शनिवार, दिसंबर 24, 2011
व्यंग्य- देश की चिड़िया
मंगलवार, नवंबर 29, 2011
व्यंग्य --- फायर ब्रांड नेता और एफ डी आई की आग
वैसे भी आग लगाने के बड़े खतरे होते हैं। होम करते हुए तक तो हाथ जल जाते हैं और लंका में आग लगाने के लिए हनुमानजी को अपनी ही पूंछ में आग लगानी पड़ी थी। कबीर तक ने साथ चलने वालों से सबसे पहले अपना घर जलाने का आवाहन किया था, पर दीदी को तो घर ऐसा सता रहा था कि छोड़े हुए घर में वापिसी के लिए उन्होंने अपना नया घर मटियामेट कर दिया। पुराने घर में जगह भी मिली तो नौकरों के कमरे में जहाँ पहले से ही बड़ी भीड़ है। अब आग लगाने के लिए पैट्रोल खरीदना पड़ेगा जो इतना मँहगा हो चुका है कि उसे खरीदने के लिए पहले कोई बैंक लूटना पड़ेगा। वैसे जो एफडीआई वाले रिटेल स्टोर में आग लगा सकते हैं वे बैंक भी लूट सकते हैं, पर उसके लिए बन्दूकों की जरूरत पड़ेगी जो पुरलिया की तरह कोई आसमान से नहीं टपकेंगीं। खैर किसी तरह उनका भी इंतजाम हो जायेगा पर फिर सारा मामला नक्सलवादियों जैसा हो जायेगा। और जब नक्सलवाद की तरह से परिवर्तन लाया जायेगा तो फिर इस भगवा रंग की वर्दी, अयोध्या में राम मन्दिर, और मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री की कुर्सी का क्या होगा। अभी तो केवल कुर्सी का ही खतरा रहता है फिर तो जान का खतरा बना रहेगा।
गुरुवार, नवंबर 24, 2011
व्यंग्य - नेता सीना जेल और दर्द
सिर से सीने में कभी, पेट से पैरों में कभी
कानून कहता है कि चाहे निन्नावे दोषी छूट जायें पर एक निर्दोष को सजा नहीं होना चाहिए, पर डाक्टरों की कृपा से सौ के सौ प्रतिशत छूट रहे हैं। जो अन्दर हैं वे अस्थायी तौर पर हैं जरा जनता की स्मृति का लोप हो जाये सब बाहर आकर अपने समर्थकों की भीड़ के आगे उंगलियों से वी का निशान बना रहे होंगे, जैसे कि कोई मैच जीत कर आये हों। स्थायी तौर पर तो अन्दर वे ही हैं जिन्हें वहाँ कम से कम रोटी तो मिल रही है बरना बाहर आकर वे अपनी आजादी को कितने दिन चाट चाट कर काम चलाते।
जेल में जब वीआईपी कैदी आता है तो उत्सव का सा माहौल होता है। जेलर से लेकर स्वीपर तक सब खुश नजर आते हैं। वीआईपी आया है तो जेलर के लिए सौगातें भी आयेंगीं, कैदियों के लिए बीड़ी के बन्डल भी आयेंगे। वीआईपी के लिए घर से आये खाने से दर्जन भर कैदी अपनी रसना को तर कर सकते हैं। वीआईपी के आने से बैरकों में सफाई होती है और खाने के मीनू झाड़ा पौंछा जाने लगता है। कई जगह तो उस फिनायल की महक भी आने लगती है जिसका अभी तक केवल बिल आता था।
शुक्रवार, नवंबर 11, 2011
व्यंग्य मगर मच्छ के आंसू
जिगर का दर्द जिगर में रहे तो अच्छा है
रविवार, नवंबर 06, 2011
ज्ञानपीठ देने वाले कर कमल
‘ पर भाई मैं कह रहा हूं, अगर मिला तो ...’
