व्यंग्य
प्रयोगशाला में रक्त
वीरेन्द्र जैन
समाचार न्यूयार्क का है और इसे एडवांस्ड सेल टैक्नोलौजी, रोचेस्टर स्थित मायो क्लीनिक और शिकागो की इलीनोसिस यूनीवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने खुशी खुशी दिया है। समाचार यह है कि उन्होंने प्रयोगशाला में रक्त बनाने में सफलता पा ली है।
इस खबर से जहाँ अमरीका के वैज्ञानिकों को खुशी हो रही है वहीं इसने मेरा खून खौला दिया है, जो असली है।
यह हमारे पौराणिक इतिहास पर हमला है । हमारा तो सारा पौराणिक साहित्य ही रक्तरंजित है और इसी रक्तरंजन से हमारा मनोरंजन होता रहा है। भक्ति साहित्य में हमारे सारे नायक अपने अपने समय के खलनायकों को रक्त स्नान कराते रहे हैं व इसी रक्त प्रवाह को देख कर हम अपने नायकों की महानता और ताकत को पहचानते रहे हैं। कोई वाण चला रहा है तो कोई चक्र चला रहा है कोई त्रिशूल से एक साथ तीन छेद कर रहा है तो कोई मुग्दर से खोपड़ा फोड़ रहा है। हथियारों द्वारा न मरने का वरदान भी ले लिया हो तो हमारे देवताओं ने घुटनों पर रख कर नाखूनों से ही चीरफाड़ डाला। जाओ बेटे कहाँ जाते हो। ये बिल्कुल वैसा ही था जैसे कभी कभी कोई थानेदार मंत्री के खास सिफारिशी आदमी को हरिजन महिला से बलात्कार के मामले में फंसवा कर कहता है कि और करा ले मंत्री की सिफारिश अब देखते हैं कि मंत्री का आशीष भी तुझे कैसे बचाता है? खूनाखच्चर से कोई बचना भी चाहे तो उसे गीता सुना दी जाती है जिससे वह 'जो आज्ञा' कह कर मैदान में कूद जाता है। अब अगर नकली खून बन गया तो सारा मजा ही जाता रहेगा। ज्यादा से ज्यादा कंजूस आदमी अफसोस करेगा कि दस हजार का खून बह गया, बहुत नुकसान हो गया।
अब पता नहीं खून के संबंधों का क्या होगा! लोग पूछेंगे कौन से खून के सम्बंध? असली के या नकली के? 'खून का बदला खून' का अर्थ होगा कि तुमने हमारे दो लीटर खून का नुकसान कराया था अब हम तुम्हारे चार लीटर खून का नुकसान करायेंगे।
विश्वहिंदू परिषद के लोग जब नारा लगायेंगे- जिस हिंदू का खून न खौले खून नहीं वो पानी है- तब लोग अपनी तरफ से एक दो लीटर खून उन्हें यह कहते हुये भिजवा देंगे कि अभी जरा मैं व्यस्त हूँ तुम और किसी हिंदू के यहॉ खौलवा लो।
'खून भरी मांग' से कोई नये तरह के कॉस्मेटिक आइटम की कल्पना कर सकता हैं जैसे लिपिस्टक में जानवरों का खून लगता था वैसे अब मनुष्यों के नकली खून का प्रयोग होने लगेगा और उसे वैसा ही शाकाहारी मान लिया जायेगा जैसे बायलर अंडे को अहिंसा धर्म वाले अनेक लोग शाकाहारी मान चुके हैं। लिपिस्टक पर कन्टेंट्स में लिखा रहेगा 'आर्टीफीशियल ह्यूमन ब्लड यूज्ड'।
खून के आंसू ग्लिसरीन के आंसुओं की ही दूसरी किस्म मान ली जायेगी। गालिब का वह शेर बेकार हो जायेगा जिसमें वे कहते हैं कि जो आंख से ही न टपका तो फिर लहू क्या है! जब कवि भावुकता पैदा करने के लिए कहेंगे कि मानव का रक्त बहुत सस्ता हो गया है तो लोग समझेंगे कि बाजार में नकली खून के रेट गिर गये हैं। अग्रवाल साब जैन साब से पूछने लगेंगे कि नकली खून बनाने वाली कम्पनी के तुम्हारे पास कितने शोयर हैं उसके रेट गिर रहे हैं।
बाजार में भी लोग नकली खून के भी असली होने की मांग करेंगे क्योंकि तब तक नकली खून के भी कई डुप्लीकेट ब्रान्ड बाजार में आ जायेंगे। मरीज के रिश्तेदार दुकानदार से कहेंगे कि यार अपने घर का मामला है जरा असली वाला देना चाइना वाला मत टिपा देना।
असली मुसीबत तो रक्त दान शिविरों पर आयेगी जिसमें किसी के भाग लेने की जरूरत ही नहीं रह जायेगी। तब जहाँ राजीव गांधी, इंदिरा गांधी, संजय गांधी आदि के जन्म दिन पर जो शिविर लगाये जाते रहे हैं ऐसे शिविरों में पार्टी के सेठों द्वारा एक क्विंटल दो क्विंटल रक्त दान की घोषणा होने लगेगी। रक्तदान के लिए युवाओं की जरूरत पड़ती थी सो अब वह भी खतम हो जायेगी। बस पैसे वाले मिल जायें तो चाहे जितना खून दान करवा लें।
नकली खून से कई पार्टियाँ अपने झंडे को रंग कर लाल कर लेंगी तब कम्युनिष्टों को स्पष्ट करना पड़ेगा कि उनका झंडा असली रक्त से रंगा होने के कारण ही लाल है।
डाक्टर लोग अपनी प्रिय कम्पनी का रक्त लेकर ही आने को कहेंगे तथा यह चेतावनी भी दे देंगे कि दूसरी कम्पनी का ब्लड लाये तो डाक्टर की कोई जिम्मेवारी नहीं होगी। शाम को मेडिकल रिप्रिजेंटेटिव उनका पूरा हिसाब कर जायेगा।
ये वैज्ञानिक लोग दिल जिगर आदि को खोल खोल कर पहले ही शायरी का सत्यानाश कर चूके हैं, और अब नकली खून बना कर बचे खुचे का भी सत्यानाश कर देना चाहते हैं। हमारे पवित्र जगत्गुरू देश को ऐसी सारी वैज्ञानिक उपलब्धियों का कस विरोध करना चाहिये।
वीरेन्द्र जैन
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क्या बात है......बहुत बढ़िया व्यंग्य!!
जवाब देंहटाएंचलो अब खून का रिश्ता कम्पनी के रिश्ते के साथ जुड़ जाएगा:))