मंगलवार, जून 29, 2010

व्यंग्य - लौट के जसवंत वापिस आये

व्यंग्य
लौट के जसवंत वापिस आये
वीरेन्द्र जैन
जसवंत सिंह के लौटने को एज यूजुअल घर वापिसी कहा जा रहा है। ऐसा अन्धविश्वास है कि जो लोग लौटते हैं सब घर ही लौटते हैं।

“पर लौटता तो वह है जो गया हो। जसवंत भैय्या ने भाजपा छोड़ी ही कब थी” राम भरोसे कहता है।
“ हाँ सच कह रहे हो, उन्हें तो निकाला गया था और धकियाये जाने के बाद तो विभीषण भी रावण के रहते लंका नहीं लौटा था और उन्होंने बार बार कहा था कि उन्हें निकालने से पहले औपचारिक शिष्टाचार तक नहीं बरता गया। फिर वैसे भी यह उनका घर थोड़े ही है, घर तो उनका है जो इसमें शाखा से प्रकट हुये हैं। सो इसे घर वापिसी कहना ठीक नहीं है। इसे तो कह सकते हैं कि-
शायद मुझे निकाल कर पछता रहे हैं आप
महफिल में इस ख्याल से फिर आ गया हूं मैं”
एक सम्भावना यह भी हो सकती है कि जसवंत सिंह इसे ससुराल समझते हों, क्योंकि जब भाजपा ने उन्हें निकाल बाहर करने के बाद उनसे लोक लेखा समिति के पद से स्तीफा देने को कहा था तो उन्होंने लगभग डाँटते हुए कहा था कि इस मामले में भाजपा को शोर मचाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि लोक लेखा समिति के अध्यक्ष का पद कोई उसका दिया दहेज नहीं है।
घर तो इसलिए भी नहीं हो सकता कि जिसके बारे में उन्होंने कहा हो कि इस में भ्रष्टाचार चरम पर है और उसे आडवाणी और राजनाथ सिंह को बता देने का दावा भी किया हो उस चरम भ्रष्ट घर को ठीक किये बिना कोई ईमानदार और स्वाभिमानी कैसे जा सकता है।
बहरहाल इस वापिसी में पब्लिक को यह पता नहीं चला कि आखिर मुद्दा क्या था और वह कैसे सुलझा। पहले लोगों को ऐसा लगा था कि मुद्दा ज़िन्ना थे। जिन्ना भी क्या जिन्दा शख्शियत है कि जो मुर्दा होकर भी मुद्दा बनी रह्ती है और जिसका जिन्न पाकिस्तान , हिन्दुस्तान कहीं भी चैन से नहीं बैठने देता। जिस जिन्ना के एक भाषण की तारीफ के कारण आडवाणीजी को अध्यक्ष की कुर्सी छोड़नी पड़ी हो उस पर पूरी किताब लिख कर मुँह पर मार देने से निकाले जाने का असली कारण छुप गया था। जिस भाजपा ने उनकी योग्यता मापते हुये कहा था कि उन्हें पद इसलिए दिया गया था क्योंकि उनकी अंग्रेजी अच्छी है और वे अटलजी के साथ ड्रिंक किया करते थे। अब उस भाजपा ने उनकी कौन सी योग्यता फिर से पहचान ली पता ही नहीं चला। शायद अब विपक्ष के नेता का पद पक्ष के व्यक्ति द्वारा भरा जा चुका है और उसमें कोई फेर बदल नहीं हो सकता सो उसके अंडर में काम करने के लिए आ जाओ। बाकी के सारे पद भरे जा चुके हैं केवल झाड़ू पौंछा करने वाले की जगह खाली है।

किताब तो निकाले जाने के कारणों पर पर्दा डालने के लिए निकाली गयी थी। उन्हें निकाला तो इसलिए जाना था क्योंकि वे फौज से निकल कर आये थे, शाखा से नहीं निकले थे, और इसके प्रमाण स्वरूप वे हमेशा कन्धे पर फित्ती लगी कमीज पहिनते थे। समर्थन करते रहने तक तो ठीक है पर यह भी क्या बात कि अपनी वरिष्ठता के आधार पर आप विपक्ष के नेता पद के भी दावेदार बन जायें। यह नहीं चलेगा, वहाँ तो संघ के आदेश बिना शाखा भी नहीं चलती तो पत्ता क्या हिलेगा। पांचजन्य ने तो सितम्बर 09 अंक में लिखा ही था कि जसवंत को निकाल कर उन्हें खलनायक से नायक बना दिया जिससे उनकी किताब की 49000 प्रतियाँ बिक गयीं। अब क्या नायक से फिर खलनायक बनाना है।

ये कैसा घर है, ये कैसी वापिसी है जहाँ के लोग कि चाहे जहाँ थूक देते हैं और फिर.....................। आप स्वयं समझदार हैं।
वीरेन्द्र जैन
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