बुधवार, जून 02, 2010

व्यंग्य मानसून प्लीज कम सून


व्यंग्य
मानसून प्लीज़ कम सून
वीरेन्द्र जैन
संसद का मानसून सत्र तक आने वाला है पर मानसून नहीं आया। बलवीर सिंह रंग की पंक्तियाँ हैं-
उबासी आ गयी अंगड़ाइयों तक तुम नहीं आये
कवियों की जून महीने में पावस की फुहारों पर लिखी गई कविताओं से हवा करके सम्पादक लोग पसीना सुखा रहे हैं। मैंढक और केंचुए ज़मीन में दबे दबे परेशान हो चुके हैं। वे छुपाछुप्पुअल खेलने वाले छुपे बच्चों की तरह बाहर निकलने को बैचैन हो रहे हैं। जिन दिनों मैंढकों की टर्र टर्र सुनायी देती थी, उन दिनों कूलरों की आवाज़ें आ रही हैं। कज़री गाने वाली बालाएं बीजना डुला रही हैं। जिन पेड़ों पर झूले डाले जाते थे उन पर गिद्धों का बसेरा हो चुका है। मेघों को दूत बना कर सन्देशा भेजने वाले कोरियर सर्विस के चक्कर लगा रहे हैं क्योंकि स्पीड पोस्ट के आगे स्कूलों में एडमीशन के लिए लगी लम्बी लाइनों से भी लम्बी लाइन लगी हुयी है। इस साल जामुन की फसल नहीं आ पायी और गर्मी के मारे गोरी गोरी लड़कियाँ जामुनी हुयी जा रही हैं, पाउडर लगा लेने पर ऐसी लगती हैं जैसे जामुनों पर नमक लगा हो।
मानसून, तुम कहाँ चले गये हो। तुम नगर पालिका के नलों की तरह या मध्य प्रदेश की बिजली की तरह हो गये लगते हो। तुम्हें पता है कि मध्य प्रदेश में गाँव गाँव बिजली के खम्भे लगे हैं, जो ढोरों के बाँधने के काम आते हैं, या कुत्तों के मूतने के। उनके तारों पर चिड़ियाँ बैठती हैं फिर उड़ती हैं, उड़ कर फिर बैठ जाती हैं, बैठ कर फिर उड़ जाती हैं। अपना कमीशन बनाने के लिए उचित समय पर ट्यूब लाइट या बल्ब बदल दिये जाते हैं भले ही उनने नवलेखकों की रचनाओं की तरह कभी भी प्रकाशन का सुख नहीं देखा हो। अगर नहीं बदली जायेंगीं तो नगर पालिका अध्यक्ष और पार्षदों का चुनाव में फूंका पैसा कैसे वापिस मिलेगा।
क्षमा करना मैं मीठी मीठी बातों से तुम्हें बहला रहा हूं मानसून! तुम हमारे क्षेत्र का भ्रष्टाचार देखने के बहाने ही आ जाओ, या साम्प्रदायिक हिंसा में हमारे द्वारा जलाए गए घरों की आग बुझाने ही आ जाओ। कुछ न हो तो हमारे उन मौसम वैज्ञानिकों की भविष्यवाणियों की लाज रखने के लिए ही आ जाओ, जिन्होंने अच्छी वर्षा की भविष्यवाणी की थी। तुम नहीं आओगे तो हमारे मुख्य मंत्री यज्ञ और हवन के नाम पर जनता की गाड़ी कमाई का न जाने कितना रुपया फूंक देंगे जिनके पास शिक्षा का अधिकार लागू करवाने के लिए फूटी कौड़ी भी नहीं है। इनके पाखण्ड की आग बुझाने ही आ जाओ। ज्योतिषी लोग ज़ज़मानों की गर्मी से बचे बचे फिर रहे हैं, अखबारों में उनकी नौकरी की रक्षा के लिए ही आ जाओ।
हमने भी तुम्हारे स्वागत में कुछ गीत चुरा कर रखे थे। चोरी से बचने के लिए चार पंक्तियां इसके गीत की और चार उसके गीत की उड़ा कर कई नये गीत जोड़ लिए थे, किंतु तुम तो किसी मंत्री की तरह वादा करके भी नहीं आ रहे हो और में मानपत्र वाचक की तरह बैचैनी में टहल रहा हूं। तुम्हारे न आने से छातों को छाती से लगा कर रखने की रितु ही नहीं आयी है, और् बरसाती की तहें ही नहीं खुल पा रहीं। प्रभु इच्छा से एक मन्दिर में बदल गये अपेक्षाकृत अच्छे जूतों को पहचान लिए जाने के डर से बरसात में प्रयोग के लिए सुरक्षित रख छोड़ा था, जो तुम्हारे न आने पर पावस गीत लिखने और गाने वालों के लिए काम में आने वाले हैं। छत पर टपकने वाली जगह में भरने हेतु लाया गया तारकोल पिघल कर बहने लगा है, जो पकौड़े खाने को उतावले मुँह पर मलने के काम आयेगा। इन कवियों और पकौड़ों वालों की इज़्ज़त के लिए ही आ जाओ।
तुम तो परिदृष्य से ऐसे गायब हो जैसे अखबारों के पृष्ठों से अटल, ज़ार्ज़, या अर्जुन सिंह गायब हो गये हैं। हमारे राज्यपाल बनकर ही आ जाओ। पर आओ, मानसून प्लीज़ कम सून! तुम्हारे न आने से मम्मी पापा, भैया दीदी और और भी कोई सब दुखी हैं, कोई तुमसे कुछ नहीं कहेगा, तुम आ जाओ।

वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 9425674629









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