मंगलवार, जून 01, 2010

व्यंग्य - लगे रहो बाबा भाई


व्यंग्य
लगे रहो बाबा भाई

जहॉ जितने अधिक भ्रष्ट अधिकारी और टैक्सचोर, व्यापारी, ठेकेदार पाये जाते हैं वहीं बाबाओं की दुकानें भी बड़ी बड़ी लगती हैं। बडे बाबा ना तो कस्बों में जाना पसंद करते हैं और ना गॉवों में। आखिर क्लाइन्टेल का सवाल है। ग्राहकी ही नहीं होगी तो बाबा क्या झक मारेंगे। जब तक एकाध ठो राज्यपाल, मुख्यमंत्री, मंत्री, ठेकेदार चेम्बर ऑफ कामर्स के अध्यक्ष आदि को चरणों में नही पटक लेते तब तक बाबा जी की आत्मा बैचैन रहती है। दबे कुचले लूले लंगड़े बीमार गरीब गुरवा तो कीड़े मकोड़ों की तरह हर बाबा के चरणों में बिलबिलाते ही रहते हैं पर असली भक्त तो वीआईपी ही होतें हैं। बाबा की निगाहें टकटकी लगाये देखती रहती हैं कि कोई वीआईपी ग़िरा कि नही गिरा। जब तक नही गिरे तब तक भजन चलने दो। बाबाजी के नल रूपी मुंह में प्रवचन का जल तभी प्रवाहित होता है जब वीआईपी सफेद मसनद से पीठ टिका ले।

गॉव कस्बे फुटकर दुकानदारों के लिए छोड़ रखे हैं, जहॉ सौ दो सौ से मूड़ मारो तब कहीं दस पॉच हजार खींच पाते हैं। राजधानी में एकाध को ही चित कर लिया तो लाख दो लाख फेंक जाता है। इस दशा को प्राप्त होने के लिए भी बड़े पापड़ बेलने पड़ते हैं। अलग अलग भावपूर्ण मुद्राओं में रंग बिरंगे फोटो और चिकने कागजों पर पोस्टर छपवाने पड़ते हैं। हजारों रूपयें महीने के तो प्रवचन तैयार करने वाले लगाये जाते हैं और अखबारों में मय फोटो के दार्शनिक चिंतन छपवाने के लिए पीआरओ लगाने पड़ते हैं। सम्पादकों उपसम्पादकों को परसाद के नाम पर मिठाई और मेवों के डिब्बे देना होते हैं। चमत्कारों की झूठी कहानियों फैलाने वालों को लगातार सक्रिय रखना होता है। जहॉ प्रवचन का डौल जमाया जाता है वहॉ पर लाखों की पब्लिसिटी लगती है। अखबारों में बड़े बड़े विज्ञापन, पोस्टर, भित्तिलेखन पम्फलेट से लेकर चुनाव प्रचार में लगने वाले सारे साधन झौंक दिये जाते हैं। बच्चों की जिज्ञासा जगाने वाले हाथी घोड़ों के जलूस से भीड़ भड़क्का जुटा कर नगर के सारे बैण्ड बाजे वालों को लाईन से लगा दिया जाता है कि ठोके जाओं मरे चमड़े पर डम डमा डम , ये साले प्रेस वाले तभी आयेंगे। और फिर बाबा के दरबार से कोई खाली हाथ थोड़े ही जायेगा।

