रविवार, मई 16, 2010
व्यंग्य अखिल भारतीय श्वान सम्मलेन में व्यक्त चिंताएं
अखिल भारतीय श्वान सम्मेलन में व्यक्त चिंताएं
वीरेन्द्र जैन
अगर कोई जाति दलित पिछड़ी या उपेक्षित होती है तो वह अपनी पहचान बनाये रखकर भी अपनी जाति को प्रचलित नामों की जगह संस्कृतनिष्ठ शब्दों में बदलकर अपना जाति सम्मेलन आयोजित करती है। शायद यही कारण रहा होगा कि जब कुत्तों ने माननीय नेताओं के उदगारों पर अपने विचार व्यक्त करना चाहे तो उस आयोजन का नाम कुत्ता सम्मेलन न रखकर अखिल भारतीय श्वान सम्मेलन रखा और उसीका बैनर लगाया ताकि पढे लिखे लोग भी यह न कह सकें कि साला कुत्ता सम्मेलन हो रहा है। प्लेक्स के बैनर पर श्वान शिरोमणि को पाँच पाण्डव और सती द्रोपदी के साथ हिमालय की ओर कूच करता हुआ दर्शाया गया था। इतना ही नहीं सम्मेलन का उद्घाटन करने वाले श्वान श्री ने कहा कि ये सम्मेलन महान स्वामिभक्त श्वानों का सम्मेलन है किसी राजनीतिक पार्टी की सभा नहीं है। इसमें श्वानों की समस्याओं पर गम्भीरता पूर्वक विचार होगा। उनकी इस ओज़ पूर्ण वाणी पर सभी श्वानों ने तलुआ ध्वनि करके हर्ष व्यक्त किया।
विषय प्रवर्तन करते हुये श्वान प्रमुख ने कहा कि आज हम अपनी जाति के अपमान से आहत होकर इतनी बड़ी संख्या में यहाँ एकत्रित हुये हैं और यही कारण है कि दूर दूर से पधारे अपने श्वान भाइयों पर भोंकने की परम्परा को छोड़ कर हम एक साथ बैठे हुये हैं। ये नेता लोग पिछले कई सालों से लगातार हमारा अपमान करते चले आ रहे हैं और अब तो हद ही हो गयी। हमने बहुत दिनों से तलुवे चाटना बन्द कर दिया है और आजकल बंगलों में रहने वाले बन्धु मालिकों के मुँह चाटते हैं न कि तलुवे। हमें इंसान के जैसा बताकर हमारा अपमान किया जा रहा है। हम इंसान के जैसे कृतघ्न नहीं हो सकते कि जो राज्य में हमारी सरकार बचाये हम उसी के खिलाफ केन्द्र में बिक जाएं और बार बार बिक जाएं ।
...............न हम चारा खाते हैं और न भाईचारा !
[इसके बाद वह कुछ सैकिंड तक रुका ताकि श्वानों को तलुवे पीटने का अवसर मिल सके, और संकेत समझ कर तलुवे पीटे भी गये]
हम तो दूध रोटी, बोटी या अंडे वगैरह खाते हैं जो सत्तर प्रतिशत इंसानों को नसीब नहीं होते। ये इंसान ज़िन्दा रहने में ही नहीं मरने में भी हमारी नकल करने लगा है और देश के लाखों इंसान हमारी [कुत्तेकी] ही मौत मर रहे हैं। जाने को तो हम यधुष्टिरों के साथ स्वर्ग में भी गये हैं, पर
रौनके ज़न्नत कभी भी हमको रास आयी नहीं
हम ज़हन्नुम में ही रहना चाहते परवरदिगार
हमने तो कभी संसद में भी जाना पसन्द नहीं किया बरना जब वहाँ तीन सौ करोड़पति जा सकते हैं तो उनकी सुरक्षा करने वाला क्यों नहीं जा सकता। जब वहाँ तरह तरह के अपराधों के आरोपों से घिरे आरोपी पहुँच सकते हैं, गद्दार पहुँच सकते हैं, सांसदनिधि बेचने वाले पहुँच सकते हैं, सवाल उठाने के लिए पैसे माँगने वाले पहुँच सकते हैं, कबूतरबाज़ी करने वाले पहुँच सकते हैं, दलाली करने वाले पहुँच सकते हैं, तो हम स्वामिभक्त क्यों नहीं जा सकते। पर नहीं, हमने तय किया है कि हमें वहाँ नहीं जाना सो नहीं जाना, भले ही वहाँ कभी कभी कुछ अच्छे इंसान भी मिल जाते हों। हमारा वंश चाँद पर सबसे पहले जाने वालों का वंश है। हम भले ही पुलिस में चले जायें, पर वहाँ नहीं जाना सो नहीं जाना। किंतु ये इंसान फिर भी हमारी तुलना वहाँ जाने वाले खराब लोगों से करने पर तुला हुआ है। किसी ज़माने में हमारी तुलना ब्राम्हणों और नाइयों के साथ होती थी, पर हा... आते आते क्या ज़माना आ गया है कि हमारी तुलना कैसे कैसे लोगों से होने लगी है। दलाल लोग सरे आम कहने लगे हैं कि हमें मालूम है कि कुत्ता कौन है। जैसे ग़ालिब चचा कह गये हैं कि हमको मालूम है ज़न्नत की हक़ीकत लेकिन, दिल के बहलाने को ग़ालिब ये खयाल अच्छा है। अरे भाई मालूम है तो बताओ भी। उसे अपनी टेलीफोन टेपिंग की तरह छुपा क्यों रहे हो। पर दलाल तो हर मामले में सौदा करना चाहता है। फिल्म में सस्पेंस हो तो खूब चलती है। कयास लगाने वाले सम्भावनाओं की पतंगें दूर दूर तक उड़ाने लगते हैं। .......और ये सब हमारी कीमत पर हो रहा है। यदि ये नेता नहीं माने तो हमें ज़बाबी कार्यवाही करना पढेगी जिसका यह उपयुक्त समय है। हमें मालूम है कि ज्यादातर स्वास्थ संचालकों के घरों से करोड़ों रुपये निकल रहे हैं, किंतु, अस्पतालों में रैबीज़ के इंजेक्शन नहीं हैं और जो हैं या तो वे नकली हैं या एक्स्पायरी डेट के हैं। इस समय हमला कर देने से ये घर के रहेंगे न घाट के। [ सभा में ज़ोश भर गया था और तलुवे पीटे जाने लगे]
पत्रकार लोग तुरंत वहाँ से खिसक लिये ताकि एकाध अदद रैबीज़ के इंजैक्शन का जुगाड़ ज़मा सकें।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 9425674629
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बहुत खूब...चिकोटी में दम है.
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