गुरुवार, मई 27, 2010
व्यंग्य कानून क़ानून होता है
व्यंग्य
कानून, कानून होता है
वीरेन्द्र जैन
यह वाक्य आपने भी सुना होगा कि ' कानून, कानून होता है'। मैने तो इसे हजारों बार सुना है और हो सकता है कि किसी दिन गिन्नीज बुक में वर्ल्ड रिकार्ड भी मेरे नाम से ही बने कि मैने सबसे अधिक बार इस बाक्य को सुना है। राज की बात यह है कि इतनी बार सुनने के बाद भी मैं आज तक इसका अर्थ नहीं समझ पाया। जिससे भी पूछों वह यही कहता है कि कानून - कानून होता है।
अपनी जिज्ञासा के चक्कर में मैने अनेक लोगों से माथा पच्ची की, पर खेद कि कोई भी मुझ जैसे मूढ को समझा नहीं सका। मैं एक डाक्टर के पास गया। मेरा भ्रम था कि वे भाषा विज्ञान के डाक्टर होंगे पर वे देह शास्त्र के डाक्टर निकले। बोले ' तुम्हें मालूम है, कानून के हाथ लम्बे होते हैं '' ।
मेरे मन में एक बिम्ब बना जिसमें एक मोटी पोथी में से दो हाथ निकले थे जो काफी लम्बे थे और एक दूसरे पर रखे हुये थे। मैने मन ही मन प्रश्न किया कि ये एक हाथ दूसरे हाथ पर क्यों रखा हुआ है, तो तुरन्त ही मेरे दिमाग ने उत्तर भी खोज निकाला कि कानून के हाथ लम्बे तो हैं पर वो हाथ पर हाथ धरे बैठा रहता है। मुझे रहीम का दोहा याद आ गया -
बडे हुये तो क्या हुये, जैसे पेड़ खजूर
छांह न बैठें दो जनें, फल लागे अति दूर
पर इस मन का क्या करें, ये तो चंचल होता है। मैथलीशरण गुप्त तो पहले ही कह गये हैं कि-
कोई पास न रहने पर भी जन मन मौन नही रहता
आप आपकी सुनता है वह, आप आपसे है कहता
सो मन ने अगला सवाल किया कि यह कोई काम क्यों नहीं करता। इस सवाल का उत्तर भी अन्दर से ही आया- कानून अपना काम करेगा - ला विल टेक इट्स ओन कोर्स'।
ठीक है भाई, अपना काम ही करे! मैं कब कहता कि किसी और का काम करे,! पर करे तो। एक सुस्त आदमी को देखकर दूसरे को भी सुस्ती आती है। रात में कार का ड्रायवर कहता है कि अगर सोना है तो पीछे बैठिये क्योकि अगर मैं थोड़ी देर को भी सो गया तो आप हमेशा के लिए सो जाओगे- तस्वीर के नीचे लिखा मिलेगा 'चिर निद्रा निमग्न'। कानून अपना काम करे तो दूसरों को भी काम करने की प्रेरणा मिले। मन में सवाल किया कि क्या इसका कोई धनी धोरू नहीं है, कोई मालिक सर परस्त नहीं है ? पर दिमाग के पास तो सारे उत्तर रहते हैं। उससे उत्तर मिला है, इसकी देवी होती है जो आंखों पर पट्टी बांधे रहती है इसलिए उसे न काम करता हुआ कोई दिखता है और न बैठा हुआ दिखता है। निष्पक्षता के चक्कर में उसने देखना भी छोड़ दिया है।
मन में आया कि मैं इसकी कुछ मदद करूं। इसे थोड़ा हिलाऊं, डुलाऊं, उठाऊं, इसके मुंह पर पानी के छींटे मारूं और कहूं कि भाई हाथ पर हाथ धरे बहुत देर हो गयी अब तो उठो और कुछ करो धरो। आखिर काम को जल्द निबटाना है, देश को आगे बढ़ाना है। मैं जैसे ही उसकी ओर बढ़ा तो ऊपर से जोरदार आकाशवाणी हुयी- कानून को अपने हाथ में मत लो। मैं डर गया और तुरन्त पीछे हट गया। मुझे लगा कि मैं कानून की नींद नहीं, अपितु कानून ही तोड़ रहा था। फिर कानून के तो अपने दांव पेंच भी होते हैं यदि इसने एक का भी प्रयोग कर दिया तो मैं तो चारों खाने चित हो जाऊंगा तथा चारा खाने तक की हिम्मत नहीं बचेगी।
मैं सो गया तो मेरे सपने में वाल्तेयर आये। बोले बेटे कानून के चक्कर में मत पड़ो।
'' क्यों '' ? मैने आदत के अनुसार सवाल किया।
वे बोले- सारे कानून बेकार हैं क्योकि अच्छे लोगों के लिए किसी कानून की जरूरत नहीं है और बुरे लोग किसी कानून को नहीं मानते।
तब से मैने भी चिन्ता छोड़ दी है और हाथ पर हाथ धरे ही क्या हाथ पर लात धरे बैठा हूं।
----
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629
लेबल:
क़ानून,
न्याय व्यवस्था,
राजनीति,
व्यंग्य हास्य-व्यंग्य,
समाज
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें