बुधवार, सितंबर 09, 2009

व्यंग्य- राष्ट्र ऋषियों को मारनेवाली सरकार

व्यंग्य
राष्ट्र ऋषियों को मारने वाली सरकार

वीरेन्द्र जैन
हमारे प्रदेश में जब से राम राज्य आया है तब से सब कुछ पौराणिक काल में चल रहा है। राम पथ गमन की खोज करने में प्रदेश के इतने करोड़ रूपये फूंके जाने वाले हैं कि मायावती के हाथी तक चुल्लू भर पानी में डूब कर मर जायें। ऐसा लगता है कि कुछ ही दिनों में मंत्री तक नोटों की जगह स्वर्णमुद्राओं में रिश्वत मांगने लगेंगे। संज्ञाओं का यदि इसी तरह पौराणिकीकरण होता रहा तो मंत्री भी आमात्य के नाम से पुकारे जायेंगे।
मन में विचारों की यह खेप शिक्षक दिवस के दिन मास्टरों पर पड़े डंडों के बाद लगातार आ रही है। महाभारत की कथा में एक भीष्म थे जो पितामह के नाम से इतना प्रसिद्ध थे कि संभवत: उनकी वैध अवैध पत्नियां तक पितामह ही कह कर पुकारती रही होंगीं। वे इतने उत्तरदायी किस्म के जीव थे कि जिज्ञासु किस्म के हर एक बच्चे को उत्तर देना जरूरी मानते थे जिसका फायदा उठा कर अर्जुन ने उनसे उनके मरने का तरीका पूछ लिया था। प्रदेश में जैसे भूतपूर्व राजा महाराजाओं के परिवारों में बुआ भतीजा भले ही अलग अलग पार्टियों में हों पर एक दूसरे के खिलाफ चुनाव नहीं लड़ते इसी तरह भीष्म भी शिखंडी के आगे तीर नहीं चलाते थे, जिस राज को बता कर वे युद्ध के मैदान में खेत रहे थे। शिखंडी के पीछे से होकर उन्हें पीठ पर इतने तीर मारे गये थे कि उन तीरों की शैया तैयार हो गयी थी तब भी वे जीवित थे और उनका सिर लटक रहा था। जब उस लटकते हुये सिर के नीचे कौरवों ने तकिये लगाने की कोशिश की तो उन्होंने उन्हें मना कर दिया और अर्जुन से कहा कि उन्हें वीरों वाला तकिया लगा दे। तब अर्जुन ने उन्हें तीरों का ही तकिया लगा दिया। जब मास्टर भी गुरूजी और शिक्षक हो जाते हें तो वे भी अपनी जाति के पौराणिक युग में चले जाते हैं तथा अपना सम्मान कराने के लिए वेतनवृद्धि नहीं मांगते अपितु उसी बेंत प्रहार की मांग करते हैं जिसे उनके पूर्वज अपने छात्रों के लिए प्रयोग में लाते थे- हे पार्थ हमारा सम्मान उन्हीं बेंतों से करो।
प्रदेश सरकार की शिक्षा आमात्य को लगा होगा कि शिक्षक और गुरूजी होकर भी अगर वे पौराणिक काल में नहीं पहुँचते तब उन्होंने उन्हें और पीछे ले जाने के लिए राष्ट्रऋषि घोषित कर दिया। अब वे कह सकती हैं कि ऋषि होते हुये भी नश्वर द्रव्यों के लिए आन्दोलन करते हो छि: छि: छि: इतना पतन। द्रोणचार्य की याद करो जिसकी पत्नी पानी में आटा घोल अपने बच्चे को दूध का भ्रम देकर पिलाती थी। सरकार जो गुरू दक्षिणा दे उसे लेकर खुश रहो। दुष्यंत कुमार ने कहा ही है-
मुझको ईसा बना दिया तुमने
अब शिकायत भी की नहीं जाती
नामकरण एक संस्कार होता है जिसका बड़ा महत्व होता है। अतीत के गौरव से भर कर लोगों को वर्तमान कठिन समय में बरगलाया जा सकता है। कुपोषित बच्चियों को लाड़ली लक्ष्मी कह कर उनकी माँओं को भटकाया जा सकता है। स्कूल ड्रैस को गणवेष कह देने पर भ्रमित लोग इस बात पर ध्यान नहीं दे पाते कि उसमें घटिया कपड़ा लगा कर कितना कमीशन किनने खाया है। रोडशो को पथ संचालन कह देने और कांधे पर दण्ड रख मुँह ऊपर की ओर कर कदमताल करने वालों को सड़कों के गङ्ढे नजर नहीं आते। बालठाकरे के जय महाराष्ट्र की तर्ज पर जय मध्यप्रदेश का नारा लाया जा रहा है पर यह नहीं बताया जा रहा कि जय किस बात की! विकास में सबसे पीछे होने की या कुपोषण व स्वास्थ सेवाओं में सबसे आगे होने की।
वीरेन्द्र जैन
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