‘वैसे तो अभी बहुत लम्बी लाइन लगी हुयी है जो ज्ञानपीठ के लिए मुँह इत्यादि बाये हुए बैठे हैं, और ज्ञानपीठ मुँह में गंगाजल की तरह डालने की परम्परा है इसलिए अ..ग..र.. तुम्हारा नम्बर आया भी तो.... ऐसा कौन सा महान साहित्यकार होगा जो ऐसा दुर्दिन देखने के लिए बचा होगा?’ मित्र ने अपना मित्रता धर्म निभाते हुए सारा जहर उगल दिया।
‘ तब ठीक है। जब एक रुपये में परमानन्दा कराने वाले, और यूनियन कार्बाइड की एवरेडी बैटरी बेच कर नरेन्द्र मोदी के ब्रांड एम्बेसडर के हाथों जनवादी लेखक संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पुरस्कार ले सकते हैं तो तुम्हारी क्या औकात! पर हाँ मैं तुम्हारे लिए एक नाम सुझा सकता हूं’ वह बोला।
सोमवार, अक्टूबर 24, 2011
हनुमतभक्ति के पुनर्जागरण का समय
पिछले चुनाव में उन्होंने अमेरिका में रह रहे हिन्दुस्तान के लाखों प्रवासियों के साथ साथ हिन्दुस्तान के धर्मप्रेमियों का दिल वगैरह जीत लिया था। जब ये पता चला था कि वे पवन सुत अंजनिनन्दन हनुमानजी के भक्त हैं और पेंट की जेब में जो टोटके डाल कर चलते हैं उनमें चाबी के छल्ले जैसी एक धातु से बनी पर्वत लेकर उड़ते हुए हनुमानजी की मूर्ति भी है, तो हम उनकी बलैयां लेने लग गये थे। दिल्ली में रहने वाले बजरंगबली के भक्तों ने तो पीतल की एक बड़ी मूर्ति भी उन्हें फ्री भेजी थी। वे सोचते थे कि अमरीका में भी ‘वहीं’ अर्थात व्हाइट हाउस में मन्दिर बन जायेगा। पर चुनाव जीतने के बाद वे भी भाजपा हो गये और उनकी हनुमत भक्ति का कहीं कोई अता पता नहीं चला, जबकि बजरंगदल वाले तो उन्हें अपना सदस्य बनाने कट्टा लेकर जाने वाले थे, कट्टा माने वो वाला कट्टा नहीं, रसीद कट्टा। सोचते थे कि लगे हाथ दुनिया के सबसे बड़े सेठ से गौशालाओं, रामलीला, गणेश भगवान और दुर्गाजी की झाँकियों के लिए चन्दा भी लेते आयेंगे। धर्म के काम में कोई मना कैसे कर सकता है! पर वे नहीं गये। हो सकता है कि वे ये सोच के रुक गये हों कि ओबामाजी के समय में न केवल वहाँ के बैंक ही धड़ाधड़ रूप से फेल हुए अपितु पूरी वित्त व्यवस्था ही मन्दी के दौर में आ गयी। अब इन गरीबों से क्या तो माँगना, जो खुद ही दूसरे देशों की लुटाई करने के लिए कभी ओसामा के छुपे होने का बहाना लेता है तो कभी जैविक हथियारों के बहाने ईराक पर हमला कर सद्दाम को फाँसी चढा देते हैं।
मंगलवार, अक्टूबर 11, 2011
व्यंग्य- टोपी और सद्भावना
वैसे 2002 के समय जब सद्भावना बिगाड़ी गयी थी तो जो लोग मारे गये थे वे भी गर्वीले गुजराती ही थे और जो पुलिस उनकी रक्षा करने की जगह जब हाथ पर धरे बैठने को मजबूर कर दी गयी थी, वह भी गर्वीले गुजरात की ही थी। जो लोग मार रहे थे वे भी गुजराती ही थे और जो मर रहे थे वे भी गुजराती ही थे। गली गली में गीता का पाठ गूँज रहा था। सब में एक ही आत्मा का बास है। वैसे गोधरा घटना के कुछ ही घंटों बाद देश के तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने इसमें पाकिस्तान का हाथ बता दिया था जिससे उम्मीद बँधती थी कि प्रतिक्रिया पाकिस्तान के खिलाफ होगी पर हुयी गर्वीले गुजरातियों के एक हिस्से पर। पता नहीं उनका पाकिस्तान कहाँ पर है। मोदीजी किस गुजरात की अस्मिता पर किससे खतरा महसूस करते हैं। वे कहने लगते हैं कि वे केन्द्र सरकार को टैक्स देना बन्द कर देंगे, जैसे गुजरात देश से बाहर हो। उन्हीं की तर्ज पर बिगड़े मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री अपना स्वर्णिम मध्य प्रदेश अलग बना कर उसका अलग से मध्य प्रदेश गान बनवा लेते हैं। अपने पार्टी हित में देश को छोटे छोटे राज्यों में तोड़े जाने की हिमायती यही पार्टी राष्ट्रभक्ति का लबादा ओढे फिरती है। छोटे राज्यों में सामान्य तौर पर बहुमत क्षीण होता है जिससे कुछ ही विधायक खरीदने पर सरकार बनाने का मौका मिल जाता है। एक बार सरकार बनाने का मौका मिल जाये तो मधु कौड़ा बनते देर नहीं लगती, सब वसूल हो जाता है।
बुधवार, सितंबर 14, 2011
अडवाणीजी, पधारो म्हारे मध्य प्रदेश
गुरुवार, सितंबर 01, 2011
व्यंग्य धर्म का रास्ता और रास्ते पर धर्म
मंगलवार, जुलाई 26, 2011
vyangya- aur pyaare ye kaangres ek sarakas hai व्यंग्य- और प्यारे ये कांग्रेस एक सरकस है

व्यंग्य
और प्यारे ये कांग्रेस एक सरकस है,
वीरेन्द्र जैन
बरसों पहले राजकपूर की एक आत्मकथात्मक फिल्म आयी थी जिसका नाम था- मेरा नाम जोकर। इस फिल्म में नीरज का लिखा एक गीत था- ये भाई जरा देख कर चलो। इस गीत में जीवन दर्शन को व्यक्त करती कुछ पंक्तियां थीं-
और प्यारे ये दुनिया एक सरकस है,
और यहाँ सरकस में
बड़े को भी छोटे को भी
खरे को भी खोटे को भी
दुबले को भी मोटे को भी
नीचे से ऊपर को
ऊपर से नीचे को
आना जाना पड़ता है
और रिंग मास्टर के कोड़े पै
कोड़ा जो भूख है
कोड़ा जो पैसा है
कोड़ा जो किस्मत है
तरह तरह नाच के दिखाना यहाँ पड़ता है
हीरो से जोकर बन जाना पड़ता है....................
अब यदि मणिशंकर अय्यर ने कांग्रेस को सरकस कहा है तो क्या गलत कहा है। इस सरकस में भी दिवंगत अर्जुन सिंह जैसे बफादारों को भी गाना पड़ा था कि – यहाँ बदला बफा का बेबफाई के सिवा क्या है और नारायन दत्त तिवारी को भी राज्यपाल से द्वारपाल तक नीचे से ऊपर को ऊपर से नीचे को आना जाना पड़ता है। बेचारे नारायन दत्त तो ऐसे मचल रहे हैं जैसे स्कूल में कभी छोटे बच्चे टीका न लगवाने के लिए मचला करते थे कि नहीं लगवायेंगे टीका। वे भी अपनी बाँह छुपाये छुपाये कह रहे हैं कि नहीं कराएंगे डीएनए टेस्ट । इस सरकस में कलमाड़ी की गाड़ी सीधे संसद से तिहाड़ के अगाड़ी तक चली जाती है। महाराष्ट्र के च्वहाण चूक कर दूसरे च्वहाण को तिजोरी की चाबी यह कहते हुए सौंप देते हैं कि – खा चुके पेट भर कर के हम साथियो, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो। जगन मोहन को जब मुख्यमंत्री की विरासत नहीं मिलती तो सबसे ज्यादा इनकम टैक्स का टुकड़ा फेंक कर मैदान में खम्भ ठोकने लगते हैं। प्रणव मुखर्जी ममता बनर्जी