बाबा, वैरागी हैं । फल के प्रति उदासीनता से ओत प्रोत। प्रवचन रूपी कर्म कर दिया फल की चिन्ता नहीं है कि उन प्रवचनों पर कोई कभी कहीं अमल भी कर रहा है या नहीं। बाबाजी पेले जा रहे हैं प्रवचन पर प्रवचन और अच्छे अच्छे बाद्य यंत्रों पर भजनों का गायन चल रहा है। शेम्पू से धुले बिना डैन्ट्रिफ वालें केश और चमकदार भगवा पोषाक मेवा और पौष्टिक पदार्थो से पुष्ट देह बाबा जी का वैराट्य प्रदर्शित कर रही है।
आखिर ये रिटायर्ड बूढे क़हॉ जायें! प्रवचन ही सुन लें! क्या जाता है। दिन भर मिनमिनाती सासें क्या करें? घंटे के लिए बहुओं को भी छुट्टी दें और खुद भी छुट्टी काटें, बाबा की बकवास सुन कर कौन सा बदलाव लाना है। जीवन तो जैसा हांकना है वैसा ही हांकेगे। बाबा भी कहॉ पूछने आते है कि पिछले प्रवचन से क्या निकला था जो इस बार फिर गधे की तरह मुँह लटकाए फिर आ बैठते हो। साल-दर-साल बाबा- दर बाबा पिले पड़े हैं और अपना कर्तब्य कर रहे हैं पर नगर उस दिशा में बदल रहा है, जो कोई बाबा नही बतलाता।
बाबा की कही कोई बात, कोई भी नही मानता। मानते होते तो कम से कम माईक वाले शमियाने वाले, सजावट वालों में ही कुछ परिवर्तन देखने को मिलता जो प्रत्येक बाबा के लिए सजाते हैं, बिछाते हैं और फिट करते हैं व बदइंतजामी की आशांका से लगातार सजग रह कर डियूटी देते रहते हैं। उनके लिए भी वह अर्थहीन स्वर होता है जो श्रोताओं के लिए भी होता है। बाबा मंन्दिर में लगे लाउडस्पीकर की तरह बजे जा रहे हैं। उन्हें रोका नही जा सकता इसलिए बज लेने दो।

एक बाबा दूसरे की सार्वजनिक निन्दा नहीं करता है, उनमें सहकारिता है। मोबाइल से डेटें तय करते रहते हैं। सब की अपनी अपनी तारीखें होती हैं। एक के पोस्टर फट नही पाते कि दूसरे के चिपक जाते हैं। एक के बैनरों के अन्डरवियर सिल के नहीं आ पाते है कि दूसरा बैनर बनियानों के लिए आ जाता हैं। गरीबों को बाबा का यही प्रसाद है। लगे रहा बाबा भाई- हम भी लगे हुऐ हैं। एक गांधी बाबा था जिसकी बात का असर होता था क्योंकि वह स्वंयं भी पहले वही करता था जो बोलता था। हरिजन बस्तियों में आश्रम बनाना हो या अपना शौचालय स्वंयं साफ करना, कोढ़ियों की सेवा हो या चरखा कातना, वह खुद करके दिखाता था। उसके कहने पर लाखों लोगों ने खादी पहनी और विदेशी कपड़ों की होली जलायी। वह एक चादर में इंग्लैण्ड गया और सूरज न डुबोने वाले साम्राज्य की बत्ती गुल कर दी। पर आज के बड़े बड़े बाबाओं के चेले दिन में प्रवचन सुनने के बाद शाम को बार में पाये जाते हैं और बाबा अपने वकीलों से मुलाकात कर रहे होते हैं ताकि हत्या, बलात्कार, अतिक्रमण या टैक्स चोरी के प्रकरणों की सुनवाई की तारीखें बढ़वाने की रणनीति पर सलाह मशविरा कर सकें।

गांधी बाबा को इन्ही बाबाओं के भक्तों जैसे लोगों ने गोली दगवा दी थी। गांधी बाबा होता तो शायद इन बाबाओं की दाल नहीं गल पाती। अगर किसी बाबा में कभी गांधी बाबा जैसा सच जग जाये, जिसकी सम्भावना ना के बराबर है तो सच्ची आत्म कथा लिखकर दिखाएं- गांधी बाबा जैसी। किसी ने नहीं लिखी, कोई नहीं लिख सकेगा।

वीरेन्द्र जैन
2\1, शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629



5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढिया आलेख है।शायद किसी पर असर हो....

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  2. बहुत बढिया आलेख है।शायद किसी पर असर हो....

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  3. आपकी पोस्ट को पढ़ कर
    आपकी लेखनी चूमने का
    मन कर रहा है।
    सद्भावी- डॉ० डंडा लखनवी
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  4. गुड पोस्ट. व्यंग्य अच्छा है. इन बाबाओं से क्या होने वाला है ये तो उनकी दुकानदारी मात्र है.

    वैसे बाबा रामदेव के अभियान पर भरोसा जरुर करना चाहिए.

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