यात्रा पर निकल ही आयी ऐसी पैंटें रिटायर्ड की सूखी टांगों पर और पुन: चिपक जाती हैं। पूरे प्रयास से अपनी रीढ़ सीधी किये ये अपने कंधों के हैंगर पर लटकाये रहते हैं उस कुर्ते पाजामें के सैट का वह कुर्ता, जिसका पाजमा घुटनों से फट चुकने के बाद अब पोंछा लगाने के काम आ रहा होता है।
रफू वाला जानता है कि इस बूढे क़े पास से कुछ मिलने वाला नहीं है, क्योकि उत्तराधिकार कानून के अन्तर्गत रफू वाला नहीं आता। यहॉ तक कि आशीर्वाद भी कुछ नियमों और धाराओं के अन्तर्गत असली वारिसों के लिए सुरक्षित होते हैं। हॉ जीवन अनुभव जरूर रफू वाले को मुफ्त मिल जाते हैं क्योकि इन अनुभवों को झेलने की फुरसत किसी भी असली वारिस के पास नहीं होती। रफू पर अपनी आंख गढ़ाये, वह कानों से सुनता रहता है। घर के, दफ्तर के, शहर दर शहर हुए ट्रांसफरों के, और न जाने कहॉ कहॉ के - पर सब अतीत के। वर्तमान के बारे में चुप लगा जाना चाहता हैं रिटायर्ड आदमी। क्यों करे अपने बेटों बहुओं की बुराई इस बाहरी रफूगर के सामने।
वर्तमान के बारे में बोलना होगा तो अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों पर बोलेगा। गाजा पट्टी पर दौड़ लगायेगा। क्यूबा पहुँच जायेगा। ज्यादा नजदीक आने का मन हुआ तो चीन अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बारे में बोलने लगेगा। अगर आपने किसी तरह उसे देश पर ही उतार दिया तो केन्द्र सरकार पर बोलेगा। पक्षधरता से बचेगा तथा यहॉ वहां निगाह डालने के बाद कहेगा कि सब चोर हैं। ऐसा कह कर वह असली चोर को चोर कहने से बच जाता है। यह बेहद आर्दश और प्रचलित वाक्य हो गया है। इसको बोलने से कोई खतरा नहीं रहता और गाली दिये जाने का साहस भी प्रगट हो जाता है, भले ही इस कूटनीति के कारण गिने चुने वे लोग भी पिस जाते हों जो कि जिन्दगी भर से ईमानदारी का चिरायता पी रहें हो और इसी कारण गिने चुने हों। राज्यों पर बोलना पड़ा तो वो जम्मू कश्मीर, असम, नागालैण्ड, त्रिपुरा आदि पर बोलेगा विदेशी आतंकवादियों को दोषी बतायेगा। अपने राज्य पर उतरेगा तो स्वर को धीमा कर लेगा- फुसफुसाने जैसा- इस सरकार के बारे में कुछ कहेगा तो लगे हाथ पिछली सरकार के भी दोष बताता जायेगा। परिस्थितियों को भी गिनाता रहेगा- भष्टाचार तो है, पर क्या करें बरसात भी नहीं हुयी, सोयाबीन का तो बीज ही सूख गया या बाढ़ आ गयी, भूकंप आ गया, बगैरह बगैरह।
रफू करने वाले को रोज ही ऐसे लोगों से वास्ता पड़ता है पतली सुई से पतले पतले धागों के सहारे उन छेदों को भरता रहता है, जो हो चुके हैं पर उसकी कलाकारी से वे हो चुके दिखायी न दें। वह एक ओर से सुई डालकर दूसरी ओर निकालता है और दूसरी ओर से डालकर पहली तरफ निकाल देता है उसी तरह वह रिटायर्ड लोगों की बातें एक कान से सुनकर दूसरी तरफ से निकाल देता है। रिटायर्ड लोग शिफ्टों में आते रहते हैं उसके पास। चाय वाय नहीं पीते कहते हैं बिना शक्कर की पीते है पर चाय वाले छोकरे के पास बिना शक्कर की चाय नहीं होती।
छेद भर कर लम्बी सांस छोड़ता है रफूवाला और ध्यान के केन्द्रीकरण को ऐसे विकेन्द्रित कर देता है जैसे बरसात आने पर बंधा हुआ छाता खोल लिया जाता है। छेद में सिमिट गयी दुनिया फिर फैल जाती है। अर्जुन को पूरी चिड़िया, पेड़ और पर्यावरण भी नजर आने लगता है। इसी के साथ रिटायर्ड आदमी सिमिट जाता है बड़ी मुश्किल से अपनी टांगों पर चिपके पेंट से दो और दो और एक मिला कर पाँच रूपये देता है और किसी अपराध बोध से उसकी प्रतिक्रिया जाने बिना अपना पैंट लेकर चला जाता है।
एकाध महीने बाद फिर किसी पुराने पैंट या स्वेटर को लेकर आयेगा।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629
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