व्यंग्य
जनता की पेंशन, सरकार का टेंशन
वीरेन्द्र जैन
वैसे तो जिन्दा लोग सरकारों के लिए हमेशा ही मुसीबत पैदा करते रहते हैं और प्रख्यात समाजवादी चिंतक रामनोहर लोहिया ने कहा भी है कि जिन्दा कौमें पॉच साल तक इन्तजार नहीं करतीं पर ये जिन्दा लोग भिन्न कारण से मुसीबत बन गये हैं॥ जब सरकार ने पेंशन योजना के बारे में सोचा होगा तो उसे यह उम्मीद नहीं रही होगी कि हमारा कर्मचारी बिना रिश्वत खाये तथा आधी तनखा पाकर बीमारियों से घिरे बुढापे को इतना लम्बा खींच ले जायेगा । उसकी सोच रही होगी कि पेंशन को क्लीयर करवाने में ही वह आधा मर जायेगा, फिर क्लीयिर होने के बाद पेंशन लेने जाने के धक्कों में कही टें बोल जायेगा, और रिश्वत न मिलने से हींड हींड कर वह अपनी बाकी जान दे देगा। पर अब ऐसा नहीं हो रहा। रिटायरमेन्ट के बाद भी पट्ठा जिन्दा है, और शान से जिन्दा है। च्ववनप्राश, केशर और शिलाजीत खाकर सीढियॉ चढ रहा है और सुईयों में बिना चश्मा लगाये धागा डाल रहा हैं। पेंशन के बढ़ते बिलों को देखकर सरकारों को टेंशन हो रहा है और पेंशन धारक चैन से सौ रहा है।
सरकारें सोचती हैं ये मरता क्यों नहीं। उसने स्वास्थ सेवाओं को सशुल्क कर दिया, सरकारी, अस्पतालों को नरक में बदल दिया, डॉक्टरों से प्राइवेट प्रेक्टिस कराने लगी, दवाइयों के दाम आसमान में पहुँचा दिये पर ये आदमी है कि कछुआ या काक्रोच जो मरता ही नहीं। पहली तारीख को सुबह से बैंक में लाईन लगा कर खड़ा हो जाता है। लाओ हमारा कर्ज चुकाओ। साहूकार और मकान मालिक भी इतना तिथि और समय का पावन्द नहीं होता जितना कि पेंशन लेने वाला। आदमी मकान मालिक, दूध वाले, अखबार वाले, आदि से इतना नहीं घबराते जितने बैंक वाले पैंशन धारकों से घबराते हैं । साढ़े दस, माने साढे दस काउन्टर वाला, काउन्टर पर नही आ पाता पर पैंशनर आ जाता है। बैंक में अपने जिन्दा होने का प्रमाण पत्र स्वंय देना पड़ता है, वह उसके लिए तैयार है- मै घोषित करता हूँ मै जिन्दा हूँ आप गवाही लीजिए, मैं जिंदा हूँ और सचमुच सम्पूर्ण जिन्दा हूँ। सरकार ने सामूहिक बीमा योजना के अन्तर्गत मेरे एक हाथ के पॉच हजार, दोनो हाथों के दस हजार के अनुपात में पच्चीस हजार तक बीमा करवा रखा था पर मैने उस राशि में से एक पैसा भी नहीं वसूला तथा अपने सारे अंगों प्रत्यंगों के साथ जिन्दा हूँ। बिना टीका लगवाये भी मुझे हैपिटाइटिस - बी नहीं हुआ और कोई सावधानी रखे बिना भी एड्स नहीं हो रहा। नालों का सर्व मिश्रित जल भी मेरे लिए संजीवनी हो रहा है और जो खाने को मिल रहा है उसी में सारे प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेड, विटामिन और मिनरल्स निकल आते हैं।
लाईये पेंशन निकालिये।
एक सरकार ने कहा था कि केवल पचहत्तर वर्ष तक ही पेंशन मिलेगी शेष जीवन हिमालय की कन्दराओं में बिताने के लिए जाना होगा तथा कन्दमूल फल खाना होगा, पर पेंशनधारियों ने वह सरकार ही बदल दी। उसके मंत्री ने सोचा था कि सबकी जन्मकुण्डलियों को देखकर ही नियुक्ति दी जायेगी ताकि ज्यादा दिनों तक पेंशन न पा सकने वालों की ही नियुक्ति हो इसके लिए उसने विश्वविद्यालयों में ज्योतिष की पढ़ाई शुरू करवा दी पर उसने अपनी जन्म कुण्डली पता नही किस ज्योतिषी से दिखवायी कि वह खुद ही पराजित होकर मुंह के बल गिरा जबकि उसने महूर्त दिखवाकर ही पर्चा भरा था।
सरकार ने पेंशनधारियों के जमा पर ब्याज दर कम कर दी ताकि कुछ फर्क आये पर वह भी नहीं आया। उसने गैस, मिट्टी का तेल, पेट्रोल डीजल, टेलीफोन, बिजली, सबकी दरें बढ़ा दीं पर पैशनर पहली तारीख को फिर भी बैंक में खड़ा मिला। भूले भटके एकाध पेंशनर मर भी जाता तो सौ दूसरे खड़े हो जाते- लाओ पैंशन, लाओ पेंशन्।
सरकारी कर्मचारी पूरी जिंदगी नौकरी ही इसलिए खीचता है ताकि उसे पेंशन मिल सके। बिना काम किये हुये धन का मिलना किसे अच्छा नही लगता जो मजा वेतन में नही आता वह पेंशन में आता है। वेतन अपनी बीबी है पर पेंशन परायी बीबी लगती है। रहीम आज होते तो कहते-
गौधन गजधन वाजधन
और रतनधन खान
जब मिल जावे पेंशन
सो सबधन धूरि समान
भूतपूर्व सांसदों विद्यायकों ने तो इसीलिए अपनी पैंशन पहले से तय कर ली है।
वीरेन्द्र जैन
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waah sirji badi rochakta se likha ek saans me padh gaya poora ka poora...gazab ka likha
जवाब देंहटाएंबहुत खूब, लाजबाब !
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