शनिवार, अप्रैल 04, 2009

टिकिट की नीलामी
वीरेन्द्र जैन

'' बिना टिकिट यात्रा एक दण्डनीय अपराध है जिसमें आपको जुर्माना और सजा दोनों हो सकती है''।
हमारी भारतीय रेल में यह वाक्य जहॉ भी जगह होती है, लिख दिया जाता है। पर लोकतंत्र की रेल में ऐसा नहीं है क्योकि जब चुनाव होते हैं तो कुछ और लिखने के लिए जगह ही खाली नहीं रहती यहॉ तक कि '' पेशाब करना मना है '' तक के ऊपर नेता जी का मुस्कराता और वोट मांगता फोटो चिपका दिया जाता है, और आप मना किये जाने की सूचना पढे बिना पेशाब करते रह सकते हैं।
लोकतंत्र में चुनाव की यात्रा आप बिना टिकिट भी कर सकते हैं रेल में बिना टिकिट यात्रा करने पर पकड़ लिए जाने के बाद आपको जमानत मिल सकती है पर चुनाव में बिना टिकिट यात्रा के बाद आपकी जमानत जब्त हो सकती है। टिकिट बिकते हैं। रेल में भी बिकते हैं और चुनाव में भी बिकते हैं पर रेल में खुले काउन्टर से मिलते हैं। चुनाव में खुले काउन्टर से नहीं मिलते हैं वे गोपनीय ढंग से मिलते है। बहुजन समाज पार्टी के एक नेता को इसलिए दल से निकाल दिया गया था क्याकि उनने कह दिया कि इस पार्टी में टिकिट नीलाम होते हैं।
टिकिट वितरण के कई ढंग हो सकते हैं जिनमें यह भी एक हो सकता है। डिमांण्ड और सप्लाई वाला फार्मूला लागू होगा। इस गोपनीय कार्य में कितनी पारदर्शिता है। कोई पक्षपात नहीं- कोई रिशतेदारी नातेदारी नहीं - खुल्ला खेल फरूक्खाबादी। जो ज्यादा दाम लगाये सो टिकिट ले जाये। सील बन्द लिफाफें में टैन्डर आमंत्रित है। चुनाव चिन्ह आवंटन के अंतिम दिन अंतिम क्षण तक टेैन्डर डाल सकते हैं।खूब सोचने समझने का मौका है।
चुनावी पार्टियों के पैर नहीं होते वे पैसे से ही चलती हैं। पैसा कहॉ से आयेगा। कोई दलित तो पैसों की फैक्ट्रियां लगाकर नहीं बैठे हैं जो पैसा दे देंगे। सरकार ने सांसद निधि और विद्यायक निधि ऐसे ही नहीं बनायी है- उसका आशय समझो -उसका खर्च दिखाओ और पार्टी को मजबूत करो। हमने दलित को मुफ्त में ही नहीं समझा दिया कि तुम्हारा शोषण हो रहा है, अपमान हो रहा है। जबसे ये दलित मतदाता हुये है तब से इन्होने बेगार करनी बन्द कर दी है। अब ये हर बात के पैसे चाहते हैं। हम कहते हैं कि तुम्हारा शोषण हो रहा है तो वे कहते है कि कैसे मानें ? हम कहते है कि तुम्हें अपमान की जिन्दगी जीना पड़ रही है तो वे फिर कहते हैं कि कैसे मानें? फिर हम पूछते हैं कि घर में कितने वोटर हैं, तो वे कहते है- तेरह! तेरह कहते हुये उनकी आंखों में चमक आ जाती है- हम वोटर लिस्ट निकालते हैं और तेरह नामों पर निशान लगाते हैं। निशान लगाकर उन्हें सौ सौ के तेरह नोट देते हैं तो वे उन्हें मोड़कर धोती की अंटी में खोंस लेते हैं और पूछते हैं कि वोट कब गिरना है ? आप ही बताइये कि फी वोटर सौ रूपयें कहॉ से आयेगें यदि टिकिट की नीलामी न की जाये। वैसे भी जो जितने ज्यादा दाम देकर टिकिट खरीदेगा वो उतना ज्यादा कमायेगा। इस कमाई से दलित वर्ग के बेटे बेटियों का भला होगा। जमीनें आयेगी, बंगले आयेगे सोने और हीरे जड़े मुकुट पहने जायेंगे। ज्योतिषी जी बता रहे थे कि जन्म दिन के महूर्त पर हीरा पहिनने से मंगल शनि सारे ग्रह मुलायम पड़ जाते है। सोने से सोनिया अगले दरवाजे से आकर पिछले दरवाजे से बाहर जाती हैं। लालची टंडन फिर से भाई बन सकते हैं। धातुओं और माणिकों में बड़ी ताकत होती है। ये सिद्वांतों, कार्यक्रमों और घोषणापत्रों के बंधनों से बचाते हैं और आकाश में स्वतंत्र विचरण करते हुये सभी रास्ते खुले रखने का अवसर देते हैं।
आप जनता की चिंता न करें वह तो लुटने के लिए ही होती है। सवर्ण हिन्दुओं को भाजपा मूख बना रही है तो मुसलमानों को कांग्रेस ने बनाया यदि हम दलितों को बना रहें है तो क्या गलत कर रहे हैं। हम नहीं बनायेगे तो उन्हें कोई और बनायेगा पर हमारी जिम्मेदारी ज्यादा बनती हैं क्योंकि वे हमारे जाति भाई हैं। जातिवाद का यही अर्थ है कि अपनी जाति के वोट बटोरकर उन्हें उचित कीमत पर बेच दिया जाये। वोटाों के खुले बाजार का नाम लोकतंत्र है। चुनाव भ्रष्टाचार के विकेन्द्रीकरण का सुनहरा अवसर है।

बोली लगाओ और टिकिट पाओ। जो लगायेगा सो पायेगा नही तो खड़ा खड़ा पछतायेगा। जनता के पास जाओगे तो वो भी यही मांगेगी। ये टिकिट के आरक्षण की एजेन्सी है। यहॉ कनफर्म टिकिट मिलेगा। कहीं सिद्वांत फिद्वांत में फंस गये तो शहीद के चित्र पर चढ़े पुष्पों के अलावा और कुछ नहीं मिलेगा। न माया मिलेंगी न राम।
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वीरेन्द्र जैन
21 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629

1 टिप्पणी:

  1. हिन्दी ब्लॉग जगत् में आपका स्वागत है. आपके धारदार व्यंग्य और कविताओं से यकीनन यहाँ समा बंधेगा...

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