के आगे दण्डवत हो जाते हैं और तुम्ही हो माता पिता तुम्ही हो, तुम्ही हो बन्धु सखा तुम्ही हो गाने लगते हैं। धर्मनिरपेक्षता की तूती बजाते बजाते केरल में कांग्रेस मुस्लिम लीग और ईसाइयों की पार्टी केरल कांग्रेस के आगे इतना झुक जाती है कि मुख्यमंत्री भले ही चाण्डी हों पर मुस्लिमलीग तय करने लगती है कि उसके कोटे से कितने मंत्री होंगे और पाँचवें मंत्री को कौन सा विभाग मिलेगा। हर प्रदेश में हर नेता की अपनी कांग्रेस होती है। मध्य प्रदेश में अगर किसी ने किसी से राजनीतिक सम्बद्धता के बारे में पूछ लिया और उसे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस उत्तर मिला तो वो फटाक से पूछेगा कि कौन सी कांग्रेस, दिग्विजय सिंह, की या सिन्धिया या कमल नाथ की, या पचौरी की, या श्री निवास तिवारी की ? सबकी अपनी अपनी कांग्रेस है। यहाँ विपक्ष की नेता जब उपचुनाव लड़ती हैं तो कांग्रेस का उम्मीदवार अपना पर्चा गलत भर कर उनके जीतने की राह आसान कर देता है, भले ही लोकतंत्र को मजबूत करने वाले इस कदम के लिए लोग उसे भ्रष्ट समझते रहें। पजाब में मैडम दिलजीत कौर अकाली दल से कम लड़ती हैं पर महाराजा अमरेन्द्र सिंह से अधिक लड़ती हैं। एक कांग्रेस के हार जाने से दूसरी कांग्रेस की जीत हो जाती है। सबसे बड़े पद पर पार्टी में सबसे दूर के नौकरशाह को बैठा दिया जाता है जो लोकसभा का कोई चुनाव नहीं जीत सकता इसलिए अपने निवास के बारे में गलत बयानी करके उस राज्य से राज्यसभा में पहुँचता जहाँ वह कभी नहीं रहता। उसकी निष्ठा पार्टी में कम और वर्ल्ड बैंक में अधिक रहती है। सरकार गठबन्धन के लिए जिन दलों पर निर्भर रहती है वे गाड़ी में अपना अपना पहिया लगाये रहते हैं इसलिए कोई पहिया छोटा और कोई बड़ा रहता है। इस सरकस में सिंह बाहर घूमते रहते हैं और रिंग मास्टर पिंजरे से बाहर नहीं निकलते। जब मंत्रीमण्डल में परिवर्तन होता है तो पार्टी के नेता कहते हैं कि प्रधानमंत्री खो-खो खेल रहे हैं। पार्टी के नटवर नागर नटवरलाल साबित होते हैं।
नेता इस रिंग से उस रिंग में कूदने के लिए तैयार रहते हैं क्योंकि सबको भरोसा है कि नीचे कुछ लोग जाल पकड़े हुये हैं और नीचे गिरेंगे तो उछल के और ऊपर जायेंगे इसलिए नीचे गिरने से कोई नहीं डरता।
पर राजकपूर की फिल्म के गीत के अनुसार भी ये शो तीन घंटे का है और ये तीसरा घंटा चल रहा है जिसके बाद रहता है जो कुछ वो खाली खाली पिंजरे हैं, खाली खाली कुसियां हैं, और खोयी हुयी याद्दाश्त है। अगर याद्दाश्त खो जाये तो पता ही नहीं चलता कि हम पहाड़ में रह रहे हैं कि तिहाड़ में रह रहे हैं।
बहरहाल सरकस में ऊपरवाला वेरी गुड वेरी गुड, नीचे वाला वेरी बेड वेरी बेड, चल रहा है। पर कबीरदास कह गये हैं कि -
माटी कहे कुम्हार से तू क्या रूंदे मोय
इक दिन ऐसो आयगो मैं रूंदूंगीं तोय
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा सिनेमा के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मोबाइल 9425674629